नई दिल्ली,3 दिसंबर (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक बुधवार से शुरू हो गई है। यह बैठक इसलिए भी खास है क्योंकि यह ऐसे समय में हो रही है,जब भारतीय अर्थव्यवस्था कई मजबूत संकेत दिखा रही है। एक तरफ मुद्रास्फीति ऐतिहासिक रूप से निम्न स्तर पर है,वहीं दूसरी ओर जीडीपी वृद्धि दर उम्मीदों से कहीं अधिक मजबूत दर्ज की गई है। इन परिस्थितियों में बाजार,निवेशक और उद्योग जगत सभी की निगाहें आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के नेतृत्व वाली एमपीसी के शुक्रवार को आने वाले फैसले पर टिकी हैं।
बीते कुछ महीनों में भारत की अर्थव्यवस्था ने जिस तरह के संकेत दिए हैं,उसने नीति निर्माताओं को एक मजबूत आधार दिया है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत दर्ज की गई है,जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 5.6 प्रतिशत की तुलना में काफी बेहतर है। यह वृद्धि दर वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच भारत की मजबूत घरेलू माँग,उत्पादन गतिविधियों में सुधार और स्थिर निवेश माहौल की ओर इशारा करती है। दूसरी ओर,अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है,जो कि लगातार सरकारी मूल्य प्रबंधन उपायों और बेहतर आपूर्ति की स्थिति का नतीजा है।
एमपीसी की यह बैठक ऐसे समय में हो रही है,जब आर्थिक विशेषज्ञों के अनुमानों में भी मतभेद दिखाई दे रहे हैं। जहाँ कुछ अर्थशास्त्री रेपो रेट में कटौती की संभावना से इंकार कर रहे हैं,वहीं कुछ का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियाँ इसके पक्ष में भी जा सकती हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस ने बयान दिया कि मौद्रिक नीति हमेशा आगे की दिशा को ध्यान में रखकर तय की जाती है और आने वाले समय में मुद्रास्फीति लगभग 4 प्रतिशत के आसपास या उससे ऊपर रहने की संभावना है। ऐसे में वे नीतिगत दरों में किसी तत्काल बदलाव की उम्मीद नहीं देखते। उनके अनुसार,वर्तमान रेपो रेट आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार संतुलित स्तर पर है और इसे स्थिर रखना ही उपयुक्त होगा।
दूसरी ओर,एसबीआई की हालिया रिपोर्ट में भी यही संकेत दिया गया कि दिसंबर में नीतिगत दरों में बदलाव की संभावना कम है। रिपोर्ट में कहा गया कि कुछ समय पहले तक 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की उम्मीद की जा रही थी,लेकिन दूसरी तिमाही के मजबूत जीडीपी आंकड़ों और बदलते आर्थिक माहौल को देखते हुए अब यह संभावना काफी कमजोर हो गई है। एसबीआई का यह भी मानना है कि आरबीआई को बांड यील्ड पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए लिक्विडिटी प्रबंधन के जरिए तटस्थ रुख के साथ कुछ कैलिब्रेटेड कदम उठाने पड़ सकते हैं। यह संकेत दर्शाता है कि भले ही रेपो रेट में बदलाव न हो,लेकिन बैंकों और वित्तीय प्रणाली में तरलता को संतुलित रखने के लिए आरबीआई सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
हालाँकि,सभी विश्लेषक नीतिगत दरों में स्थिरता की ही उम्मीद नहीं कर रहे। एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च ने पूर्वानुमान व्यक्त किया है कि आरबीआई इस बार रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, चूँकि मुद्रास्फीति निकट भविष्य में लक्ष्य से काफी नीचे रहने की संभावना है और आर्थिक वृद्धि मजबूत बनी हुई है,ऐसे में आरबीआई मौद्रिक रुख में थोड़ी नरमी दिखाकर निवेश और खपत को और बढ़ावा दे सकता है। अगर ऐसा होता है तो रेपो रेट 5.50 प्रतिशत से घटकर 5.25 प्रतिशत पर आ जाएगी,जो पिछले एक वर्ष में सबसे पहला रेट कट होगा।
इन भिन्न-भिन्न अनुमानों के बीच बाजार में उत्सुकता बढ़ गई है। उद्योग जगत भी इस फैसले की प्रतीक्षा कर रहा है क्योंकि नीतिगत दरों में किसी भी तरह का बदलाव सीधे तौर पर ऋण ब्याज दरों,निवेश योजनाओं और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करता है। यदि रेपो रेट में कटौती होती है,तो घर,वाहन,बिज़नेस और अन्य लोन की ब्याज दरें कम हो सकती हैं,जिससे क्रेडिट डिमांड में बढ़ोतरी संभव है। वहीं यदि दरें स्थिर रहती हैं,तो यह संकेत होगा कि आरबीआई अभी भी मुद्रास्फीति पर नजर रखते हुए धीरे और संतुलित कदम उठाना चाह रहा है।
चूँकि वैश्विक स्तर पर भी आर्थिक वातावरण पूरी तरह स्थिर नहीं है,आरबीआई का सतर्क रुख बनाए रखना समझदारी माना जा रहा है। अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में ब्याज दरों को लेकर अनिश्चितता जारी है। तेल कीमतों,वैश्विक व्यापार और भूराजनीतिक तनाव जैसे मुद्दे भी आने वाले महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसे में आरबीआई के लिए सबसे बड़ी चुनौती है—विकास को रफ्तार देना और मुद्रास्फीति को लक्ष्य दायरे में रखना।
मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों और विशेषज्ञों के अलग-अलग अनुमानों को देखते हुए शुक्रवार का एमपीसी निर्णय बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है। चाहे रेपो रेट में कटौती की जाए या इसे स्थिर रखा जाए,दोनों ही स्थितियों में यह फैसला आने वाले महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा तय करेगा। सभी की निगाहें अब आरबीआई गवर्नर की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर टिकी हैं,जहाँ अगले तिमाहियों के लिए मौद्रिक रुख और आर्थिक दृष्टिकोण को स्पष्ट किया जाएगा।

