नई दिल्ली,8 दिसंबर (युआईटीवी)- संसद का शीतकालीन सत्र इन दिनों अपने महत्वपूर्ण चरण से गुजर रहा है। सोमवार को सत्र के आठवें दिन लोकसभा में एक ऐतिहासिक और भावनात्मक चर्चा की शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सदन में विशेष संबोधन दिया। यह चर्चा न सिर्फ इतिहास को स्मरण करने का अवसर बनी,बल्कि उस सामूहिक भावना को फिर से जगाने का प्रयत्न भी दिखी,जिसने देश को आज़ादी की ओर अग्रसर किया था।
लोकसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वन्दे मातरम् पर हो रही यह चर्चा सदन के लिए गौरव का पल है। उन्होंने कहा कि यह वही मंत्र है जिसने भारत की आजादी के आंदोलन को ऊर्जा,प्रेरणा और संघर्ष का रास्ता दिखाया था। आज जब हम इसकी 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा कर रहे हैं,तो यह केवल स्मरण भर नहीं,बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक महान शिक्षा का अवसर है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वन्दे मातरम् केवल एक गीत नहीं,बल्कि वह भावनात्मक शक्ति है,जिसने पूरे राष्ट्र को एकजुट करने का कार्य किया।
अपने संबोधन में उन्होंने इस गीत की ऐतिहासिक यात्रा का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने याद दिलाया कि जब वन्दे मातरम् के 50 वर्ष पूरे हुए थे,तब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेजी शासन का दमन चरम पर था,लेकिन यही गीत देशवासियों के लिए साहस और आत्मविश्वास का स्रोत बनकर उभरा। उन्होंने आगे कहा कि जब 100 वर्ष पूरे हुए,तब देश एक और चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा था—आपातकाल का अंधकार। प्रधानमंत्री ने कहा कि उस समय भारत के संविधान का गला घोंटा गया,लोकतंत्र को बंधक बनाया गया और देशभक्ति के लिए खड़े होने वाले अनेक लोग जेलों में कैद कर दिए गए। यह इतिहास का वह काला अध्याय था,जिसने देश को गहरी पीड़ा दी,लेकिन ऐसे कठिन समय में भी वन्दे मातरम् की भावना लोगों को दृढ़ता देती रही।
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि 150 वर्षों का यह पड़ाव केवल अतीत का सम्मान करने का क्षण नहीं,बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए प्रेरणा का मार्गदर्शन है। उनकी दृष्टि में यह अवसर भारत की सामूहिक चेतना को पुनर्जीवित करने का है,वही चेतना जो 1947 में देश को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हुई। उन्होंने कहा कि इस गीत की ऊर्जा आज भी वैसी ही प्रासंगिक है,जैसी यह आजादी की लड़ाई के समय थी। इसीलिए इस अवसर को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत संदेश के रूप में बदलना हमारी जिम्मेदारी है।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में यह भी रेखांकित किया कि वन्दे मातरम् केवल एक गीत की परंपरा नहीं है,बल्कि एक ऐसी भावनात्मक धड़कन है,जो भारत के हृदय में सदियों से बसती है। इसके हर शब्द में वह शक्ति है जिसने क्रांतिकारियों,स्वतंत्रता सेनानियों और सामाजिक आंदोलनों को अपना रक्त,पसीना और जीवन समर्पित करने की प्रेरणा दी।
उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान यही नारा भारतीयों के मनोबल को मजबूत करता था,चाहे वह विदेशी शासन के अत्याचार का सामना हो या जनआंदोलनों का विस्तार। यह गीत हर भारतीय को अपनी मिट्टी के प्रति प्रेम,कर्तव्य और समर्पण की भावना से जोड़ता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 150 वर्ष पूरे होने पर यह चर्चा केवल औपचारिकता नहीं है,बल्कि भारत की आत्मा के पुनर्पाठ का क्षण है।
सदन में मौजूद सांसदों ने भी इस विशेष चर्चा का स्वागत किया। विपक्ष सहित कई सदस्यों ने माना कि इस गीत ने भारतीय इतिहास के बेहद कठिन पड़ावों में राष्ट्र को एकजुट करने का कार्य किया। यह केवल सांस्कृतिक धरोहर नहीं,बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है।
लोकसभा में हो रही इस विशेष चर्चा ने संसद के वातावरण को ऐतिहासिक गंभीरता और भावनात्मक ऊँचाई से भर दिया। प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन ने यह स्पष्ट किया कि वन्दे मातरम् की 150 वर्षों की यात्रा भारत की स्वतंत्रता,संघर्ष,एकता और लोकतंत्र की यात्रा भी है। यह गीत न सिर्फ भारत की आजादी का प्रतीक है,बल्कि आज भी राष्ट्र की सामूहिक चेतना को प्रेरित करता है।
इस प्रकार,संसद में वन्दे मातरम् पर हुई यह चर्चा केवल इतिहास का स्मरण भर नहीं,बल्कि राष्ट्र की आत्मा को पुनः छूने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुई। प्रधानमंत्री ने समाप्ति के समय कहा कि इस महान गीत को याद करना और इसके मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुँचाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है—क्योंकि यही वह भावना है जिसने भारत को मुक्त किया और आगे भी इसकी प्रगति का मार्ग रोशन करती रहेगी।
