चेन्नई,22 नवंबर (युआईटीवी)- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता के. अन्नामलाई ने ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन पर 4,000 करोड़ रुपए के बड़े कचरा कलेक्शन कॉन्ट्रैक्ट की प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि कॉर्पोरेशन द्वारा इस महत्त्वपूर्ण कॉन्ट्रैक्ट की डेडलाइन को नियमों के विरुद्ध बढ़ाया गया,जिससे एक विशेष कंपनी को फायदा पहुँचाने की कोशिश की गई। यह मामला अब राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर चर्चा का विषय बन गया है। अन्नामलाई ने इसे “बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की ओर खुला संकेत” बताते हुए तत्काल टेंडर रद्द करने और पूरी प्रक्रिया की निष्पक्ष जाँच की माँग की है।
ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन ने जुलाई 2024 में टोंडियारपेट और अन्ना नगर जोन में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन सेवा प्रदान करने के लिए 10 साल की अवधि वाला एक बड़ा टेंडर जारी किया था। इस कॉन्ट्रैक्ट की अनुमानित लागत करीब 4,000 करोड़ रुपए है, जो इसे शहर के सबसे बड़े ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं में से एक बनाती है। भाजपा नेता अन्नामलाई के अनुसार,टेंडर की अंतिम तिथि गुरुवार दोपहर 3 बजे तय की गई थी और उससे पहले ही समय सीमा को चार बार बढ़ाया जा चुका था। उस समय तक तीन कंपनियों ने अपनी बिड जमा की थीं और वे आधिकारिक समय सीमा के भीतर पात्रता प्रक्रिया में शामिल हो चुकी थीं।
अन्नामलाई का आरोप है कि कॉर्पोरेशन ने 20 नवंबर को ऑफिशियल विंडो बंद होने के बाद अचानक 21 नवंबर की नई कट-ऑफ तिथि घोषित कर दी। उनका कहना है कि यह निर्णय खरीद नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है,क्योंकि डेडलाइन खत्म होने के बाद इसे बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस आखिरी मिनट के बदलाव का लाभ एक चौथी कंपनी को मिला,जिसे मूल डेडलाइन के बाद प्रवेश की अनुमति दी गई। भाजपा नेता के अनुसार,यह कदम न केवल संदिग्ध है,बल्कि यह भी दर्शाता है कि अधिकारियों ने पहले तीन प्रतिभागियों की बोली रकम और तकनीकी विवरण देखने के बाद ही इस “विशेष कंपनी” के लिए रास्ता साफ किया।
अन्नामलाई ने कहा कि टेंडर की प्रक्रिया में पारदर्शिता बेहद जरूरी है,खासकर तब जब परियोजना का वित्तीय दायरा इतना विशाल हो। उन्होंने यह भी कहा कि जिन कंपनियों ने समय पर अपनी बिड दाखिल की थीं,उनके साथ अन्याय हुआ है,क्योंकि डेडलाइन को नियमों के विपरीत बढ़ाकर एक नई कंपनी को अवैध रूप से मौके दिए गए। भाजपा नेता ने यह सवाल भी उठाया कि डेडलाइन खत्म होने के बाद बोली लगाने वालों की संख्या क्यों और कैसे बढ़ाई गई,जबकि यह प्रावधान सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया में पूरी तरह निषिद्ध माना जाता है।
उन्होंने दावा किया कि इस तरह का कदम यह संकेत देता है कि अधिकारी किसी एक कंपनी को अनुचित लाभ पहुँचाना चाहते थे। अन्नामलाई ने इस कार्रवाई को “कानूनन वर्जित” करार देते हुए कहा कि इससे न केवल बोली प्रक्रिया की ईमानदारी पर सवाल उठते हैं,बल्कि यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का सीधा प्रयास भी प्रतीत होता है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि यह पूरा मामला 4,000 करोड़ रुपए के संभावित घोटाले का रास्ता खोलता है। अन्नामलाई के अनुसार,इससे न सिर्फ सार्वजनिक धन का दुरुपयोग होगा,बल्कि शहर की कचरा प्रबंधन प्रणाली पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।
भाजपा नेता ने ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन से मांग की कि इस टेंडर को तुरंत रद्द किया जाए और उन कंपनियों की सूची सार्वजनिक की जाए,जिन्होंने वास्तविक डेडलाइन यानी 20 नवंबर तक पात्रता प्राप्त की थी। उन्होंने जनता के सामने तथ्यों को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि यह जानना जरूरी है कि अंतिम तिथि के बाद किस कंपनी को प्रवेश की अनुमति दी गई और यह निर्णय किसके निर्देश पर लिया गया।
इसके अलावा अन्नामलाई ने इस पूरे मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच की भी माँग की। उन्होंने कहा कि यह पता लगाना जरूरी है कि डेडलाइन बढ़ाने का फैसला किस अधिकारी ने लिया और इस फैसले के पीछे क्या कारण थे। उन्होंने यह भी कहा कि सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए,ताकि सरकारी कामकाज पर लोगों का भरोसा बना रहे।
चेन्नई कॉर्पोरेशन की ओर से फिलहाल इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन राजनीति और प्रशासनिक हलकों में चर्चा तेज है कि इतनी बड़ी परियोजना के टेंडर में आखिरी मिनट पर बदलाव आखिर किसके इशारे पर किया गया। भाजपा नेता का आरोप है कि यह निर्णय जनहित की बजाय किसी एक कंपनी को अनुचित लाभ पहुँचाने के लिए लिया गया,जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली सोच को दर्शाता है।
जैसे-जैसे मामला राजनीतिक रंग लेता जा रहा है,शहर की जनता और विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर पारदर्शिता की माँग शुरू कर दी है। यदि अन्नामलाई के लगाए आरोपों की जाँच होती है,तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या वाकई नियमों का उल्लंघन किया गया या फिर यह निर्णय किसी प्रशासनिक आवश्यकता के तहत लिया गया था। फिलहाल,यह विवाद चेन्नई की नगर प्रशासन व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल सकती हैं।

