नयपीताव,1 अप्रैल (युआईटीवी)- म्यांमार में 28 मार्च को आए 7.7 तीव्रता के भीषण भूकंप ने न केवल देश के भूगोल को झकझोर दिया,बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली को भी पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। भूकंप के बाद स्थिति बेहद गंभीर हो गई है और सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार,मृतकों की संख्या बढ़कर 2,056 तक पहुँच चुकी है,जबकि लगभग 3,900 लोग घायल हुए हैं और करीब 270 लोग अभी भी लापता हैं।
म्यांमार के दो प्रमुख शहरी क्षेत्र,मंडाले और नयपीताव,भूकंप के बाद स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि इन दोनों शहरों के अस्पताल पहले ही मरीजों से भरे हुए थे,लेकिन अब तो हालात और भी खराब हो गए हैं। इन अस्पतालों में जगह और संसाधनों की भारी कमी है,लेकिन फिर भी चिकित्सा स्टाफ अपनी पूरी कोशिश कर रहा है। हालाँकि,स्टाफ की संख्या बहुत कम है और इसके कारण उपचार की प्रक्रिया बेहद प्रभावित हो रही है।
भूकंप से पहले ही म्यांमार की स्वास्थ्य प्रणाली संकट में थी और पिछले चार वर्षों से चल रहे सैन्य शासन ने स्वास्थ्य सेवाओं को और भी अधिक नष्ट कर दिया था। रिपोर्ट्स के अनुसार,सैन्य शासन के कारण कई अस्पताल पहले ही जर्जर हो चुके थे और अब भूकंप के बाद इनकी स्थिति और भी गंभीर हो गई है। सबसे बुरा हाल मंडाले का है,जहाँ के 80 प्रतिशत से अधिक मेडिकल स्टाफ सैन्य शासन के खिलाफ सिविल नाफरमानी आंदोलन में शामिल हो चुके हैं। इस आंदोलन ने स्वास्थ्य सेवाओं को और भी कमजोर बना दिया है,क्योंकि चिकित्सा कर्मचारियों की कमी के कारण इलाज में भारी दिक्कतें आ रही हैं।
मंडाले में सात निजी अस्पतालों के लाइसेंस पिछले महीने रद्द कर दिए गए थे,क्योंकि इन अस्पतालों ने सरकारी अस्पतालों के पूर्व कर्मचारियों को काम पर रखा था। इससे पहले ही मंडाले के कई निजी अस्पताल बंद हो चुके थे,क्योंकि सैन्य सरकार ने उन्हें काम करने से रोक दिया था। अब भूकंप के बाद बची-खुची स्वास्थ्य सेवाएँ भी पूरी तरह से नष्ट हो चुकी हैं और इलाज देने वाले अस्पतालों की हालत अत्यंत खराब हो गई है। इसने अस्पतालों में व्यवस्था पूरी तरह से विफल कर दी है,जिससे कई लोगों को समय पर उपचार नहीं मिल पा रहा है।
सैन्य शासन के द्वारा संचालित मंडाले जनरल अस्पताल का हाल भी भूकंप के बाद बेहद भयावह हो गया है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि अस्पताल में दाखिल होते ही चारों ओर खून से लथपथ मरीजों के शव और घायल पड़े हुए थे। बेड की भारी कमी थी और मरीजों को जमीन पर लिटाया गया था। डॉक्टरों की संख्या कम होने के कारण कुछ लोग सिर्फ बैठे हुए थे,असहाय और हताश। यह दृश्य देश के अन्य अस्पतालों में भी देखा गया,जहाँ उपचार की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।
इसके अलावा,म्यांमार के मौसम विज्ञान और जल विज्ञान विभाग ने बताया है कि भूकंप के बाद 36 आफ्टरशॉक्स (भूकंप के बाद आने वाले झटके) भी दर्ज किए गए हैं,जिनकी तीव्रता 2.8 से लेकर 7.5 के बीच थी। शुक्रवार को आए 7.7 तीव्रता के भूकंप के कुछ मिनट बाद 6.4 तीव्रता का आफ्टरशॉक भी आया,जिससे देश के कई हिस्सों में तबाही मच गई। इन आफ्टरशॉक्स ने पहले से ही कमजोर हो चुकी स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी ढाँचे को और अधिक प्रभावित किया है।
भूकंप के बाद म्यांमार की स्थिति ने दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि प्राकृतिक आपदाएँ केवल भौतिक क्षति ही नहीं पहुँचाती,बल्कि सामाजिक और मानवाधिकारों के मामले में भी गंभीर प्रभाव डालती हैं। सैन्य शासन के कारण म्यांमार की स्वास्थ्य सेवाएँ पहले ही अत्यधिक कमजोर हो चुकी थीं और अब इस संकट ने इन सेवाओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग तत्काल चिकित्सा सहायता से वंचित हो गए हैं और वे किसी भी प्रकार की उपचार प्रणाली से बाहर हो चुके हैं।
म्यांमार में स्वास्थ्य सेवाओं के संकट का असर केवल इस देश तक ही सीमित नहीं रहेगा,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। मानवता के आधार पर अन्य देशों को म्यांमार की मदद करनी चाहिए,ताकि लोगों को उचित उपचार और सहायता मिल सके। हालाँकि,इस समय सैन्य शासन के कारण स्थिति और भी जटिल हो गई है,लेकिन एकजुट प्रयासों से इस संकट से उबरने का प्रयास किया जा सकता है।
म्यांमार में हुए इस भीषण भूकंप ने केवल भौतिक संरचनाओं को ही नुकसान नहीं पहुँचाया,बल्कि यह देश की स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता और सामाजिक संकट को भी उजागर करता है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है और इसके समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक सहयोग की आवश्यकता है।
