नई दिल्ली,30 अप्रैल (युआईटीवी)- इंडसइंड बैंक की संचालन व्यवस्था पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ) ने सख्त कदम उठाते हुए बैंक के प्रबंधन पर सीधी निगरानी शुरू कर दी है। डेरिवेटिव अकाउंटिंग में भारी चूक और उससे बैंक की नेटवर्थ पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव के बाद,आरबीआई ने बैंक की संचालन निगरानी के लिए एक अंतरिम समिति के गठन को मंजूरी दी है।
यह कदम बैंक के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुमंत कठपालिया और डिप्टी सीईओ अरुण खुराना के इस्तीफों के बाद उठाया गया है। इस पूरी घटना ने भारत के निजी बैंकिंग क्षेत्र में गवर्नेंस को लेकर गंभीर चिंताएँ खड़ी कर दी हैं।
इस संकट की शुरुआत उस समय हुई जब इंडसइंड बैंक ने 10 मार्च को एक आंतरिक समीक्षा के आधार पर खुलासा किया कि बैंक की डेरिवेटिव बुक में अकाउंटिंग विसंगतियाँ पाई गई हैं। यह बताया गया कि इससे दिसंबर 2024 तक बैंक की कुल संपत्ति पर 2.35% तक का असर पड़ सकता है,जो करीब 1,600 करोड़ रुपए के नुकसान के बराबर है।
बैंक के स्वतंत्र ऑडिट में इस विसंगति की पुष्टि हुई। 26 अप्रैल को पेश की गई जाँच रिपोर्ट में यह बताया गया कि गलत अकाउंटिंग प्रैक्टिस के चलते बैंक के प्रॉफिट एंड लॉस खाते पर 1,959.98 करोड़ रुपए का प्रतिकूल संचयी प्रभाव पड़ा है।
सबसे चिंताजनक बात यह थी कि ये विसंगतियाँ काल्पनिक लाभों को रिकॉर्ड करने से संबंधित थीं,खासकर डेरिवेटिव ट्रेडों के अर्ली टर्मिनेशन के मामलों में। यह एक सिस्टमेटिक गवर्नेंस फेल्योर का संकेत था।
इन घटनाओं के चलते पहले डिप्टी सीईओ अरुण खुराना और फिर सीईओ सुमंत कठपालिया ने इस्तीफा दे दिया। इन इस्तीफों के बाद आरबीआई ने तत्काल हस्तक्षेप करते हुए बैंक के संचालन के लिए एक अंतरिम समिति के गठन को मंजूरी दी। यह समिति तब तक कार्य करेगी,जब तक बैंक को एक स्थायी सीईओ नहीं मिल जाता।
बैंक की तरफ से स्टॉक एक्सचेंज को दी गई फाइलिंग में कहा गया है कि उपभोक्ता बैंकिंग प्रमुख सौमित्र सेन और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी अनिल राव इस समिति का हिस्सा होंगे। यह समिति बैंक के दिन-प्रतिदिन के कार्यों की निगरानी और संचालन करेगी।
बोर्ड की निगरानी समिति,जिसमें ऑडिट समिति,मुआवजा और जोखिम प्रबंधन समिति के अध्यक्ष शामिल होंगे,इस अंतरिम समिति पर निगरानी रखेगी।
इसके अलावा, आरबीआई ने बैंक के घाटे का सटीक आकलन सुनिश्चित करने के लिए ग्लोबल ऑडिट फर्म ग्रांट थॉर्नटन भारत को फोरेंसिक ऑडिट करने का निर्देश दिया है। जाँच के प्रारंभिक निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि बैंक द्वारा डेरिवेटिव अकाउंटिंग में गंभीर चूकें की गईं हैं।
बुधवार को इंडसइंड बैंक के शेयरों में तेजी से गिरावट देखी गई। इस पर निवेशकों की प्रतिक्रिया भी स्पष्ट दिखाई दी। बाजार इस घटनाक्रम को बैंकिंग गवर्नेंस की विफलता के रूप में देख रहा है।
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की विसंगतियाँ निवेशकों का भरोसा डगमगाने का कारण बनती हैं,खासकर ऐसे समय में जब भारतीय बैंकिंग प्रणाली को वैश्विक स्तर पर मजबूत और भरोसेमंद माना जा रहा है।
इंडसइंड बैंक ने अपने बयान में कहा है कि वह उच्चतम गवर्नेंस मानकों को बनाए रखने और अपने संचालन की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहा है। बैंक ने कहा कि वह आरबीआई और अन्य नियामकीय संस्थाओं के साथ पूर्ण सहयोग कर रहा है।
बैंक का यह भी कहना है कि अंतरिम समिति की नियुक्ति से संचालन में किसी तरह की बाधा नहीं आएगी और ग्राहक सेवाएँ पूर्ववत जारी रहेंगी। यह प्रकरण निजी बैंकों में गवर्नेंस और आंतरिक नियंत्रणों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि वह बैंकों की सेहत और पारदर्शिता के मामले में जीरो टॉलरेंस नीति अपनाए हुए है। यह मामला अन्य बैंकों के लिए भी सावधान करने वाला संकेत है कि नियामक एजेंसियाँ अब सिर्फ सतही जाँच नहीं,बल्कि गहराई से लेनदेन और अकाउंटिंग प्रक्रियाओं का विश्लेषण कर रही हैं।
इंडसइंड बैंक में सामने आई डेरिवेटिव अकाउंटिंग की विसंगतियाँ एक बड़े वित्तीय और नैतिक संकट की ओर इशारा करती हैं। आरबीआई द्वारा उठाए गए कड़े कदम और अंतरिम समिति का गठन इस बात का प्रमाण हैं कि बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सर्वोपरि है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बैंक जल्द ही एक नए स्थायी नेतृत्व के साथ कैसे अपने खोए हुए भरोसे को वापस पा सकता है और क्या यह प्रकरण भारतीय बैंकिंग नियमन को और अधिक मजबूत करने के लिए नई नीतियों और प्रक्रियाओं की नींव रखेगा।