भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई (तस्वीर क्रेडिट@anod_zote)

भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस बी.आर. गवई,इतिहास रचते हुए संभाला पदभार,राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ

नई दिल्ली,14 मई (युआईटीवी)- भारत के सर्वोच्च न्यायालय को नया नेतृत्व मिल गया है। बुधवार को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। इस महत्वपूर्ण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़,पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

शपथ ग्रहण के बाद जस्टिस गवई ने सभी का अभिवादन किया और मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाया। इस दौरान उन्होंने अपने परिवार की उपस्थिति में अपनी माँ कमलताई गवई के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया,जो एक भावुक और ऐतिहासिक क्षण था।

जस्टिस बी.आर. गवई कई मायनों में ऐतिहासिक हैं। वे भारत के पहले बौद्ध समुदाय से आने वाले चीफ जस्टिस हैं और स्वतंत्रता के बाद दलित समुदाय से बनने वाले दूसरे सीजेआई हैं। इससे पहले जस्टिस के.जी.बालकृष्णन ने इस समुदाय से आने वाले पहले सीजेआई बनने का गौरव प्राप्त किया था।

जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीनों का होगा। हालाँकि,यह अवधि छोटी है, लेकिन उनकी न्यायिक सोच और सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण यह कार्यकाल विशेष रूप से प्रतीकात्मक और महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

अपने करियर के दौरान जस्टिस गवई ने कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसलों में भागीदारी की है। इनमें से प्रमुख फैसले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखना,जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हुआ,बुलडोजर जस्टिस जैसे मामलों में उन्होंने न्याय की सख्त और स्पष्ट दृष्टि दिखाई,
डिमोनेटाइजेशन (नोटबंदी) को संवैधानिक घोषित करने वाले फैसले में भी उन्होंने सहमति दी थी,अनुसूचित जातियों में उप-वर्गीकरण के समर्थन में भी उनका मत रहा, जिससे आरक्षण नीति में और गहराई आई,तेलंगाना की शराब नीति में कविता को जमानत देना,जिससे न्याय की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बल मिला और सीएम रेवंत रेड्डी की आलोचना,जो न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता को दर्शाता है।

जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उनके पिता रघुनाथ गवई एक प्रमुख दलित नेता और महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। सामाजिक न्याय के विचारों से प्रेरित होकर जस्टिस गवई ने भी न्याय व्यवस्था को आम जनता के लिए सुलभ बनाने का लक्ष्य अपनाया।

उन्होंने 16 मार्च 1985 को विधि क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की। अपने करियर के शुरुआती वर्षों में उन्होंने बार के वरिष्ठ वकील राजा एस.भोसले के साथ काम किया,जो उस समय के प्रसिद्ध महाधिवक्ता और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके थे।

1987 के बाद से उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस शुरू की और 1990 से मुख्य रूप से नागपुर बेंच में कार्य किया। वे संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वे कई नगर निगमों और विश्वविद्यालयों के स्थायी वकील रहे,जिनमें नागपुर नगर निगम,अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय प्रमुख हैं।

जस्टिस गवई की नियुक्ति एक सामाजिक संकेत भी है,जो दर्शाता है कि भारत की न्यायिक प्रणाली समावेशी बन रही है। उनका दलित समुदाय से आना और न्यायपालिका के सर्वोच्च पद तक पहुँचना समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणादायक है।

जस्टिस बी.आर. गवई का सीजेआई बनना भारतीय न्यायपालिका के लिए एक नए युग की शुरुआत है। उनके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय से निष्पक्षता,सामाजिक समावेशन और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की उम्मीद की जा रही है। उनके छोटे लेकिन प्रभावशाली कार्यकाल में देश को कई महत्वपूर्ण निर्णयों का साक्षी बनने की संभावना है।