नई दिल्ली,2 जुलाई (युआईटीवी)- भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक,स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा कदम उठाया है। बैंक ने अगस्त 2016 से जुड़े एक लोन खाते को “धोखाधड़ी” के रूप में चिह्नित किया है। इसके साथ ही एसबीआई ने कंपनी के पूर्व निदेशक अनिल धीरूभाई अंबानी का नाम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ) को भेजने का भी फैसला लिया है।
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने सेबी के नियमों के तहत 30 जून 2025 को बीएसई को सौंपी गई फाइलिंग में खुलासा किया कि उसने लोन खाते को धोखाधड़ी घोषित किए जाने की जानकारी शेयर बाजार को दी है।
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने बीएसई फाइलिंग में बताया कि 30 जून 2025 को उसे एसबीआई का पत्र मिला, जिसमें बैंक ने उसके लोन खाते को ‘धोखाधड़ी’ घोषित करने और नियामकीय दिशानिर्देशों के तहत आगे की कार्रवाई की जानकारी दी है। साथ ही कंपनी के पूर्व निदेशक श्री अनिल धीरूभाई अंबानी का नाम भी आरबीआई को भेजा गया है,जैसा कि रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों में कहा गया है।”
एसबीआई द्वारा उठाया गया यह कदम भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में एक सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है कि बैंकों के नियमों की अनदेखी और क्रेडिट में अनुशासनहीनता अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
रिलायंस कम्युनिकेशंस इस समय दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (आईबीसी) के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) से गुजर रही है। यह कंपनी,अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस ग्रुप का हिस्सा है,जो एक समय देश की अग्रणी टेलीकॉम कंपनियों में गिनी जाती थी,लेकिन भारी कर्ज और प्रतिस्पर्धी बाजार के कारण कंपनी आर्थिक संकट में घिर गई और अंततः दिवाला प्रक्रिया में प्रवेश कर गई।
कंपनी ने एक्सचेंज फाइलिंग में बताया, “कंपनी के कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) ने एक समाधान योजना को मंजूरी दे दी है,जिसे अब राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी), मुंबई बेंच की स्वीकृति का इंतजार है।”
एसबीआई ने कहा है कि यह निर्णय उस अवधि से जुड़े लोन और क्रेडिट सुविधाओं के आधार पर लिया गया है,जब कंपनी दिवाला प्रक्रिया के अधीन नहीं थी। यानी यह लोन पुराने हैं और इन्हें नियमानुसार समाधान योजना के तहत हल किया जाना चाहिए।
एसबीआई का कहना है कि उन्होंने दिसंबर 2023, मार्च 2024 और सितंबर 2024 में कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी किए थे,लेकिन इन नोटिसों के जवाब में कंपनी यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि उसने लोन की शर्तों का उल्लंघन क्यों किया तथा बैंक द्वारा पूछे गए सवालों के संतोषजनक जवाब भी नहीं दिए गए। इस वजह से बैंक को यह निर्णय लेना पड़ा कि रिलायंस कम्युनिकेशंस के लोन खाते को धोखाधड़ी की श्रेणी में रखा जाए।
किसी भी लोन खाते को ‘फ्रॉड’ के रूप में वर्गीकृत करना एक गंभीर नियामकीय कदम होता है। ऐसा होने पर संबंधित कंपनी के वित्तीय और कानूनी अधिकार सीमित हो जाते हैं,कंपनी के निदेशकों और प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक जाँच की संभावना भी बढ़ जाती है और आरबीआई के पास भेजा गया नाम,कंपनी के पूर्व निदेशक पर व्यक्तिगत और व्यावसायिक प्रभाव डाल सकता है।
सेबी के नियमों के अनुसार,शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों को अपने निवेशकों को समय-समय पर ऐसी जानकारी देना अनिवार्य होता है,जिससे वे सही निवेश निर्णय ले सकें। इसी के तहत आरकॉम ने यह जानकारी सार्वजनिक की।
निश्चित रूप से,यह खबर आरकॉम के निवेशकों के लिए चिंता का विषय है। हालाँकि,कंपनी पहले से ही दिवालिया हो चुकी है और इसका शेयर बाजार में बहुत सीमित कारोबार होता है,फिर भी ऐसे घटनाक्रम भविष्य में निवेशकों के भरोसे को कमजोर कर सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार,जब कोई बैंक किसी खाते को धोखाधड़ी घोषित करता है,तो अन्य बैंकों और संस्थानों का रुख भी सख्त हो जाता है,संभावित समाधान योजना पर असर पड़ सकता है और कंपनी को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
एसबीआई का यह कदम यह स्पष्ट करता है कि बैंकिंग क्षेत्र अब कर्जदारों की अनदेखी या जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति को सहन नहीं करेगा। अनिल अंबानी जैसे नामचीन कारोबारी की कंपनी के खिलाफ उठाया गया यह कदम एक नजीर बन सकता है,खासकर उन कॉर्पोरेट समूहों के लिए जो लोन लेकर उसे चुकाने में लापरवाही बरतते हैं।
अब निगाहें एनसीएलटी की कार्रवाई और समाधान योजना की मंजूरी पर टिकी हैं। यदि योजना मंजूर होती है,तो आरकॉम के कर्जदारों को कुछ राहत मिल सकती है,लेकिन इस घटनाक्रम ने यह भी जता दिया है कि चाहे कंपनी कितनी भी बड़ी हो, बैंकिंग सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही अनिवार्य है।
यह मामला भारतीय वित्तीय प्रणाली में सुधार,अनुशासन और सख्ती की दिशा में एक और कदम के रूप में देखा जा रहा है।