भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश (तस्वीर क्रेडिट@AIRNewsHindi)

भारत और “भविष्य के लिए संधि” पर भारत की प्रतिबद्धता: एक विस्तृत विश्लेषण

न्यूयॉर्क,18 जुलाई (युआईटीवी)- भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में आयोजित तीसरे अनौपचारिक संवाद में “भविष्य के लिए संधि” (पैक्ट फॉर द फ्यूचर) और इससे जुड़े दस्तावेज़ों, जैसे ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट (जीडीसी) तथा भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणापत्र,के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। यह पहल वैश्विक समुदाय के उभरती और दीर्घकालिक चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत ने इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की समावेशी,दूरदर्शी और परिणामोन्मुख दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया।

“भविष्य के लिए संधि” को 22 सितंबर 2024 को आयोजित एक ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं द्वारा अपनाया गया था। यह समझौता वर्षों की व्यापक बातचीत और सहयोग का परिणाम है,जिसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को आधुनिक बनाना और समकालीन चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ आने वाले समय की जटिलताओं के लिए तैयार रहना है।

इस संधि में तीन मुख्य दस्तावेज़ शामिल हैं,जिसमें भविष्य के लिए संधि (पैक्ट फॉर द फ्यूचर) अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए व्यापक ढाँचा,ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट (जीडीसी) – वैश्विक डिजिटल सहयोग,साइबर सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस गवर्नेंस के लिए रूपरेखा तथा भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणापत्र – सतत विकास और आने वाली पीढ़ियों के अधिकारों की सुरक्षा पर केंद्रित शामिल है।

भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने इस संवाद में स्पष्ट किया कि भारत 2028 में प्रस्तावित समीक्षा को परिणाम आधारित और भविष्य उन्मुख देखना चाहता है। भारत का मानना है कि यह समीक्षा केवल मूल्यांकन तक सीमित न रहकर ठोस कार्यान्वयन कदमों की दिशा में एक स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करे।

हरीश ने जोर देकर कहा कि भारत विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के विस्तार और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना सुधार को अत्यंत महत्वपूर्ण सुधार क्षेत्र मानता है,क्योंकि इन मुद्दों पर अब तक प्रगति अपर्याप्त रही है।

हरीश ने अपने वक्तव्य में कहा कि अधिकांश देश इस बात पर सहमत हैं कि सुरक्षा परिषद को वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए। इससे परिषद की विश्वसनीयता,वैधता और प्रभावशीलता में वृद्धि होगी। उन्होंने यह भी बताया कि 79वें सत्र के दौरान इंटरगवर्नमेंटल नेगोशिएशन (आईजीएन) बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गया,जो सुधार प्रक्रिया की धीमी गति को दर्शाता है।

हरीश ने सदस्य देशों से आह्वान किया कि वे वास्तविक सुधारों की दिशा में प्रयासों को और तेज करें और उन देशों के विरोध का सामना करें,जो मौजूदा स्थिति को यथावत बनाए रखना चाहते हैं। भारत ने टेक्स्ट-आधारित बातचीत जल्द शुरू करने की माँग की,ताकि स्पष्ट लक्ष्य और टाइमलाइन तय किए जा सकें।

भारत ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि यूएन@80 पहल के लक्ष्यों को “भविष्य के लिए संधि” के ढाँचे में शामिल नहीं किया गया। हालाँकि,हरीश ने जोर दिया कि अब आगे बढ़ते हुए इस पहल के कार्यान्वयन और समीक्षा को यूएन@80 के लक्ष्यों के अनुरूप रखा जाना चाहिए।

हरीश ने कहा कि 2028 में होने वाली समीक्षा को 2027 के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) शिखर सम्मेलन के परिणामों से जोड़ा जाना चाहिए,ताकि वैश्विक स्तर पर सतत विकास की प्रगति पर एकीकृत नैरेटिव तैयार किया जा सके।

भारत ने क्षेत्रीय समीक्षाओं और मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय तंत्रों के उपयोग पर जोर दिया। हरीश ने कहा कि समीक्षा प्रक्रिया में चौथा अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण सम्मेलन,विश्व सामाजिक शिखर सम्मेलन,डब्लूएसआईएस+20 समीक्षा (सूचना समाज पर विश्व शिखर सम्मेलन),शांति निर्माण संरचना समीक्षा शामिल होने चाहिए।

इसके अलावा,भारत ने कहा कि हाई-लेवल पॉलिटिकल फोरम (एचएलपीएफ) और आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ईसीओएसओसी) जैसे मौजूदा तंत्रों का भी प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए।

भारत ने जी20,विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसे संगठनों के भीतर चल रही प्रक्रियाओं के साथ बेहतर तालमेल और पूरकता की माँग की। हरीश ने कहा कि खासकर सतत वित्तपोषण और निष्पक्ष व समान वैश्विक वित्तीय संरचना सुनिश्चित करने के लिए इन संगठनों की भूमिका अहम है।

भारत ने कहा कि 2028 की समीक्षा में इन मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए और इसे केवल मूल्यांकन प्रक्रिया न मानकर आगे के क्रियान्वयन के ठोस कदम तय करने का अवसर बनाना चाहिए।

भारत ने ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट के क्रियान्वयन को भी भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। हरीश ने कहा कि जीडीसी का एक अहम परिणाम संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे के तहत एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पैनल की स्थापना और एआई गवर्नेंस पर वैश्विक संवाद शुरू करना है।

उन्होंने आशा जताई कि चल रही वार्ताएँ सफलतापूर्वक समाप्त होंगी और आम सहमति के आधार पर तौर-तरीकों का प्रस्ताव जल्द अपनाया जाएगा।

पर्वतनेनी हरीश ने स्पष्ट कहा कि भारत “भविष्य के लिए संधि” और इसके सभी संबंधित अनुबंधों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सभी हितधारकों के साथ रणनीतिक समन्वय का दृढ़ता से समर्थन करता है। भारत ने दोहराव से बचने और प्रभाव को अधिकतम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

हरीश ने कहा कि भारत सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करने,निरंतर संवाद बनाए रखने और नियमित ब्रीफिंग की अपेक्षा करता है।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र के इस अनौपचारिक संवाद में स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया कि “भविष्य के लिए संधि” केवल एक औपचारिक दस्तावेज़ नहीं,बल्कि वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने का एक मजबूत साधन है। भारत ने 2028 की समीक्षा को परिणाम आधारित बनाने,सुरक्षा परिषद सुधार,वैश्विक वित्तीय ढाँचे में बदलाव, डिजिटल गवर्नेंस और सतत विकास लक्ष्यों को प्राथमिकता देने की दिशा में ठोस सुझाव दिए।

भारत की यह प्रतिबद्धता बताती है कि वह न केवल वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत भूमिका निभाना चाहता है,बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित,न्यायसंगत और समृद्ध विश्व बनाने के लिए भी पूरी तरह समर्पित है।