अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (तस्वीर क्रेडिट@Surender_10K)

फ्रांस जल्द ही फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा,अमेरिका और इजरायल ने जताई नाराजगी

नई दिल्ली,25 जुलाई (युआईटीवी)- फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि फ्रांस जल्द ही फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा। राष्ट्रपति मैक्रों ने यह घोषणा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के जरिए की और बताया कि वह सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की औपचारिक बैठक में इस निर्णय की आधिकारिक घोषणा करेंगे। यह कदम फ्रांस को पहला प्रमुख पश्चिमी देश बना देगा,जो फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देगा। इस ऐलान ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी है, जहाँ एक तरफ फिलिस्तीन ने इसका स्वागत किया है, वहीं इजरायल और अमेरिका ने इसे लेकर नाराजगी जाहिर की है।

मैक्रों ने अपने बयान में कहा कि मध्य पूर्व में न्यायपूर्ण और स्थायी शांति स्थापित करना फ्रांस की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता का हिस्सा है और इसी प्रतिबद्धता के तहत फ्रांस ने यह निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि गाजा में युद्ध को समाप्त करना और वहाँ के नागरिकों को मानवीय सहायता उपलब्ध कराना आज की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। मैक्रों ने यह भी दोहराया कि फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता और इजरायल की सुरक्षा,दोनों ही दो-राष्ट्र समाधान का अनिवार्य हिस्सा हैं। उनके अनुसार, यही एकमात्र रास्ता है,जो मध्य पूर्व में स्थायी शांति सुनिश्चित कर सकता है।

हालाँकि,मैक्रों के इस ऐलान ने इजरायल में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस निर्णय को आतंकवाद को पुरस्कृत करने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला गाजा जैसे एक और ईरानी समर्थित प्रॉक्सी को जन्म देगा,जिससे इजरायल के लिए खतरा और बढ़ेगा। नेतन्याहू ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि इस प्रकार का फिलिस्तीनी राष्ट्र,इजरायल के साथ शांति से नहीं रहेगा,बल्कि इजरायल को मिटाने की कोशिश करेगा। उन्होंने मैक्रों के इस निर्णय को हमास जैसे संगठनों के लिए एक राजनीतिक इनाम बताया और इसे अंतर्राष्ट्रीय शांति के प्रयासों के लिए नुकसानदेह करार दिया।

अमेरिका ने भी फ्रांस के इस कदम पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि अमेरिका,संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की फ्रांस की योजना को दृढ़ता से खारिज करता है। उन्होंने कहा कि यह लापरवाह निर्णय केवल हमास के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देता है और शांति की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को कमजोर करता है। रुबियो ने कहा कि यह फैसला 7 अक्टूबर को हमास के हमले के पीड़ितों के चेहरे पर एक तमाचा है, जिनकी हत्या ने गाजा युद्ध को जन्म दिया।

फिलिस्तीन की ओर से, इस निर्णय का स्वागत किया गया है। फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के उपाध्यक्ष हुसैन अल-शीख ने कहा कि हम मैक्रों के इस ऐतिहासिक निर्णय की सराहना करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कदम अंतर्राष्ट्रीय कानून और फिलिस्तीनी जनता के अधिकारों के प्रति फ्रांस की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह निर्णय फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा और दो-राष्ट्र समाधान के लिए नए अवसर खोलेगा।

फ्रांस में यूरोप की सबसे बड़ी यहूदी और मुस्लिम आबादी निवास करती है,जिससे यह निर्णय घरेलू राजनीति में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। मैक्रों का यह कदम ऐसे समय में आया है,जब गाजा में मानवीय संकट गहराता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में कहा कि गाजा में भुखमरी मानव-निर्मित है। फ्रांस ने इसके लिए इजरायली नाकेबंदी को जिम्मेदार ठहराया है,हालाँकि,इजरायल ने इस आरोप को खारिज कर दिया है।

गौरतलब है कि वर्तमान में 142 देश फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दे चुके हैं या देने की योजना बना रहे हैं। गाजा युद्ध,जो 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के हमले से शुरू हुआ था,के बाद कई देशों ने इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। हाल ही में स्पेन,नॉर्वे, आयरलैंड और स्लोवेनिया ने भी फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी है। स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने मैक्रों के निर्णय का स्वागत किया और कहा कि दो-राष्ट्र समाधान ही स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता है।

मैक्रों का यह निर्णय न केवल फ्रांस की विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव है,बल्कि यह पश्चिमी देशों की फिलिस्तीन को लेकर बदलती सोच का भी संकेत है। लंबे समय से पश्चिमी देशों में फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता को लेकर हिचकिचाहट थी,क्योंकि इससे इजरायल के साथ उनके संबंधों पर असर पड़ सकता था। हालाँकि,गाजा युद्ध में बढ़ती मानवीय त्रासदी और अंतर्राष्ट्रीय दबाव ने कई देशों को इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर किया है।

फ्रांस के इस कदम का वैश्विक कूटनीतिक समीकरणों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। एक ओर,यह निर्णय अरब और मुस्लिम देशों के साथ फ्रांस के संबंधों को मजबूत कर सकता है,वहीं दूसरी ओर यह इजरायल और अमेरिका के साथ उसके संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है। अब दुनिया की नजरें संयुक्त राष्ट्र महासभा की सितंबर बैठक पर होंगी,जहाँ मैक्रों की आधिकारिक घोषणा के बाद अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ और तेज हो सकती हैं।

मध्य पूर्व की राजनीति में यह फैसला एक नया मोड़ साबित हो सकता है,क्योंकि अगर अन्य प्रमुख पश्चिमी देश भी फ्रांस के इस कदम का अनुसरण करते हैं,तो फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता की दिशा में वैश्विक समर्थन और मजबूत हो सकता है। हालाँकि,इजरायल और अमेरिका की कड़ी आपत्तियाँ इस प्रक्रिया में बड़ी बाधा बनी रह सकती हैं। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह ऐतिहासिक फैसला वास्तव में दो-राष्ट्र समाधान को आगे बढ़ाएगा या मध्य पूर्व में तनाव को और गहरा करेगा।