नई दिल्ली,31 जुलाई (युआईटीवी)- नई दिल्ली की सियासत एक बार फिर से गर्म हो गई है,इस बार वजह बना है अफजल गुरु को दी गई फाँसी और उस पर संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान। राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के दौरान अमित शाह ने कांग्रेस और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम पर निशाना साधते हुए कहा कि जब तक चिदंबरम देश के गृह मंत्री रहे,अफजल गुरु को फाँसी नहीं दी गई। उन्होंने कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया कि उसकी प्राथमिकता देश की सुरक्षा नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ और वोटबैंक रही है। इसके जवाब में चिदंबरम ने शाह के बयान को ‘तथ्यों से परे’ और ‘तोड़-मरोड़कर पेश किया गया’ करार दिया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक लंबा पोस्ट साझा करते हुए अमित शाह के आरोपों का तथ्यात्मक जवाब दिया। उन्होंने लिखा कि अफजल गुरु की पत्नी ने अक्टूबर 2006 में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी,जो पूरी कानूनी प्रक्रिया से गुजरती हुई 3 फरवरी 2013 को खारिज हुई। इसके बाद ही अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फाँसी दी गई। चिदंबरम ने बताया कि वे 1 दिसंबर 2008 से 31 जुलाई 2012 तक देश के गृह मंत्री रहे और इस दौरान याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित थी,जिसे कानूनन तब तक निपटाया नहीं जा सकता,जब तक राष्ट्रपति अंतिम निर्णय न लें।
चिदंबरम ने कहा कि वह कानून का पालन कर रहे थे और दया याचिका लंबित होने की स्थिति में फाँसी देना न केवल अमानवीय होता,बल्कि संविधान और न्याय व्यवस्था के खिलाफ भी होता। उन्होंने अमित शाह के संसद में दिए बयान को “राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा” बताते हुए सरकार से अपील की कि ऐसे गंभीर मामलों पर राजनीति न की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि देश की जनता को गुमराह करने वाले बयानों से बचना चाहिए और तथ्यों के आधार पर ही संसद में संवाद होना चाहिए।
हालाँकि,अमित शाह ने अपने बयान में केवल अफजल गुरु की फाँसी में हुई देरी पर ही बात नहीं की,बल्कि कांग्रेस पार्टी की कथित “सुरक्षा विरोधी” मानसिकता पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि जब आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल आता है,तो कांग्रेस हमेशा वोटबैंक की राजनीति करने लगती है। शाह ने विशेष रूप से पी.चिदंबरम के उस हालिया बयान का जिक्र किया,जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से यह पूछा था कि क्या उसके पास इस बात के सबूत हैं कि पहलगाम आतंकी हमला पाकिस्तानी आतंकवादियों ने ही किया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अमित शाह ने कहा कि चिदंबरम ऐसे बयान देकर क्या पाकिस्तानी आतंकियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं? उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत सरकार के पास इस हमले से जुड़े पुख्ता सबूत हैं और ऐसे मामलों में देश के भीतर ही सवाल उठाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
यह मुद्दा राजनीतिक गलियारों में तेजी से फैल गया है और कांग्रेस पार्टी भी अमित शाह के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बता रही है। पार्टी नेताओं ने चिदंबरम का बचाव करते हुए कहा कि वे कानून का पालन कर रहे थे और उनकी नीयत पर सवाल उठाना न केवल अनुचित है,बल्कि यह देश की संवैधानिक प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिह्न लगाने जैसा है।
गौरतलब है कि अफजल गुरु को 2001 में संसद पर हुए हमले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और सुप्रीम कोर्ट ने उसे फाँसी की सजा सुनाई थी। यह मामला लंबे समय तक राजनीतिक और कानूनी बहस का विषय रहा है,खासकर उस वक्त जब फाँसी दी गई। अब एक बार फिर इस मुद्दे को संसद में उठाकर केंद्र और विपक्ष के बीच टकराव की नई लकीर खींच दी गई है।
अमित शाह और पी. चिदंबरम के बीच यह वाकयुद्ध महज अफजल गुरु तक सीमित नहीं है,बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा,आतंकवाद और राजनीतिक नैतिकता जैसे गहरे मुद्दों को भी केंद्र में ले आता है। जहाँ एक ओर सरकार इसे “राष्ट्रवादी” रुख के रूप में दिखा रही है,वहीं विपक्ष इसे “राजनीतिक ध्रुवीकरण” की कोशिश बता रहा है।
अब देखना यह होगा कि यह विवाद आने वाले दिनों में और कितना तूल पकड़ता है और क्या यह लोकसभा और राज्यसभा की आगामी बहसों में भी मुद्दा बना रहेगा। लेकिन इतना तय है कि अफजल गुरु की फाँसी,जो 2013 में निष्पादित हुई,अब 2025 में फिर से सियासी बहस का केंद्र बन गई है।