गांधीनगर,1 अगस्त (युआईटीवी)- भारत ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए स्वदेशी तकनीक पर आधारित पहला 1 मेगावाट क्षमता वाला ग्रीन हाइड्रोजन पावर प्लांट चालू कर दिया है। गुजरात के कांडला स्थित दीनदयाल पत्तन प्राधिकरण (डीपीए) परिसर में इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्घाटन केंद्रीय पत्तन,पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने किया। यह प्लांट देश में पर्यावरण अनुकूल बंदरगाह संचालन और समुद्री क्षेत्र में डीकार्बोनाइजेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है।
इस पावर प्लांट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पूरी तरह से भारतीय इंजीनियरों द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है। इस परियोजना का क्रियान्वयन डीपीए और एलएंडटी की साझेदारी में किया गया है। यह पावर प्लांट हर साल लगभग 140 मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने में सक्षम है,जो बंदरगाह पर ऊर्जा जरूरतों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पूरा करेगा। इससे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होगी और भारत के ग्रीन ट्रांजिशन की दिशा में यह एक निर्णायक कदम साबित होगा।
उद्घाटन समारोह के दौरान केंद्रीय मंत्री सोनोवाल ने कहा कि यह परियोजना न केवल भारत की इंजीनियरिंग क्षमताओं की मिसाल है,बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत और हरित ऊर्जा लक्ष्य की दिशा में एक नया अध्याय है। उन्होंने डीपीए द्वारा ‘मेड इन इंडिया’ पूर्णतः इलेक्ट्रिक ग्रीन टग की पूर्व तैनाती का भी उल्लेख किया और इसे भारत के बंदरगाहों को हरित बनाने की दिशा में एक सशक्त पहल करार दिया।
सोनोवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि यह उपलब्धि भारत के उस हरित परिवर्तन की प्रतीक है,जिसकी कल्पना मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 में की गई थी। उन्होंने कहा कि डीपीए ने एक बार फिर से यह सिद्ध किया है कि भारत में गति,पैमाना और कौशल के समन्वय से किसी भी महत्वाकांक्षी परियोजना को समयबद्ध तरीके से सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है।
सोनोवाल ने विशेष रूप से इस बात पर प्रकाश डाला कि यह 1 मेगावाट प्लांट,भुज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 26 मई को रखी गई 10 मेगावाट क्षमता वाले ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट की आधारशिला का एक भाग है। केवल चार महीनों में इस मॉड्यूल का चालू होना भारत की ग्रीन हाइड्रोजन रणनीति की तीव्रता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने इसे भारत के ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम के विकास में एक नया मानक बताया।
केंद्रीय मंत्री ने इस अवसर पर एलएंडटी की इंजीनियरिंग विशेषज्ञता की भी खुलकर सराहना की और कहा कि इतनी जटिल परियोजना को इतनी सटीकता और गति के साथ पूरा करना एक असाधारण उपलब्धि है। उन्होंने डीपीए के अध्यक्ष सुशील कुमार सिंह और उनकी टीम की भी प्रशंसा करते हुए कहा कि यह टीमवर्क का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसने सरकार के विजन को हकीकत में बदला।
इस उद्घाटन समारोह में केंद्रीय राज्य मंत्री श्री ठाकुर,पत्तन,पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के सचिव टी.के. रामचंद्रन,एलएंडटी और बंदरगाह के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। सभी ने इस परियोजना को भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताया।
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रीन हाइड्रोजन भविष्य की ऊर्जा जरूरतों का स्वच्छ समाधान है और भारत इस क्षेत्र में तेजी से वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। इस पावर प्लांट से उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग बंदरगाह के भीतर संचालन,वाहन ईंधन और संभावित रूप से औद्योगिक उपयोगों में किया जाएगा। इससे कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती की जा सकेगी और ‘नेट ज़ीरो’ के भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में यह एक अहम कड़ी साबित होगा।
भारत सरकार पहले ही ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत इस क्षेत्र में 19,744 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा कर चुकी है। इस मिशन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करना है। यह पावर प्लांट उस दिशा में पहला ठोस कदम है,जो भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता की राह पर भी आगे बढ़ाएगा।
गुजरात के कांडला बंदरगाह का चयन इस परियोजना के लिए रणनीतिक रूप से किया गया है,क्योंकि यह देश के प्रमुख व्यापारिक बंदरगाहों में शामिल है और यहाँ से बड़ी मात्रा में ऊर्जा-गहन गतिविधियाँ संचालित होती हैं। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट के संचालन से न केवल कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी,बल्कि परिचालन लागत में भी दीर्घकालिक रूप से लाभ होगा।
इस परियोजना के पूरा होने के साथ ही भारत ने यह संकेत दे दिया है कि वह हरित ऊर्जा के क्षेत्र में केवल अनुसरण करने वाला देश नहीं रहेगा,बल्कि नेतृत्व करने की दिशा में ठोस और निर्णायक कदम उठाएगा। केंद्रीय मंत्री सोनोवाल द्वारा उद्घाटित यह प्लांट आने वाले समय में अन्य भारतीय बंदरगाहों और औद्योगिक हब्स के लिए एक प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य करेगा।
देश की ऊर्जा सुरक्षा,पर्यावरणीय जिम्मेदारी और नवाचार को एक साथ जोड़ती यह परियोजना निश्चित रूप से भारत के हरित भविष्य की नींव को और मजबूत करेगी। यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से महत्वपूर्ण है,बल्कि इससे रोजगार सृजन,तकनीकी विकास और अंतर्राष्ट्रीय निवेश के भी व्यापक अवसर खुलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘ग्रीन इंडिया’ के सपने को साकार करने की दिशा में यह एक सशक्त कदम है,जिसे आने वाली पीढ़ियाँ एक ऐतिहासिक मोड़ के रूप में याद करेंगी।