मुंबई,1 अगस्त (युआईटीवी)- प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिलायंस ग्रुप (आरएएजीए कंपनियों) के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अनिल अंबानी को कथित रूप से 17,000 करोड़ रुपये की लोन धोखाधड़ी के मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है। सूत्रों के मुताबिक,उन्हें 5 अगस्त को दिल्ली स्थित ईडी मुख्यालय में पेश होने के लिए कहा गया है। यह समन ऐसे समय पर आया है,जब ईडी की जाँच एजेंसी इस बड़े आर्थिक घोटाले के गहरे स्तर तक पहुँचने की कोशिश कर रही है। यह मामला भारतीय कॉर्पोरेट जगत में हाल के वर्षों की सबसे बड़ी धोखाधड़ी में से एक माना जा रहा है।
बीते हफ्ते प्रवर्तन निदेशालय ने अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस ग्रुप से संबंधित विभिन्न परिसरों पर छापेमारी की थी। ये छापे मुंबई और दिल्ली में स्थित कई परिसरों में मारे गए,जिनमें समूह से जुड़े कार्यालयों और व्यक्तियों के आवास शामिल थे। ईडी अधिकारियों ने छापेमारी के दौरान बड़ी संख्या में दस्तावेज,हार्ड ड्राइव,मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल डेटा जब्त किया। छापेमारी की यह कार्रवाई यस बैंक लोन घोटाले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जाँच का ही हिस्सा थी,जो 24 जुलाई से शुरू हुई थी।
यह मामला पहली बार तब सामने आया जब केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने यस बैंक लोन धोखाधड़ी को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज की। इसके बाद ईडी ने भी धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामले की जाँच शुरू कर दी। ईडी की प्रारंभिक जाँच में सामने आया है कि रिलायंस ग्रुप ने बैंकों से लिए गए ऋण को फर्जी कंपनियों के माध्यम से कहीं और भेजा और उन धनराशियों का दुरुपयोग किया गया। जाँच एजेंसी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस फंड डायवर्जन में कौन-कौन लोग और कंपनियाँ शामिल थीं और इनका नेटवर्क किस हद तक फैला हुआ है।
जाँच में यह भी सामने आया है कि रिलायंस ग्रुप द्वारा लिए गए इन ऋणों की प्रक्रिया में बैंक अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। विशेष रूप से यस बैंक के प्रमोटर और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को रिश्वत देकर लोन पास कराए गए,इस दिशा में भी जाँच की जा रही है। ईडी को शक है कि लोन मंजूर किए जाने से ठीक पहले संबंधित बैंक अधिकारियों को कथित रूप से भुगतान किए गए थे,जो रिश्वतखोरी की एक सुनियोजित योजना की ओर इशारा करता है।
प्रारंभिक जाँच रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2019 के बीच यस बैंक से लगभग 3,000 करोड़ रुपये का लोन ऐसे ग्रुप को दिया गया,जो उसकी साख और वित्तीय स्थिति को देखते हुए विवादास्पद था। लोन देने की प्रक्रिया में बैंक की आंतरिक नीति और नियमों की अनदेखी की गई और धनराशि को ऐसे खातों में भेजा गया जिनका उद्देश्य ही धन का दुरुपयोग करना था।
इस मामले की जाँच में ईडी को अन्य सरकारी और नियामक एजेंसियों का भी सहयोग मिल रहा है। नेशनल हाउसिंग बैंक,भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी),नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (एनएफआरए) और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसी संस्थाओं ने ईडी के साथ वित्तीय जानकारी साझा की है,जिससे जाँच को गहराई तक ले जाया जा सके।
जाँच एजेंसी को संदेह है कि यह केवल एक वित्तीय अनियमितता नहीं,बल्कि एक व्यापक साजिश थी जिसके तहत जनता के पैसे का दुरुपयोग किया गया और देश की बैंकिंग प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुँचाया गया। इसी कारण अनिल अंबानी को सीधे पूछताछ के लिए बुलाया गया है,ताकि वे इस मामले में अपनी भूमिका को स्पष्ट कर सकें और जिन वित्तीय निर्णयों पर सवाल उठे हैं,उनके बारे में जवाब दे सकें।
इस पूरे घटनाक्रम ने भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में हलचल मचा दी है। अनिल अंबानी,जो कभी भारत के सबसे अमीर उद्योगपतियों में गिने जाते थे,अब एक गंभीर जाँच के घेरे में हैं। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ईडी की पूछताछ और आगे की जाँच किस दिशा में जाती है और क्या इसमें अन्य बड़े नामों की संलिप्तता भी उजागर होती है। यह मामला केवल एक व्यक्ति या एक कंपनी तक सीमित नहीं,बल्कि पूरी वित्तीय प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है।