लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह (तस्वीर क्रेडिट@sengarlive)

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने संभाला थल सेना के उप सेनाध्यक्ष का दायित्व, वीरता और समर्पण की मिसाल बने

नई दिल्ली,2 अगस्त (युआईटीवी)- भारतीय सेना के लिए 1 अगस्त 2025 एक ऐतिहासिक दिन बन गया,जब लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने भारतीय थल सेना के उप सेनाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। पैरा रेजिमेंट (स्पेशल फोर्सेस) की चौथी बटालियन से संबद्ध इस उच्च अधिकारी का सैन्य जीवन देशभक्ति,साहस और त्याग का प्रतीक रहा है। 1987 में कमीशन प्राप्त करने के बाद से उन्होंने अपनी सेवाओं के माध्यम से कई बार राष्ट्र को गौरवान्वित किया है।

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने अपनी शिक्षा लखनऊ के प्रतिष्ठित ला मार्टिनियर कॉलेज और लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इसके पश्चात वे भारतीय सैन्य अकादमी,देहरादून से सैन्य प्रशिक्षण लेकर भारतीय सेना में अधिकारी के रूप में शामिल हुए। एक युवा सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में उन्होंने श्रीलंका में भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) के अभियानों में भाग लिया,जो 1987 में भारत द्वारा लिट्टे के विरुद्ध चलाया गया था। अक्टूबर 1987 में जब उनकी बटालियन 4 पैरा को श्रीलंका के जाफना क्षेत्र में तैनात किया गया,तो उन्होंने वहाँ कई महत्त्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया।

22 जुलाई 1989 को एक ऐसा दिन था,जो न केवल उनके सैन्य जीवन बल्कि भारतीय सेना के इतिहास में साहस का प्रतीक बन गया। उस दिन सेकेंड लेफ्टिनेंट पुष्पेन्द्र सिंह 13-सदस्यीय क्विक रिएक्शन टीम का नेतृत्व कर रहे थे,जो ईरानामाडु से किलिनोच्चि की ओर बढ़ रही थी। इस दौरान उनकी टुकड़ी पर लिट्टे उग्रवादियों ने घात लगाकर हमला किया। अत्यंत विषम परिस्थितियों में उन्होंने अद्वितीय नेतृत्व और साहस का प्रदर्शन करते हुए आतंकवादियों को मुँहतोड़ जवाब दिया। इस मुठभेड़ में चार लिट्टे आतंकवादी मारे गए,जबकि कई अन्य घायल हुए। हालाँकि,इस संघर्ष में उनके पाँच साथी वीरगति को प्राप्त हुए और वे स्वयं भी गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना न केवल उनके अदम्य साहस को दर्शाती है,बल्कि उनके नेतृत्व गुणों की भी पुष्टि करती है।

थल सेना के उप सेनाध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के उपलक्ष्य में लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने उन पाँच शहीदों को याद करते हुए उनके परिजनों और वीर नारियों को इस क्षण का साक्षी बनने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने उनके साथ नेशनल वॉर मेमोरियल पहुँचकर ‘एटरनल फ्लेम’ पर श्रद्धासुमन अर्पित किए और ‘त्याग चक्र’ पर पुष्पचक्र चढ़ाया। इस स्मारक पर उस संघर्ष में वीरगति को प्राप्त पाँचों शहीदों के नाम अंकित हैं। यह कदम उनके संवेदनशील और कृतज्ञ नेतृत्व को दर्शाता है,जो केवल एक सैन्य अधिकारी नहीं बल्कि सैनिकों के परिवारों के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं।

इस पद पर आसीन होने से पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह सेना मुख्यालय में महानिदेशक,परिचालन लॉजिस्टिक्स एवं रणनीतिक आवागमन के पद पर कार्यरत थे। अपने 38 वर्षों के शानदार सैन्य जीवन में उन्होंने ऑपरेशन पवन,ऑपरेशन मेघदूत,ऑपरेशन ऑर्किड और ऑपरेशन रक्षक जैसे कई प्रमुख सैन्य अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने कश्मीर घाटी और नियंत्रण रेखा पर एक स्पेशल फोर्स यूनिट की कमान संभाली,जहाँ आतंकवाद विरोधी अभियानों में उनकी रणनीति और नेतृत्व प्रशंसनीय रहा।

इसके अतिरिक्त उन्होंने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चलाए गए ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के दौरान एक माउंटेन डिवीजन की कमान संभाली और सफलतापूर्वक उत्तर और पूर्वी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की। इसके बाद वे हिमाचल प्रदेश में स्थित एक कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग भी रहे,जो जम्मू,सांबा और पठानकोट जैसे अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था का नेतृत्व करती है। यह अनुभव उन्हें पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं की संचालनात्मक रणनीतियों की गहन समझ प्रदान करता है।

शैक्षिक योग्यता की दृष्टि से भी लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह अत्यंत समृद्ध हैं। उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन से स्टाफ कोर्स,कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट सिकंदराबाद से हायर डिफेंस मैनेजमेंट कोर्स और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (आईआईपीए) से एडवांस प्रोफेशनल प्रोग्राम इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन किया है। इसके अलावा उन्होंने ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से प्रबंधन अध्ययन में स्नातकोत्तर और पंजाब विश्वविद्यालय से एम.फिल. की उपाधि प्राप्त की है।

उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा मेडल (एवीएसएम) और सेना मेडल (एसएम) से सम्मानित किया गया है,जो उनकी वीरता,समर्पण और सेवा भावना का प्रतीक हैं।

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह का यह नया दायित्व भारतीय सेना के लिए एक नई प्रेरणा है। उनके अनुभव,रणनीतिक दृष्टिकोण और मानवीय नेतृत्व से थल सेना को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने की उम्मीद की जा रही है। वे न केवल एक सैन्य अधिकारी हैं,बल्कि एक सच्चे योद्धा हैं,जिन्होंने अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा और देश के प्रति अटूट समर्पण का परिचय दिया है।