डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@SonOfBharat7)

भारत-पाक संघर्ष पर ट्रंप ने अपनी मध्यस्थता की पेशकश फिर से दोहराई,भारत ने दो टूक कहा- नहीं चाहिए तीसरा पक्ष

वाशिंगटन,4 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश करते हुए यह दावा किया है कि उन्होंने विश्व स्तर पर कई पुराने और जटिल संघर्षों को समाप्त करने में भूमिका निभाई है। ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है,जब भारत सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि वह अपने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ किसी भी विवाद को केवल द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाना चाहती है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी।

रविवार को ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट ‘ट्रुथ सोशल’ पर अमेरिकी रेडियो होस्ट और लेखक चार्लमैगने था गॉड की आलोचना करते हुए लिखा कि लेखक को उनके द्वारा किए गए कार्यों की कोई जानकारी नहीं है। ट्रंप ने लिखा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान “पाँच युद्ध समाप्त किए”,जिनमें सबसे प्रमुख कांगो और रवांडा के बीच 31 वर्षों से चला आ रहा खूनी संघर्ष था,जिसमें 70 लाख लोगों की जान गई थी। उन्होंने आगे लिखा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराने में भी मध्यस्थता की थी और यह उनके उन उपलब्धियों में शामिल है,जिनका दुनिया में पर्याप्त सम्मान नहीं हुआ।

ट्रंप ने अपनी पोस्ट में यह भी जोड़ा कि ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को उन्होंने नष्ट किया,अमेरिका की दक्षिणी सीमा को ‘खतरनाक’ स्थिति से बाहर निकाला और अमेरिका को दुनिया की सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्था में बदल दिया।

ट्रंप के इस बयान से कुछ दिन पहले व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने प्रेस ब्रीफिंग में यह दावा किया था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने छह महीने के कार्यकाल में थाईलैंड और कंबोडिया,इज़राइल और ईरान,रवांडा और कांगो,भारत और पाकिस्तान,सर्बिया और कोसोवो तथा मिस्र और इथियोपिया के बीच संघर्ष समाप्त कराए हैं।

कैरोलिन लेविट ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप का रिकॉर्ड यह दर्शाता है कि उन्होंने प्रत्येक माह औसतन एक शांति समझौता कराया है और इसलिए उन्हें प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्व समुदाय को ट्रंप के इन प्रयासों को गंभीरता से लेना चाहिए और उन्हें वह वैश्विक मान्यता देनी चाहिए,जिसके वे हकदार हैं।

हालाँकि,भारत सरकार ट्रंप के दावों से इत्तेफाक नहीं रखती। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीते सप्ताह ऑपरेशन सिंदूर पर राज्यसभा में हुई चर्चा के दौरान स्पष्ट किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच 22 अप्रैल से 16 जून के बीच कोई संवाद नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि अमेरिका समेत कई देशों ने उस समय की स्थिति को समझने के लिए भारत से संपर्क किया था,लेकिन भारत ने उन्हें स्पष्ट कर दिया कि भारत-पाकिस्तान के मुद्दों में कोई बाहरी हस्तक्षेप या मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी।

जयशंकर ने सदन में कहा कि भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट है कि पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की बातचीत या समाधान केवल द्विपक्षीय रूप से और शांतिपूर्ण तरीके से ही संभव है। भारत पहले भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को ठुकरा चुका है और भविष्य में भी यही नीति बरकरार रहेगी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक संवाद सैन्य संचालन महानिदेशकों (डीजीएमओ) के स्तर पर हो सकता है,लेकिन इसमें किसी भी अन्य देश की कोई भूमिका नहीं होगी।

जयशंकर ने यह भी बताया कि जब ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत हुई थी,तो कई देशों ने घटनाक्रम को लेकर जानकारी माँगी थी,लेकिन भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी और दोहराया था कि किसी भी मसले पर भारतीय पक्ष की सहमति और पहल के बिना कोई भी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी।

भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से कश्मीर,आतंकवाद और सीमा पार गोलीबारी जैसे मुद्दों को लेकर तनाव बना रहता है। भारत हमेशा से यह रुख अपनाता रहा है कि दोनों देशों के बीच बातचीत तभी हो सकती है,जब पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाए और सीमा पर शांति बनाए रखे।

ट्रंप का भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का दावा कोई नया नहीं है। अपने पूर्व कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंचों से यह दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने के लिए कहा था। उस समय भी भारत सरकार ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया था और कहा था कि भारत किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं करता।

इस ताजा घटनाक्रम में जहाँ ट्रंप अपनी वैश्विक कूटनीतिक सफलताओं को रेखांकित करने की कोशिश कर रहे हैं,वहीं भारत अपने रुख पर कायम है कि संप्रभुता,सम्मान और आत्मनिर्भर नीति के तहत वह किसी बाहरी दबाव या मध्यस्थता को मंजूर नहीं करेगा।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप इस तरह के दावों से अमेरिकी घरेलू राजनीति में अपनी छवि को मजबूत करना चाहते हैं,खासकर ऐसे समय में जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किए जाने की चर्चाएँ तेज हो रही हैं,लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट है कि भारत,चाहे वह किसी भी सरकार के अधीन हो,अपनी विदेश नीति के मूल सिद्धांतों से पीछे नहीं हटेगा।

ट्रंप के बयान का पाकिस्तान की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन भारत की ओर से विदेश मंत्री के स्पष्ट वक्तव्य ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की संभावना फिलहाल शून्य है। भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य में किसी भी बातचीत का आधार सिर्फ आपसी सहमति और द्विपक्षीय प्रक्रिया पर ही टिका रहेगा।