न्यूयॉर्क,6 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत को रूस से तेल खरीदने पर भारी टैरिफ लगाने की धमकी के बाद वैश्विक मंच पर तनाव का माहौल बन गया है। इस बयान पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया के बावजूद अमेरिकी विदेश विभाग ने सीधे तौर पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। मंगलवार को एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान जब विदेश मंत्री एस.जयशंकर के बयानों पर प्रतिक्रिया माँगी गई,तो अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह किसी अन्य देश की नीति या बयान पर टिप्पणी नहीं करेंगी।
प्रवक्ता ब्रूस ने पत्रकारों के सवालों पर कुछ हद तक व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि “मैं तो मुश्किल से यहाँ भी ऐसा कर पाती हूँ,” यह संकेत देते हुए कि वह अमेरिकी नीतियों पर टिप्पणी करने में भी सतर्क रहती हैं,तो अन्य देशों के बयानों पर प्रतिक्रिया देना और भी कठिन है। हालाँकि,उन्होंने यह भी जोड़ा कि राष्ट्रपति ट्रंप ही अमेरिका की विदेश नीति के मार्गदर्शक हैं और यह उन्हीं पर निर्भर करेगा कि भारत जैसे देशों द्वारा रूस से तेल खरीदने पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया दी जाए।
यह बयान उस समय आया है,जब राष्ट्रपति ट्रंप ने शुक्रवार को घोषणा की थी कि अगर भारत रूस से तेल और उससे बने उत्पादों की खरीद और पुनः निर्यात जारी रखता है,तो अमेरिका उसके खिलाफ 24 घंटे के भीतर 25 प्रतिशत से अधिक का भारी टैरिफ लागू करेगा। ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया कि भारत जैसे देश रूसी तेल खरीदकर “रूसी युद्ध मशीन” को ईंधन दे रहे हैं,जो यूक्रेन में हो रहे युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने के समान है।
ट्रंप के इस बयान के बाद भारत में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को अप्रत्यक्ष रूप से इस धमकी की आलोचना करते हुए कहा कि “हम एक जटिल और अनिश्चित समय में जी रहे हैं। हमारी सामूहिक इच्छा है कि वैश्विक व्यवस्था निष्पक्ष और प्रतिनिधित्वात्मक हो,न कि कुछ गिने-चुने देशों के प्रभुत्व वाली।” हालाँकि,जयशंकर ने अपने बयान में ट्रंप का सीधा उल्लेख नहीं किया,लेकिन उनका संदेश स्पष्ट रूप से उन ताकतों की ओर इशारा करता है,जो एकतरफा दबाव बनाकर अपनी नीतियाँ थोपना चाहती हैं।
भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस विषय पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत एक बड़ी और उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और वह अपने राष्ट्रीय हितों तथा आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगा। मंत्रालय के अनुसार,ऊर्जा की आवश्यकता और आपूर्ति का संतुलन बनाए रखना भारत की प्राथमिकता है और इसके लिए वह सभी वैध स्रोतों से आयात करने का अधिकार रखता है।
जयशंकर ने एक और महत्वपूर्ण बात उठाई,जो पश्चिमी देशों के दोहरे मानदंडों की ओर इशारा करती है। उन्होंने बताया कि यूरोपीय संघ का रूस के साथ व्यापार अब भी 67.5 अरब डॉलर के स्तर पर है। इसके अलावा,अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम,पैलेडियम,उर्वरक और अन्य रसायनों का आयात कर रहा है। ऐसे में भारत को केवल तेल खरीदने के लिए निशाना बनाना एकतरफा और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण दर्शाता है।
भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में हाल के वर्षों में मजबूती आई है,लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से भारत के बढ़ते तेल आयात ने अमेरिका को असहज किया है। हालाँकि,भारत हमेशा से यह दोहराता रहा है कि वह अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र रूप से संचालित करता है और ऊर्जा आपूर्ति उसके राष्ट्रीय हितों से जुड़ी प्राथमिकता है। रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना भारत के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी है और इससे उसके उपभोक्ताओं को सस्ती ऊर्जा मिलती है।
अमेरिका की नाराजगी के बावजूद,भारत ने वैश्विक मंचों पर बार-बार दोहराया है कि वह किसी गुट का हिस्सा नहीं है और उसकी प्राथमिकता बहुपक्षीय,संतुलित और न्यायपूर्ण वैश्विक व्यवस्था की स्थापना है। अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा इस मुद्दे पर चुप्पी साधने और जिम्मेदारी ट्रंप पर डालने से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिकी प्रशासन फिलहाल इस विषय को लेकर असमंजस में है और यह देखना चाहता है कि ट्रंप आगे क्या कदम उठाते हैं।
ट्रंप का यह बयान और उस पर विदेश विभाग की सतर्क प्रतिक्रिया यह भी दर्शाती है कि अमेरिका के अंदर भी इस विषय को लेकर स्पष्ट नीति तय नहीं है। वहीं भारत ने संकेत दे दिया है कि वह किसी भी बाहरी दबाव में नहीं आएगा और अपने निर्णय खुद करेगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप अपने टैरिफ की धमकी को हकीकत में बदलते हैं या फिर भारत और अमेरिका के रणनीतिक संबंध इस चुनौती को भी पार कर जाएँगे। फिलहाल,अंतर्राष्ट्रीय मंच पर यह मुद्दा कूटनीतिक संतुलन की परीक्षा बन चुका है।