नई दिल्ली,9 अगस्त (युआईटीवी)- बिहार में मतदाता सूची के प्रारूप प्रकाशन के नौ दिन बीत जाने के बाद भी किसी भी राजनीतिक दल की ओर से कोई आपत्ति या दावा दर्ज नहीं कराया गया है। चुनाव आयोग ने शनिवार को जानकारी देते हुए कहा कि 1 अगस्त को जारी की गई प्रारूप मतदाता सूची को लेकर अब तक किसी भी पार्टी ने कोई औपचारिक शिकायत या सुधार की माँग नहीं की है। यह स्थिति तब है,जब विपक्ष लगातार एसआईआर प्रक्रिया का विरोध कर रहा है और बड़ी संख्या में योग्य मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जाने का आरोप लगा रहा है।
चुनाव आयोग का कहना है कि उसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिहार की अंतिम मतदाता सूची में कोई भी योग्य मतदाता छूटने न पाए और कोई भी अयोग्य मतदाता सूची में शामिल न हो। इसीलिए 1 अगस्त को बूथ-वार प्रारूप मतदाता सूची प्रकाशित की गई थी,जिसे सभी राजनीतिक दलों के साथ साझा भी किया गया। आयोग ने स्पष्ट किया है कि अगर सूची में किसी भी प्रकार की त्रुटि,नाम हटाने या सुधार की आवश्यकता हो,तो इसके लिए दावे और आपत्तियाँ दर्ज कराई जानी चाहिए।
दिलचस्प बात यह है कि जिन दलों के नेता और प्रवक्ता मीडिया में मतदाता सूची से लोगों को बाहर करने के आरोप लगा रहे हैं,उन्होंने भी अब तक इस मसौदा सूची पर कोई आधिकारिक आपत्ति नहीं दर्ज कराई है। आयोग के अनुसार,न तो किसी राजनीतिक दल के बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) ने और न ही पार्टी के किसी अन्य प्रतिनिधि ने मतदाता सूची में नाम हटाए जाने,गलत प्रविष्टियों या सुधार को लेकर कोई दावा किया है।
चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि बिहार के सभी 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने अपने बीएलए की संख्या 1,38,680 से बढ़ाकर 1,60,813 कर दी है। यह बढ़ोतरी मतदाता सूची से जुड़े कार्यों की निगरानी और सत्यापन को मजबूत करने के लिए की गई है। आयोग का मानना है कि बीएलए की अधिक संख्या से मतदाता सूची के सत्यापन की प्रक्रिया और प्रभावी होगी।
बिहार इस मामले में भी देश में पहला राज्य बन गया है,जिसने लंबी कतारों से बचने के लिए प्रति बूथ मतदाताओं की संख्या 1,200 तक सीमित कर दी है। इस निर्णय के बाद मतदान केंद्रों की संख्या 77,895 से बढ़ाकर 90,712 कर दी गई है। इसके साथ ही,बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) की संख्या भी उतनी ही बढ़ा दी गई है,ताकि हर मतदान केंद्र पर पर्याप्त कर्मचारी उपलब्ध रहें और मतदाताओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
मतदाताओं की सहायता के लिए आयोग ने इस बार एक और कदम उठाया है। स्वयंसेवकों की संख्या 1 लाख तक बढ़ाई जा रही है,जो मतदान के दिन मतदाताओं को मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करेंगे। चुनाव आयोग का कहना है कि यह कदम विशेष रूप से बुजुर्गों,दिव्यांगों और पहली बार मतदान करने वालों के लिए मददगार साबित होगा।
हालाँकि,विपक्षी दलों द्वारा सार्वजनिक मंचों पर लगाए जा रहे आरोप और आयोग के सामने दर्ज न की गई कोई भी आपत्ति,दोनों के बीच एक बड़ा विरोधाभास नजर आता है। अगर वाकई में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं,तो यह सवाल उठता है कि संबंधित दलों ने अब तक इसके खिलाफ कोई औपचारिक कदम क्यों नहीं उठाया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुप्पी दो कारणों से हो सकती है। पहला, हो सकता है कि विपक्षी दल केवल राजनीतिक माहौल बनाने के लिए यह मुद्दा उठा रहे हों और उन्हें जमीनी स्तर पर कोई बड़ी गड़बड़ी न मिली हो। दूसरा,यह भी संभव है कि पार्टी संगठन के स्तर पर सुस्ती या समन्वय की कमी के कारण दावे और आपत्तियाँ दर्ज कराने की प्रक्रिया समय पर शुरू नहीं हो पाई हो।
चुनाव आयोग ने एक बार फिर सभी दलों और आम मतदाताओं से अपील की है कि वे प्रारूप मतदाता सूची की जाँच करें और अगर कोई त्रुटि मिले तो समय रहते अपने दावे और आपत्तियाँ दर्ज कराएँ। आयोग का कहना है कि मतदाता सूची में पारदर्शिता और सटीकता बनाए रखना लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती के लिए अनिवार्य है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि 1 अगस्त से शुरू हुई इस प्रक्रिया के शेष दिनों में क्या राजनीतिक दल अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और मतदाता सूची से जुड़े मुद्दों पर औपचारिक रूप से अपनी आपत्तियाँ दर्ज कराएँगे या फिर यह मामला केवल बयानबाजी तक ही सीमित रह जाएगा।