गाज़ा में हमले में अल जज़ीरा के पत्रकार अनस अल-शरीफ की मौत (तस्वीर क्रेडिट@jpsin1)

गाज़ा में हमले में अल जज़ीरा के पत्रकार अनस अल-शरीफ की मौत,इज़रायल ने लगाए हमास से जुड़े होने के आरोप

यरूशलम,11 अगस्त (युआईटीवी)- गाज़ा पट्टी में चल रहे संघर्ष के बीच सोमवार को इज़रायली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने पुष्टि की कि एक हमले में अल जज़ीरा के पत्रकार अनस अल-शरीफ की मौत हो गई। इज़रायल का दावा है कि अल-शरीफ हमास में एक आतंकवादी सेल का प्रमुख था और उसने इज़रायली नागरिकों व आईडीएफ सैनिकों पर रॉकेट हमलों की योजना और क्रियान्वयन में भूमिका निभाई थी। इस घटना ने पत्रकारिता,युद्ध और आतंकी संगठनों के बीच के जटिल और संवेदनशील संबंधों पर एक नई बहस छेड़ दी है।

आईडीएफ ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि अल-शरीफ के साथ उनके तीन अन्य सहयोगी — इब्राहिम जहीर,मोमेन अलीवा और मोहम्मद नौफल भी मारे गए। इज़रायली सेना का दावा है कि अल-शरीफ न केवल हमास से जुड़ा हुआ था,बल्कि गाज़ा पट्टी में सक्रिय एक आतंकी समूह का नेतृत्व कर रहा था,जो रॉकेट हमलों के जरिए इज़रायल के भीतर असैन्य क्षेत्रों को निशाना बना रहा था।

आईडीएफ ने इस दावे के समर्थन में खुफिया जानकारी और दस्तावेज़ प्रस्तुत किए,जिनमें कथित तौर पर हमास से जुड़ी सामग्री पाई गई है। इन दस्तावेजों में कर्मियों की सूची,आतंकी प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की लिस्ट,टेलीफोन डायरेक्टरी और वेतन के रिकॉर्ड शामिल हैं। सेना का कहना है कि ये सभी प्रमाण स्पष्ट करते हैं कि अल-शरीफ हमास के लिए एक सक्रिय आतंकवादी के रूप में काम कर रहा था। इज़रायल ने आगे कहा कि इन दस्तावेज़ों से यह भी संकेत मिलता है कि अल-शरीफ का कतर स्थित मीडिया नेटवर्क,अल जज़ीरा,से भी संबंध था।

सेना ने यह भी याद दिलाया कि अक्टूबर महीने में गाज़ा में जब्त किए गए कुछ अन्य दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया गया था,जिनसे अल-शरीफ के हमास के सैन्य विंग के साथ संबंध की पुष्टि हुई थी। आईडीएफ के अनुसार,अल जज़ीरा ने इस तथ्य को नकारने की कोशिश की थी,लेकिन नए दस्तावेज़ एक बार फिर यह साबित करते हैं कि वह आतंकवादी गतिविधियों में शामिल था।

इज़रायल ने इस हमले के संबंध में यह भी कहा कि उन्होंने इसे अंजाम देने से पहले नागरिक हताहतों को कम करने के लिए कई सावधानियाँ बरती थीं। इसके लिए सटीक निशाने वाले हथियारों का इस्तेमाल किया गया,हवाई निगरानी की गई और अतिरिक्त खुफिया आकलन किया गया,ताकि हमले के दौरान निर्दोष नागरिकों की जान बचाई जा सके।

अल-शरीफ,जो अपनी मौत से पहले सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थे,गाज़ा में इज़रायली बमबारी के बारे में लगातार पोस्ट कर रहे थे। वह विशेष रूप से एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर सक्रिय थे,जहाँ से वह गाज़ा की स्थिति,मानवीय संकट और हमलों की जानकारी साझा करते थे। उनकी मौत के बाद,उनके सहयोगियों ने उनके अकाउंट से एक पहले से लिखा हुआ संदेश साझा किया। इसमें लिखा था, “अगर मेरे ये शब्द आप तक पहुँचें,तो जान लें कि इज़रायल मुझे मारने और मेरी आवाज़ को खामोश करने में कामयाब हो गया है।”

यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और दुनिया भर में पत्रकारों, मानवाधिकार संगठनों और आम लोगों के बीच बहस छिड़ गई। कई लोग अल-शरीफ की मौत को पत्रकारिता पर हमला मान रहे हैं,जबकि इज़रायल का कहना है कि उन्होंने एक सक्रिय आतंकवादी को निशाना बनाया है,न कि एक स्वतंत्र पत्रकार को।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अल जज़ीरा की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह मीडिया संगठन लंबे समय से पश्चिम एशिया के संघर्षों में गहराई से रिपोर्टिंग करता रहा है और कई बार इज़रायल के निशाने पर भी रहा है। इज़रायल के अनुसार,प्रेस की स्वतंत्रता को आतंकवादी गतिविधियों के लिए ढाल नहीं बनाया जा सकता। वहीं,अल जज़ीरा और उनके समर्थकों का कहना है कि पत्रकारों को निशाना बनाना युद्ध अपराध के बराबर है और यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।

गाज़ा में मौजूदा हालात पहले से ही बेहद तनावपूर्ण हैं। इज़रायल और हमास के बीच जारी संघर्ष में हजारों लोगों की जान जा चुकी है,जिनमें बड़ी संख्या में नागरिक भी शामिल हैं। इस पृष्ठभूमि में अल-शरीफ की मौत ने एक नई संवेदनशीलता जोड़ दी है। अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठन इस घटना की स्वतंत्र जाँच की माँग कर रहे हैं,ताकि यह तय किया जा सके कि अल-शरीफ वास्तव में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल थे या केवल अपनी पत्रकारिता के कारण निशाना बनाए गए।

गाज़ा में मौजूद लोगों का कहना है कि अल-शरीफ को स्थानीय समुदाय में एक साहसी पत्रकार के रूप में जाना जाता था,जो संघर्ष के बीच से सच्चाई सामने लाने की कोशिश करते थे। वहीं,इज़रायल के समर्थकों का मानना है कि यदि वह वास्तव में हमास से जुड़े थे,तो उनकी पहचान एक पत्रकार से अधिक एक लड़ाके की थी और ऐसे में उन्हें सैन्य कार्रवाई में निशाना बनाना उचित था।

यह घटना न केवल गाज़ा और इज़रायल के बीच के संघर्ष की जटिलताओं को दर्शाती है,बल्कि यह भी दिखाती है कि युद्ध क्षेत्रों में पत्रकारिता कितनी खतरनाक और विवादित हो सकती है। आने वाले दिनों में इस पर और खुलासे हो सकते हैं,लेकिन फिलहाल अनस अल-शरीफ की मौत ने मीडिया,राजनीति और युद्ध के नैतिक सवालों को एक बार फिर सामने ला दिया है।