नई दिल्ली,12 अगस्त (युआईटीवी)- बिहार में मतदाता सूची को अद्यतन और सटीक बनाने के लिए चुनाव आयोग ने एसआईआर प्रक्रिया के तहत विशेष अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य ऐसे सभी नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना है,जिन्होंने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है,साथ ही ऐसे नामों को हटाना है,जो अब पात्र नहीं हैं। चुनाव आयोग के अनुसार,इस विशेष अभियान में बिहार के लोग अपने नाम जोड़ने,हटाने या किसी भी प्रकार की त्रुटि सुधार के लिए दावा और आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।
चुनाव आयोग द्वारा मंगलवार को जारी आँकड़ों के मुताबिक,12 अगस्त सुबह 10 बजे तक कुल 13,970 निर्वाचकों ने सीधे दावा और आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं। हालाँकि,चौंकाने वाली बात यह है कि बिहार से लेकर दिल्ली तक मतदाता सूची में गड़बड़ी के मुद्दे पर आवाज उठाने वाले राजनीतिक दलों ने अभी तक चुनाव आयोग के समक्ष कोई औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं कराई है। यह स्थिति उस समय और भी दिलचस्प हो जाती है,जब कई दल चुनावी रैलियों और मीडिया बयानों में मतदाता सूची में गड़बड़ी का मुद्दा बार-बार उठा चुके हैं।
आयोग के दैनिक बुलेटिन में दर्ज आँकड़ों के अनुसार,18 वर्ष या उससे अधिक आयु पूरी करने वाले नए मतदाताओं से फॉर्म-6 और घोषणा पत्र के जरिए कुल 63,591 आवेदन प्राप्त हुए हैं। वहीं,निर्वाचक नामावली के संबंध में सीधे दर्ज किए गए दावे और आपत्तियों की संख्या 13,970 है,जिनमें से केवल 341 मामलों का निस्तारण पिछले सात दिनों में किया गया है। निस्तारण की यह प्रक्रिया नियमों के तहत निर्धारित समयसीमा और दस्तावेजों की जांच के बाद ही पूरी की जा रही है।
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी भी नाम को मतदाता सूची से हटाने की कार्रवाई संबंधित निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ईआरओ) या सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (एईआरओ) द्वारा जाँच-पड़ताल और आवश्यक दस्तावेजों के सत्यापन के बाद ही की जाएगी। इसके अलावा,नाम हटाने के लिए स्पीकिंग आदेश पारित करना अनिवार्य होगा,ताकि पारदर्शिता बनी रहे और किसी भी प्रकार की मनमानी न हो।
इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। आयोग ने बताया कि बिहार में 12 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के कुल 1,60,813 बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) पंजीकृत हैं। इनमें कांग्रेस के 17,549 और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 47,506 बीएलए भी शामिल हैं। बावजूद इसके,किसी भी पार्टी के बीएलए ने अब तक मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने को लेकर कोई आपत्ति या सुझाव दर्ज नहीं कराया है। यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है,क्योंकि आमतौर पर राजनीतिक दल इस प्रक्रिया में सक्रिय रहते हैं और अपने समर्थकों के नाम सुनिश्चित करने के लिए दावे-आपत्तियां दर्ज कराते हैं।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 1 अगस्त को बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की थी,जिसके बाद दावा और आपत्ति दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की गई। यह प्रक्रिया मतदाता सूची को अद्यतन करने के साथ-साथ उसमें मौजूद किसी भी प्रकार की त्रुटि को दूर करने का अवसर प्रदान करती है। इस दौरान न केवल नए नाम जोड़े जा सकते हैं,बल्कि मृतकों,स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं या पात्रता समाप्त हो चुके व्यक्तियों के नाम हटाने की कार्रवाई भी की जाती है।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह विशेष अभियान आगामी चुनावों के दृष्टिकोण से बेहद अहम है। यदि मतदाता सूची में त्रुटियाँ बनी रहती हैं,तो यह न केवल चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर असर डाल सकती हैं,बल्कि मतदाताओं के अधिकारों को भी प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए आयोग मतदाताओं और राजनीतिक दलों दोनों से आग्रह कर रहा है कि वे सक्रिय रूप से इस प्रक्रिया में भाग लें।
विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक दलों द्वारा अब तक आपत्ति दर्ज न कराना इस ओर संकेत करता है कि या तो वे प्रक्रिया को लेकर पूरी तरह तैयार नहीं हैं या फिर उन्होंने इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा बना रखा है,लेकिन आयोग के पास अब तक जो डेटा है,वह बताता है कि आम नागरिकों की तुलना में दलों की भागीदारी बेहद सीमित रही है।
अब देखना यह होगा कि आगामी दिनों में राजनीतिक दल सक्रिय होते हैं या नहीं। फिलहाल,आयोग का जोर इस बात पर है कि 7 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद सभी दावे और आपत्तियों का निस्तारण पारदर्शी तरीके से किया जाए,ताकि अंतिम मतदाता सूची में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न रह जाए। बिहार में चल रहा यह विशेष अभियान न केवल चुनावी तैयारियों का एक अहम हिस्सा है,बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मतदाताओं की भागीदारी को मजबूत करने का भी प्रयास है।