नई दिल्ली,18 अगस्त (युआईटीवी)- देश की सियासत इन दिनों चुनाव आयोग और मतदाता सूची को लेकर गर्मा गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों ने राजनीतिक माहौल को और अधिक तीखा बना दिया है। राहुल गांधी ने हाल ही में दावा किया कि मतदाता सूची में गड़बड़ी की जा रही है और बड़ी संख्या में वोटरों के नाम काटे गए हैं। उनके इस बयान पर मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। रविवार को उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा कि चुनाव आयोग और वोटर लिस्ट पर लगाए गए आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद और झूठे हैं। उन्होंने चुनौती दी कि यदि राहुल गांधी के पास अपने दावों के समर्थन में सबूत हैं तो वे सात दिन के भीतर शपथपत्र दाखिल करें,अन्यथा उन्हें देश से माफी माँगनी चाहिए।
मुख्य चुनाव आयुक्त के इस सख्त बयान के बाद विपक्षी दलों ने आयोग पर पलटवार करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस सांसद गुरजीत सिंह औजला ने कहा कि यह स्थिति “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” वाली है। उन्होंने तर्क दिया कि आरोप तो चुनाव आयोग पर लगे हैं,ऐसे में सबूत देना भी आयोग की जिम्मेदारी है,न कि विपक्ष की। औजला ने यह भी कहा कि राहुल गांधी जो माँग कर रहे हैं,वह डाटा आयोग को सार्वजनिक करना चाहिए। यदि मतदाता सूची में कोई खामियाँ नहीं हैं,तो चुनाव आयोग को खुद जाँच कर विपक्ष और जनता के सामने सच्चाई रखनी चाहिए,लेकिन आयोग विपक्ष से ही हलफनामा माँगकर जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है।
इसी मुद्दे पर सीपीआई-एम के सांसद राजाराम सिंह ने भी चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त अपराधबोध से ग्रसित हैं और उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस इस बात का प्रमाण थी। राजाराम सिंह ने कहा कि आज़ादी के बाद से अब तक किसी चुनाव आयोग ने ऐसा अपराध नहीं किया,जैसा मौजूदा आयोग कर रहा है। उनका आरोप था कि आयोग वोटर लिस्ट को अपडेट करने के बजाय बड़े पैमाने पर वोट काटने का काम कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम लिस्ट से बाहर किए गए हैं,जो लोकतंत्र पर सीधा हमला है।
समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने भी इस बहस में अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि यदि विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष को लगता है कि वोट चोरी हो रही है,तो चुनाव आयोग पर यह जिम्मेदारी बनती है कि वह पुख्ता सबूतों के साथ सामने आए और बताए कि ऐसा नहीं है। डिंपल यादव ने याद दिलाया कि अखिलेश यादव ने भी शपथपत्र दाखिल किया है,जिसमें कहा गया है कि 18 हजार से अधिक वोट काटे गए हैं। ऐसे में आयोग को सफाई देने के बजाय ठोस तथ्य सार्वजनिक करने चाहिए। उनका कहना था कि एक संवैधानिक संस्था का दायित्व है कि वह सभी पक्षों के सामने पारदर्शिता से काम करे और किसी भी तरह के संदेह को दूर करे।
दूसरी ओर सत्ता पक्ष ने राहुल गांधी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि झूठ की भी एक सीमा होती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता लगातार संवैधानिक संस्थाओं पर हमला बोल रहे हैं और उन्हें “चोर” कहकर संबोधित करना लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ है। दिनेश शर्मा ने सवाल किया कि यदि राहुल गांधी के पास वास्तव में सबूत होते तो अब तक उन्हें पेश कर देते। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष केवल भ्रम और अविश्वास का माहौल बनाना चाहता है,जबकि सच्चाई यह है कि चुनाव आयोग पूरी पारदर्शिता के साथ अपना काम कर रहा है।
इस पूरे विवाद ने चुनावी मौसम में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। एक ओर विपक्ष यह दावा कर रहा है कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम जानबूझकर लिस्ट से हटाए गए हैं,जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दूसरी ओर चुनाव आयोग और भाजपा यह कह रहे हैं कि यह आरोप केवल राजनीतिक प्रचार के लिए लगाए जा रहे हैं और इनका कोई आधार नहीं है।
चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर आरोप लगना अपने आप में गंभीर विषय है,क्योंकि इस संस्था की निष्पक्षता और विश्वसनीयता ही लोकतंत्र की नींव मानी जाती है। यदि मतदाता सूची में वास्तविक गड़बड़ियाँ हैं,तो यह पूरे चुनावी तंत्र के लिए चिंता का विषय है। वहीं यदि आरोप निराधार हैं,तो इससे चुनाव आयोग जैसी संस्था की साख को ठेस पहुँचती है। इसीलिए इस बहस ने राजनीतिक गलियारों में गहरी हलचल मचा दी है।
राहुल गांधी और विपक्ष के अन्य नेताओं के आरोपों ने जहाँ मतदाताओं के बीच असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है,वहीं चुनाव आयोग के सख्त रुख ने यह संकेत दिया है कि संस्था अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को गंभीरता से खारिज करना चाहती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल गांधी सचमुच सबूतों के साथ हलफनामा दाखिल करते हैं या फिर विपक्ष आयोग से पारदर्शिता की माँग को और ज्यादा जोर-शोर से उठाता है।
सत्ता पक्ष और विपक्ष की इस तीखी बयानबाजी के बीच असली सवाल यह है कि आखिर मतदाता सूची से जुड़े इन विवादों का समाधान कैसे होगा। यदि मतदाताओं के अधिकारों से समझौता किया जाता है,तो लोकतंत्र की जड़ें हिल सकती हैं। वहीं यदि बिना सबूत के संवैधानिक संस्थाओं पर हमला होता है,तो इससे लोकतंत्र की संस्थागत विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचता है। यही वजह है कि यह विवाद केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा नहीं है,बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढाँचे और उसकी साख से भी जुड़ा हुआ है।
चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोपों और आयोग की पलटवार भरी प्रतिक्रिया ने राजनीतिक तापमान को काफी बढ़ा दिया है। विपक्ष इस मुद्दे को चुनावी नैरेटिव में बदलने की कोशिश कर रहा है,जबकि भाजपा और आयोग इसे महज झूठा प्रचार साबित करने में जुटे हैं। अब पूरा देश निगाहें टिकाए बैठा है कि आने वाले दिनों में यह विवाद किस दिशा में जाता है और क्या सचमुच मतदाता सूची से जुड़े सवालों का कोई ठोस जवाब सामने आता है या नहीं।