नई दिल्ली,21 अगस्त (युआईटीवी)- थाईलैंड की राजनीति गुरुवार को उस समय और अधिक अस्थिर हो गई,जब निलंबित प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनावात्रा संवैधानिक न्यायालय में गंभीर नैतिक उल्लंघनों से जुड़े मामले की सुनवाई के लिए पेश हुईं। यह सुनवाई बुधवार को अदालत से अनुमति मिलने के बाद शुरू की गई,जिसके चलते देश की राजनीतिक स्थिति और अधिक तनावपूर्ण होती दिखाई दे रही है। पैतोंगटार्न अपने परिवार,सहयोगियों और कानूनी टीम के साथ सुबह करीब 9 बजकर 28 मिनट पर अदालत पहुँची। हालाँकि,अदालत परिसर में मौजूद पत्रकारों ने उनसे कई सवाल पूछने की कोशिश की,लेकिन उन्होंने मीडिया से किसी भी प्रकार की बातचीत करने से साफ इनकार कर दिया।
गुरुवार की सुनवाई में न केवल पैतोंगटार्न का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है,बल्कि थाईलैंड की आंतरिक राजनीति में भी बड़ी उथल-पुथल की संभावना जताई जा रही है। इस मामले को लेकर पूर्व सीनेटर सोमचाई स्वांगकर्ण और उनका समूह भी अदालत पहुँचे। उन्होंने कहा कि उन्होंने अदालत के समक्ष कार्यवाही को सीधे प्रसारित करने की माँग रखी थी,हालाँकि,अदालत ने पूर्ण रूप से लाइव प्रसारण की अनुमति नहीं दी। इसके बावजूद अदालत ने उन लोगों को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई में शामिल होने की अनुमति दे दी,जिन्होंने इसके लिए औपचारिक अनुरोध प्रस्तुत किया था।
सोमचाई ने सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पैतोंगटार्न न्यायालय के सामने सच्चाई रखेंगी और तथ्यों को स्पष्ट करेंगी। यह मामला वास्तव में उस ऑडियो क्लिप से जुड़ा है,जिसे पूर्व कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन ने सार्वजनिक किया था। इस क्लिप में पैतोंगटार्न और हुन सेन के बीच हुई टेलीफोनिक बातचीत रिकॉर्ड है,जिसे पैतोंगटार्न ने स्वयं सही भी माना है। 15 जून को पैतोंगटार्न ने हुन सेन को कॉल किया था और इसके तीन दिन बाद यानी 18 जून को हुन सेन ने इस बातचीत की क्लिप को सार्वजनिक कर दिया। इस क्लिप में कही गई बातों को थाईलैंड की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया जा रहा है और इसे ही गंभीर नैतिक उल्लंघन का आधार बनाया गया है।
सोमचाई का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनेताओं की बातचीत हमेशा एक विशेष प्रोटोकॉल के तहत होती है। आमतौर पर यह वार्ताएँ रिकॉर्ड की जाती हैं,विदेश मंत्रालय द्वारा जाँची जाती हैं और किसी भी व्यक्तिगत फोन कॉल के माध्यम से नहीं की जातीं। सुरक्षा अधिकारियों की उपस्थिति इन वार्ताओं में अनिवार्य होती है,ताकि देश की सुरक्षा से जुड़े किसी भी मुद्दे से समझौता न हो,लेकिन इस मामले में इन नियमों और प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। उन्होंने आगे कहा कि ऑडियो क्लिप स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि प्रक्रियागत गलतियाँ हुई हैं और इन्हीं वजहों से सीनेटरों ने पैतोंगटार्न पर गंभीर नैतिक उल्लंघनों का आरोप लगाया है।
इस पूरे विवाद में सबसे अहम बात यह है कि संवैधानिक न्यायालय 29 अगस्त को इस मामले पर अपना फैसला सुना सकता है,लेकिन अगर उससे पहले पैतोंगटार्न इस्तीफा दे देती हैं,तो पूरा मामला स्वतः ही रद्द हो जाएगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति में पैतोंगटार्न के सामने एक कठिन विकल्प खड़ा हो सकता है या तो वह इस्तीफा देकर कानूनी कार्रवाई से बचें या फिर अदालत के फैसले का सामना करें।
गुरुवार की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह व्यवस्था की थी कि मीडिया को कार्यवाही क्लोज-सर्किट टेलीविजन के जरिए दिखाई जाएगी। हालाँकि,केवल शुरुआती सत्र में ही ध्वनि उपलब्ध कराई गई और उसके बाद कार्यवाही मौन रूप से जारी रही। अदालत ने कहा है कि कार्यवाही पूरी होने के बाद प्रेस विज्ञप्ति जारी की जाएगी,ताकि जनता को इस मामले से जुड़ी आधिकारिक जानकारी प्राप्त हो सके।
थाईलैंड में पैतोंगटार्न शिनावात्रा का राजनीतिक करियर हमेशा से चर्चा और विवादों में रहा है। शिनावात्रा परिवार दशकों से देश की राजनीति में सक्रिय और प्रभावशाली रहा है,लेकिन साथ ही यह परिवार सत्ता के दुरुपयोग और नैतिकता से जुड़े आरोपों का भी सामना करता रहा है। पैतोंगटार्न की मौजूदा स्थिति उसी राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा मानी जा रही है,जहाँ एक ओर उनके समर्थक उन्हें सुधारवादी और जनता की आवाज मानते हैं,तो वहीं उनके विरोधी उन्हें पारिवारिक वर्चस्व की राजनीति और गैर-जिम्मेदाराना फैसलों का प्रतीक बताते हैं।
देश में इस समय आम नागरिकों और राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें संवैधानिक न्यायालय की कार्यवाही और आगामी फैसले पर टिकी हुई हैं। यदि अदालत पैतोंगटार्न को दोषी ठहराती है,तो यह न केवल उनके राजनीतिक करियर का अंत हो सकता है,बल्कि थाईलैंड की राजनीति में सत्ता समीकरणों को भी पूरी तरह बदल देगा। वहीं अगर अदालत उन्हें दोषमुक्त करती है,तो यह उनके लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत होगी और उनकी वापसी को और मजबूती देगी।
अभी के लिए थाईलैंड की राजनीतिक फिजां बेहद तनावपूर्ण और अनिश्चित बनी हुई है। पैतोंगटार्न शिनावात्रा के खिलाफ चल रही इस सुनवाई ने देश के लोकतांत्रिक ढाँचे,न्यायपालिका की निष्पक्षता और राजनीतिक नैतिकता के प्रश्नों को एक बार फिर सामने ला दिया है। अब सबकी निगाहें 29 अगस्त के उस दिन पर टिकी हैं,जब संवैधानिक न्यायालय अपने फैसले से यह तय करेगा कि पैतोंगटार्न का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित है या समाप्त।