ओस्लो,28 अगस्त (युआईटीवी)- डेनमार्क और ग्रीनलैंड के राजनीतिक परिदृश्य में इन दिनों हलचल तेज हो गई है। वजह है कुछ ऐसी खबरें जो व्हाइट हाउस से जुड़े अमेरिकी नागरिकों की गुप्त गतिविधियों पर केंद्रित हैं। बताया जा रहा है कि तीन अमेरिकी नागरिक ग्रीनलैंड में निजी नेटवर्क स्थापित करने और स्थानीय नेताओं की एक सूची तैयार करने में लगे हुए हैं। यह सूची कथित तौर पर इस आधार पर बनाई जा रही है कि कौन लोग अमेरिकी नियंत्रण को समर्थन देंगे और कौन उसका विरोध करेंगे। इस खुलासे के बाद डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने बेहद कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि डेनमार्क साम्राज्य और ग्रीनलैंड के आंतरिक मामलों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप अस्वीकार्य है और उनकी सरकार इसे गंभीरता से ले रही है।
प्रधानमंत्री फ्रेडरिक्सन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ग्रीनलैंड के मामले में डेनमार्क का रुख बेहद साफ है। ग्रीनलैंड,भले ही स्वशासित इकाई हो,लेकिन वह डेनमार्क साम्राज्य का हिस्सा है और वहाँ की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में बाहरी हस्तक्षेप को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनका कहना था कि अमेरिकी नागरिकों की गतिविधियों को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई है,उसने कोपेनहेगन और नुउक के बीच चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि अमेरिकी पक्ष ने अब तक इन आरोपों को पूरी तरह खारिज नहीं किया है,जो स्थिति को और गंभीर बनाता है।
फ्रेडरिक्सन ने बताया कि उन्होंने इस मुद्दे को ग्रीनलैंड की विदेश मंत्री विवियन मोट्जफेल्ड के साथ मिलकर अमेरिकी सीनेटरों के समक्ष उठाया। इस बैठक में डेनमार्क की ओर से यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि ग्रीनलैंड के आंतरिक मामलों में किसी प्रकार का दबाव,चाहे वह राजनीतिक हो या आर्थिक,स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि इस संदेश को सीधे अमेरिकी सहयोगियों तक भी पहुँचाया जाएगा,ताकि किसी तरह की गलतफहमी या भ्रम न रहे।
डेनमार्क के विदेश मंत्रालय ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए बुधवार को अमेरिकी राजदूत को तलब किया। विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन ने अमेरिकी राजनयिक से बातचीत में इस पूरी रिपोर्ट पर चिंता जताई और स्पष्ट किया कि ऐसी गतिविधियाँ डेनमार्क-अमेरिका संबंधों पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं।
दरअसल,यह विवाद तब और गहराता दिख रहा है,जब इस साल की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार ग्रीनलैंड में रुचि दिखाई। ट्रंप ने खुलकर कहा था कि अमेरिका ग्रीनलैंड पर नियंत्रण हासिल करने में दिलचस्पी रखता है और इसके लिए सैन्य अथवा आर्थिक दबाव डालने से भी पीछे नहीं हटेगा। इस बयान ने ही ग्रीनलैंड और डेनमार्क की राजनीतिक नेतृत्व को सतर्क कर दिया था। अब जब यह खबर सामने आई है कि अमेरिकी नागरिक वहाँ गुप्त रूप से नेटवर्क बना रहे हैं,तो डेनिश सरकार की चिंता और स्वाभाविक है।
डेनमार्क की सुरक्षा और खुफिया एजेंसी ने भी इस खतरे की पुष्टि की है। एजेंसी का कहना है कि ग्रीनलैंड,कोपेनहेगन और नुउक के बीच तनाव पैदा करने के उद्देश्य से बाहरी शक्तियां प्रभाव अभियानों को अंजाम दे रही हैं। एजेंसी के मुताबिक,इन अभियानों का मकसद ग्रीनलैंड को धीरे-धीरे डेनमार्क से दूर करना और वहाँ अमेरिकी प्रभाव को मजबूत करना है। यह स्थिति डेनमार्क की संप्रभुता और उसकी सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है।
ग्रीनलैंड का इतिहास भी इस पूरी बहस में अहम भूमिका निभाता है। यह द्वीप कभी डेनमार्क का उपनिवेश हुआ करता था और 1953 में इसे औपचारिक रूप से डेनमार्क साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। हालाँकि,1979 में ग्रीनलैंड को स्वशासन का अधिकार मिल गया था,जिससे उसे काफी हद तक आंतरिक मामलों पर स्वतंत्रता मिल गई। बावजूद इसके,विदेश नीति और रक्षा संबंधी मामलों पर अधिकार डेनमार्क के पास ही है। यही कारण है कि ग्रीनलैंड में अमेरिकी गतिविधियों को लेकर डेनमार्क की प्रतिक्रिया इतनी तीखी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आर्कटिक क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के कारण ग्रीनलैंड अमेरिका के लिए बेहद अहम है। आर्कटिक पर नियंत्रण की होड़ में अमेरिका,रूस और चीन पहले से ही सक्रिय हैं। ऐसे में ग्रीनलैंड का महत्व और बढ़ जाता है। अमेरिका का ग्रीनलैंड पर नियंत्रण हासिल करने का सपना नया नहीं है। अतीत में भी वाशिंगटन ने इस क्षेत्र में सैन्य ठिकानों की स्थापना की है और कई बार यहाँ निवेश बढ़ाने की कोशिश की है।
डेनमार्क के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह ग्रीनलैंड की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा कैसे करे और साथ ही अमेरिका जैसे रणनीतिक सहयोगी के साथ अपने रिश्तों को किस तरह संतुलित बनाए रखे। प्रधानमंत्री फ्रेडरिक्सन के हालिया बयान से यह साफ है कि डेनमार्क किसी भी तरह के दबाव के सामने झुकने को तैयार नहीं है,लेकिन अमेरिका की ओर से अभी तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है,जिसने हालात को और पेचीदा बना दिया है।
स्थिति किस दिशा में जाएगी,यह आने वाले दिनों में साफ होगा। फिलहाल इतना तय है कि ग्रीनलैंड पर अमेरिकी गतिविधियों को लेकर डेनमार्क की सरकार और जनता दोनों ही सतर्क हो चुकी हैं। डेनमार्क का यह सख्त रुख संकेत देता है कि वह अपने साम्राज्य और ग्रीनलैंड की लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार है।
यह पूरा घटनाक्रम न केवल डेनमार्क-अमेरिका संबंधों की परीक्षा ले रहा है,बल्कि आर्कटिक क्षेत्र की बदलती भू-राजनीति को भी उजागर करता है। ग्रीनलैंड का भविष्य अब सिर्फ डेनमार्क और ग्रीनलैंड की राजनीति तक सीमित नहीं रह गया है,बल्कि यह वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम हिस्सा बनता जा रहा है।