अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@Mahsar_khan)

टैरिफ पर कानूनी झटका झेलने के बाद ट्रंप का पलटवार,कहा- “मेरे टैरिफ से अमेरिका में आए खरबों डॉलर”

वाशिंगटन,1 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राजनीति एक बार फिर से डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और अदालत के फैसलों के इर्द-गिर्द घूम रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि उनकी व्यापार नीतियों और टैरिफ ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है और इससे खरबों डॉलर देश में आए हैं। यह दावा ऐसे समय में सामने आया है,जब अमेरिकी अपीलीय न्यायालय ने ट्रंप की व्यापारिक नीतियों को झटका देते हुए यह फैसला सुनाया कि उन्होंने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान कांग्रेस की मंजूरी के बिना टैरिफ लगाकर अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया था।

ट्रंप ने अपने बचाव में सोशल मीडिया मंच ट्रुथ सोशल का सहारा लिया और एक विस्तृत पोस्ट में अपने टैरिफ और नीतियों को सही ठहराया। उन्होंने लिखा कि अमेरिका में कीमतें अब काफी हद तक कम हैं और मुद्रास्फीति लगभग शून्य स्तर पर है। ट्रंप ने विशेष तौर पर ऊर्जा की गिरती कीमतों का उल्लेख करते हुए कहा कि पेट्रोल कई वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुका है और यह सब उनके टैरिफ लगाने की नीति के बावजूद संभव हो पाया है। उनका दावा था कि जिन देशों ने दशकों तक अमेरिका का फायदा उठाया,उन्हीं से अब खरबों डॉलर आ रहे हैं और उनकी नीतियां अमेरिका को फिर से मजबूत और सम्मानित बना रही हैं।

हालाँकि,ट्रंप के इन दावों के समानांतर संघीय अपीलीय न्यायालय ने उनके अधिकारों की सीमाओं को स्पष्ट किया है। शुक्रवार को आए इस फैसले में अदालत ने कहा कि ट्रंप ने अपने कार्यकाल में “पारस्परिक शुल्क” लगाने के लिए अपने संवैधानिक दायरे का उल्लंघन किया था। अदालत ने इस मामले में साफ कर दिया कि टैरिफ और कर लगाने का अधिकार विशेष रूप से कांग्रेस के पास है और राष्ट्रपति इसे एकतरफा लागू नहीं कर सकते।

अदालत ने खासतौर पर 1977 के अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (आईईईपीए) का उल्लेख किया। इस अधिनियम के तहत राष्ट्रपति को आपातकालीन परिस्थितियों में कुछ विशेष शक्तियाँ दी गई हैं,लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इसमें टैरिफ या कर लगाने का अधिकार शामिल नहीं है। इसलिए, ट्रंप का इस कानून का इस्तेमाल करके टैरिफ लागू करना संवैधानिक सीमाओं से बाहर था।

हालाँकि,अदालत का यह फैसला तुरंत प्रभाव से लागू नहीं होगा। अदालत ने इसे 14 अक्टूबर तक स्थगित रखा है,ताकि प्रशासन चाहे तो इस पर अपील कर सके। इसका सीधा अर्थ है कि ट्रंप के पास अब इस फैसले को चुनौती देने और इसे अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने का विकल्प मौजूद है। ट्रंप ने अपने बयान में इस ओर संकेत भी दिया है कि वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। उनके अनुसार,यह फैसला राष्ट्रपति की उन शक्तियों को कमजोर करता है,जो राष्ट्रीय आर्थिक हितों की रक्षा के लिए बेहद आवश्यक हैं।

ट्रंप ने अदालत के निर्णय को न केवल असंवैधानिक बल्कि खतरनाक भी बताया। उनका कहना था कि यदि राष्ट्रपति को ऐसे मामलों में तुरंत और प्रभावी ढंग से कदम उठाने की शक्ति नहीं होगी,तो अमेरिका विदेशी देशों के आर्थिक दबाव और व्यापारिक असमानताओं से जूझता रहेगा। उन्होंने दावा किया कि उनके लगाए गए टैरिफ ने न केवल अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत किया,बल्कि विदेशी देशों पर भी दबाव बनाया कि वे अमेरिकी हितों का सम्मान करें।

गौरतलब है कि ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान चीन समेत कई देशों पर भारी टैरिफ लगाए थे। उनका तर्क था कि चीन और अन्य देश दशकों से अमेरिकी बाजार का फायदा उठाते आ रहे हैं और अमेरिकी कंपनियों और मजदूरों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। इन टैरिफ को ट्रंप ने “फेयर ट्रेड” सुनिश्चित करने का एक माध्यम बताया था। हालाँकि,इन नीतियों को लेकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मिले-जुले प्रभाव देखने को मिले। जहाँ कुछ क्षेत्रों में रोजगार और घरेलू उत्पादन को बल मिला,वहीं आयातित सामान महँगा होने से कई उपभोक्ताओं और उद्योगों पर दबाव बढ़ा।

अब जबकि अदालत ने ट्रंप के अधिकारों पर सवाल उठाए हैं,यह मुद्दा न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक बहस का भी केंद्र बन गया है। ट्रंप का दावा है कि उनकी नीतियों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व मजबूती दी,जबकि अदालत का कहना है कि उन्होंने संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन किया। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता है,तो वहाँ भी व्यापक बहस होगी कि राष्ट्रपति की आर्थिक शक्तियों की वास्तविक सीमाएँ क्या हैं और कांग्रेस की भूमिका कितनी निर्णायक है।

दिलचस्प बात यह है कि स्टील और एल्युमीनियम पर लगाए गए टैरिफ इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगे। ये टैरिफ एक अलग कानून के तहत लागू किए गए थे और इसलिए फिलहाल प्रभावी रहेंगे,लेकिन “पारस्परिक शुल्क” का मामला ट्रंप की कानूनी और राजनीतिक रणनीति को चुनौती देने वाला साबित हो सकता है।

जैसे-जैसे 2024 का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ रहा है,ट्रंप के लिए यह फैसला और भी अहमियत रखता है। एक तरफ उन्हें अपने समर्थकों के बीच यह संदेश देना है कि वे अमेरिकी हितों के लिए लड़ रहे हैं और उनकी नीतियाँ देश को मजबूत बना रही हैं। वहीं दूसरी ओर विपक्षी डेमोक्रेट्स इस फैसले को उनके “अधिकारों के दुरुपयोग” का उदाहरण बताकर जनता के सामने पेश करेंगे।

आखिरकार,यह मामला सिर्फ टैरिफ या व्यापार नीतियों का नहीं है,बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र में शक्तियों के संतुलन का भी सवाल है। राष्ट्रपति और कांग्रेस के बीच अधिकारों की सीमा रेखा खींचने वाला यह फैसला आने वाले समय में अमेरिकी राजनीतिक विमर्श का अहम हिस्सा बनने वाला है। ट्रंप के दावों और अदालत के फैसले के बीच यह टकराव अमेरिका की कानूनी और राजनीतिक प्रणाली के लिए एक नई परीक्षा साबित हो सकता है।