लॉस एंजिल्स,3 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिका में ट्रंप प्रशासन को लेकर एक बड़ा न्यायिक फैसला सामने आया है। कैलिफोर्निया के उत्तरी जिले की अमेरिकी जिला अदालत के वरिष्ठ न्यायाधीश चार्ल्स ने आदेश दिया है कि ट्रंप प्रशासन ने जून की शुरुआत में लॉस एंजिल्स में हुए प्रदर्शनों को रोकने के लिए नेशनल गार्ड और मरीन की तैनाती कर पॉजे कॉमिटेटस एक्ट का उल्लंघन किया। यह कानून 19वीं सदी से लागू है और इसका मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिकी सेना को घरेलू कानून लागू करने के लिए कांग्रेस की मंजूरी के बिना इस्तेमाल न किया जाए। अदालत का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है,बल्कि इससे संघीय सरकार और राज्यों के बीच अधिकार संतुलन को लेकर भी गंभीर बहस छिड़ गई है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार,न्यायाधीश चार्ल्स ने अपने आदेश में लिखा कि ट्रंप प्रशासन की कार्रवाई सीधी तरह से संविधान की आत्मा और पॉजे कॉमिटेटस एक्ट की धारा का उल्लंघन है। यह कानून स्पष्ट रूप से बताता है कि सेना का प्रयोग केवल बाहरी खतरों से देश की रक्षा करने के लिए किया जा सकता है,न कि घरेलू प्रदर्शनों या नागरिक अशांति को दबाने के लिए। अदालत ने कहा कि भले ही लॉस एंजिल्स में प्रदर्शनों के दौरान कुछ हिंसक घटनाएँ हुई थीं,लेकिन यह विद्रोह जैसी स्थिति नहीं थी। साथ ही,स्थानीय पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ हालात को नियंत्रित करने में सक्षम थीं। ऐसे में सेना की तैनाती को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
फैसले में आगे कहा गया कि नेशनल गार्ड की तैनाती के लगभग तीन महीने बीत जाने के बाद भी वहाँ करीब 300 सदस्य सक्रिय रूप से तैनात हैं। यह न केवल संविधान की भावना के खिलाफ है,बल्कि इससे यह संदेश जाता है कि संघीय सरकार राज्यों की स्वायत्तता को दबाकर सेना को अपनी “निजी पुलिस फोर्स” की तरह इस्तेमाल करना चाहती है। न्यायाधीश ने यह भी संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रंप और तत्कालीन रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने केवल कैलिफोर्निया ही नहीं,बल्कि अन्य शहरों में भी सैनिकों को फेडरल सर्विस में बुलाने की इच्छा जताई थी। अगर ऐसा होता,तो राष्ट्रपति के अधीन एक प्रकार की राष्ट्रीय पुलिस फोर्स का गठन हो जाता,जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक माना जाता।
इस मामले के वादियों में कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसम भी शामिल थे। उन्होंने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अदालत ने लोकतंत्र और संविधान का साथ दिया है। न्यूसम ने सख्त लहजे में कहा, “कोई भी राष्ट्रपति राजा नहीं होता,यहाँ तक कि ट्रंप भी नहीं। कोई भी राष्ट्रपति किसी राज्य की अपने नागरिकों की रक्षा करने की शक्ति को कुचल नहीं सकता।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि फेडरल ट्रूप्स को निजी पुलिस फोर्स की तरह इस्तेमाल करने का कोई भी प्रयास न केवल अवैध है,बल्कि यह तानाशाही की ओर बढ़ने जैसा है। गवर्नर ने उम्मीद जताई कि देश की हर अदालत इस तरह की प्रवृत्तियों को रोकने का काम करेगी।
वहीं,व्हाइट हाउस ने अदालत के इस आदेश पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उप-प्रेस सचिव अन्ना केली ने बयान जारी कर कहा कि एक बार फिर कोई न्यायाधीश कमांडर-इन-चीफ के अधिकार का हनन करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि राष्ट्रपति का दायित्व अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा करना है और जब किसी शहर में हिंसा और विनाश होता है तो यह राष्ट्रपति का संवैधानिक कर्तव्य बनता है कि वह हर आवश्यक कदम उठाए। केली ने फैसले को राजनीतिक प्रेरित बताते हुए इसे चुनौती देने की बात कही।
जैसा कि उम्मीद थी,अमेरिकी न्याय विभाग ने तुरंत इस फैसले के खिलाफ फेडरल अपील कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। न्याय विभाग ने न केवल फैसले को चुनौती दी है, बल्कि यह भी माँग की है कि अपील पर विचार होने तक निचली अदालत का आदेश निलंबित रखा जाए। इस प्रकार,आने वाले समय में यह मामला और लंबी कानूनी लड़ाई की ओर बढ़ सकता है।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला केवल कैलिफोर्निया तक सीमित नहीं रहेगा। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मिलिट्री जस्टिस के उपाध्यक्ष ब्रेनर फिसेल ने सीएनएन को दिए बयान में कहा कि हालाँकि अदालत का आदेश तत्काल प्रभाव में केवल कैलिफोर्निया पर लागू होता है,लेकिन इसकी गूँज पूरे अमेरिका में सुनाई देगी। उन्होंने कहा कि अगर किसी अन्य राज्य में भी सेना की इसी तरह की तैनाती पर विवाद खड़ा होता है,तो वहाँ की अदालतें सबसे पहले कैलिफोर्निया के इस फैसले का हवाला देंगी।
इस फैसले ने एक बार फिर अमेरिका में फेडरल बनाम स्टेट पॉवर्स की बहस को हवा दे दी है। अमेरिकी संविधान राज्यों को अपने नागरिकों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के व्यापक अधिकार देता है। वहीं राष्ट्रपति का अधिकार सीमित रूप से परिभाषित है,ताकि संघीय सत्ता राज्यों की स्वायत्तता को कुचल न सके,लेकिन ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में कई बार यह आरोप लगा कि व्हाइट हाउस ने सेना का इस्तेमाल घरेलू राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया। लॉस एंजिल्स का यह मामला उसी विवाद का हिस्सा माना जा रहा है।
गौरतलब है कि लॉस एंजिल्स में इमिग्रेशन रेड्स के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। इनमें कई बार तनाव और झड़पें भी हुईं,लेकिन स्थिति कभी इतनी गंभीर नहीं हुई कि उसे विद्रोह करार दिया जा सके। स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने घटनाओं को नियंत्रित किया,बावजूद इसके सेना की तैनाती को न्यायालय ने अनावश्यक और असंवैधानिक ठहराया।
अब देखने वाली बात यह होगी कि फेडरल अपील कोर्ट इस मामले पर क्या रुख अपनाता है। अगर अपील कोर्ट भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराता है,तो यह राष्ट्रपति के सैन्य अधिकारों की सीमाओं पर एक ऐतिहासिक फैसला साबित होगा। वहीं अगर अपील कोर्ट ने व्हाइट हाउस के पक्ष में निर्णय दिया,तो यह राष्ट्रपति को आंतरिक सुरक्षा मामलों में सेना के उपयोग के लिए और अधिक शक्ति प्रदान करेगा।
फिलहाल इतना स्पष्ट है कि इस फैसले ने ट्रंप प्रशासन की नीतियों पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। गवर्नर न्यूसम के शब्दों में, “अदालत ने लोकतंत्र की रक्षा की है और यह याद दिलाया है कि अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति निरंकुश नहीं हो सकता।”