रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग (तस्वीर क्रेडिट@crazy_world143)

बीजिंग में पुतिन और किम की मुलाकात: रूस-उत्तर कोरिया संबंधों में नई मजबूती,रणनीतिक साझेदारी को गहराई देने पर चर्चा

सियोल,4 सितंबर (युआईटीवी)- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग-उन की मुलाकात ने एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। बुधवार को दोनों नेताओं की बैठक बीजिंग में आयोजित द्वितीय विश्व युद्ध की 80वीं वर्षगांठ पर हुई सैन्य परेड के दौरान हुई। इस अवसर पर पुतिन ने किम को एक बार फिर रूस आने का निमंत्रण दिया। बैठक बीजिंग स्थित दियाओयुताई स्टेट गेस्ट हाउस में आयोजित हुई,जहाँ दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को गहराई देने पर चर्चा की।

बैठक के बाद जब पुतिन किम को उनकी गाड़ी तक छोड़ने आए,तो किम ने विदाई देते हुए कहा, “जल्द मिलेंगे।” इस पर पुतिन ने जवाब दिया, “मैं इंतजार करूँगा,कृपया आइए।” इस छोटे से संवाद ने यह संकेत दे दिया कि रूस और उत्तर कोरिया के रिश्ते अब और मजबूत होने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। किम अब तक दो बार रूस का दौरा कर चुके हैं,पहली बार 2019 में और दूसरी बार 2023 में। इस बार पुतिन का निमंत्रण बताता है कि दोनों देशों के बीच की साझेदारी अब और गहरी होगी।

बातचीत के दौरान किम जोंग-उन ने यूक्रेन युद्ध में रूस का साथ देने वाले उत्तर कोरियाई सैनिकों की सराहना के लिए पुतिन का आभार जताया। उन्होंने कहा कि रूस की मदद करना उत्तर कोरिया का “भाईचारे का कर्तव्य” है। किम ने स्पष्ट किया कि उनकी सेना और देश रूस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। इस पर पुतिन ने याद किया कि किस तरह कुर्स्क मोर्चे पर उत्तर कोरियाई सैनिकों ने “बहादुरी और वीरता” का प्रदर्शन किया था। उन्होंने कहा कि रूस कभी भी इन बलिदानों को नहीं भूलेगा।

किम जोंग-उन ने यह भी कहा कि जून 2024 में रणनीतिक साझेदारी संधि पर हस्ताक्षर के बाद दोनों देशों के रिश्ते और प्रगाढ़ हुए हैं। इस संधि में आपसी रक्षा समझौता भी शामिल है,जिसके तहत किसी भी पक्ष पर सशस्त्र हमले की स्थिति में दोनों देश तुरंत सैन्य सहयोग प्रदान करेंगे। किम ने यह वादा भी किया कि उत्तर कोरिया रूस की मदद के लिए “हर संभव प्रयास” करेगा। इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि उत्तर कोरिया केवल औपचारिक समर्थन नहीं दे रहा,बल्कि वास्तविक सैन्य सहयोग और संसाधन मुहैया कराने को तैयार है।

गौरतलब है कि अक्टूबर 2024 से उत्तर कोरिया रूस को लगभग 13,000 सैनिक और हथियार भेज चुका है। इस सैन्य सहयोग ने न केवल रूस की युद्ध क्षमता को बढ़ाया है,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी चिंता का विषय बन गया है। पश्चिमी देशों और नाटो ने कई बार इस सहयोग पर सवाल उठाए हैं और इसे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए खतरा बताया है।

विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग में हुई यह मुलाकात केवल एक औपचारिक अवसर नहीं था,बल्कि रूस और उत्तर कोरिया द्वारा अपनी साझेदारी का स्पष्ट संदेश देने का मंच था। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है,जब रूस यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देशों से लगातार टकरा रहा है और उसे चीन तथा उत्तर कोरिया जैसे सहयोगियों की कड़ी ज़रूरत है। वहीं उत्तर कोरिया के लिए रूस का साथ उसे अंतर्राष्ट्रीय अलगाव से निकलने का अवसर देता है।

किम जोंग-उन ने बैठक में कहा कि उत्तर कोरिया और रूस के रिश्ते केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने दावा किया कि आर्थिक,तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग भी बढ़ रहा है। रणनीतिक साझेदारी संधि के बाद दोनों देशों ने व्यापार और वैज्ञानिक शोध जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग के नए रास्ते खोले हैं। हालाँकि,अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण उत्तर कोरिया की संभावनाएँ सीमित हैं,लेकिन रूस के साथ सहयोग से उसे कुछ हद तक राहत मिलने की उम्मीद है।

बैठक के बाद पुतिन और किम दोनों ने यह संकेत दिया कि भविष्य में द्विपक्षीय रिश्ते और गहरे होंगे। पुतिन के निमंत्रण पर किम का रूस दौरा कब होगा,इस पर अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है,लेकिन कूटनीतिक हलकों का मानना है कि यह यात्रा जल्द ही तय होगी।

इस मुलाकात ने यह संदेश भी दिया कि एशिया में शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है। रूस और उत्तर कोरिया का यह नजदीकी सहयोग न केवल यूक्रेन युद्ध को प्रभावित करेगा,बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भी नई चुनौतियाँ खड़ी करेगा। चीन की मौजूदगी ने इस मुलाकात को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है,क्योंकि बीजिंग लंबे समय से उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। अब रूस के साथ इस त्रिकोणीय समीकरण के मजबूत होने से अमेरिका,जापान और दक्षिण कोरिया को नई रणनीतियाँ बनानी पड़ सकती हैं।

बीजिंग में पुतिन और किम की मुलाकात ने रूस-उत्तर कोरिया संबंधों की दिशा और गति को स्पष्ट कर दिया है। रणनीतिक साझेदारी संधि और सैन्य सहयोग की पुष्टि के साथ दोनों देशों ने यह दिखा दिया है कि वे एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते। आने वाले समय में यह गठबंधन वैश्विक राजनीति और एशियाई सुरक्षा ढांचे पर गहरा असर डाल सकता है।