पीएम मोदी और यूरोपीय नेताओं के मध्य हुई अहम वार्ता (तस्वीर क्रेडिट@stripathi56)

पीएम मोदी और यूरोपीय नेताओं के मध्य हुई अहम वार्ता,शांति,रणनीतिक सहयोग और वैश्विक स्थिरता पर जोर

नई दिल्ली/ब्रुसेल्स,5 सितंबर (युआईटीवी)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन से टेलीफोन पर बातचीत की। इस उच्चस्तरीय वार्ता में रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों से लेकर वैश्विक स्थिरता और आपसी रणनीतिक सहयोग तक,कई अहम मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच यह संवाद ऐसे समय में हुआ है,जब दुनिया आर्थिक चुनौतियों, भू-राजनीतिक तनाव और सुरक्षा संकटों से जूझ रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत की शुरुआत में कहा कि भारत और यूरोपीय संघ दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्तियों में शामिल हैं और उनके संबंध साझा मूल्यों,आपसी विश्वास और भविष्य की समान दृष्टि पर आधारित हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत-यूरोपीय संघ की रणनीतिक साझेदारी न केवल दोनों क्षेत्रों के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए स्थिरता,शांति और समृद्धि का आधार बन रही है।

वार्ता में रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा प्रमुख रहा। मोदी ने दोहराया कि भारत हमेशा से संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान खोजने का पक्षधर रहा है और यह मानता है कि संवाद और कूटनीति ही स्थायी शांति की कुँजी है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत किसी भी प्रकार की आक्रामकता का समर्थन नहीं करता और वैश्विक स्तर पर स्थिरता और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा। इस संदर्भ में यूरोपीय नेताओं ने भारत की सक्रिय भूमिका और संतुलित रुख की सराहना की।

आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी पर भी विस्तार से चर्चा हुई। नेताओं ने आपसी व्यापार,निवेश,प्रौद्योगिकी,नवाचार और आपूर्ति शृंखला की लचीलापन बढ़ाने के क्षेत्रों में हुई प्रगति का स्वागत किया। भारत और यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को जल्द पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह समझौता दोनों पक्षों के बीच आर्थिक संबंधों को नई ऊँचाई पर ले जाने वाला माना जा रहा है। इसके साथ ही आईएमइइसी गलियारे को लागू करने की प्रतिबद्धता भी दोहराई गई,जिसे भविष्य के वैश्विक व्यापारिक ढाँचे में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

बातचीत के दौरान रक्षा और सुरक्षा सहयोग को भी अहम विषय बनाया गया। दुनिया भर में बढ़ते साइबर खतरों और आतंकवाद जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत और ईयू की साझेदारी को और गहरा करने पर सहमति बनी। दोनों पक्षों का मानना है कि बहुपक्षीय मंचों पर एकजुट होकर काम करना आज की वैश्विक व्यवस्था की जरूरत है।

प्रधानमंत्री मोदी ने फरवरी में यूरोपीय संघ कॉलेज के आयुक्तों की भारत यात्रा को ऐतिहासिक बताते हुए भविष्य में होने वाले भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन पर चर्चा की। उन्होंने एंटोनियो कोस्टा और उर्सुला वॉन डेर लेयेन को भारत आने का निमंत्रण दिया। तीनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि अगले शिखर सम्मेलन में आपसी सहयोग को और मजबूती देने के लिए एक ठोस एजेंडा तय किया जाएगा। संभावना जताई गई है कि 2026 में होने वाला यह शिखर सम्मेलन भारत-ईयू संबंधों के लिए नई दिशा तय करेगा।

इस बातचीत के बाद यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया साझा की। उन्होंने लिखा, “हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करके खुशी हुई। हम राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ भारत के निरंतर सहयोग का स्वागत करते हैं। रूस को अपना आक्रामक युद्ध समाप्त करना चाहिए और शांति की राह बनानी चाहिए,जिसमें भारत की अहम भूमिका है। यह युद्ध वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए हानिकारक है और पूरी दुनिया के लिए जोखिम पैदा कर रहा है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि ईयू और भारत 2026 में होने वाले शिखर सम्मेलन में एक संयुक्त रणनीतिक एजेंडे पर सहमत होने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने इस साल के अंत तक मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत पूरी करने की प्रतिबद्धता भी जताई,हालाँकि उन्होंने माना कि इसके लिए अभी और प्रगति की आवश्यकता है।

इस संवाद का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध न केवल यूरोप बल्कि एशिया और अन्य क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है। ऊर्जा संकट,खाद्य आपूर्ति पर असर और बढ़ती महँगाई जैसे मुद्दों ने वैश्विक बाजारों को अस्थिर कर दिया है। ऐसे समय में भारत और ईयू की साझेदारी एक संभावित संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर सकती है।

विश्लेषकों का मानना है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग बहुआयामी है। जहाँ भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और तकनीकी नवाचार के साथ दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहा है,वहीं यूरोपीय संघ वैश्विक स्तर पर व्यापार और कूटनीति में एक प्रमुख ध्रुव है। दोनों के बीच गहराता सहयोग वैश्विक व्यवस्था को अधिक संतुलित और समावेशी बना सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी और यूरोपीय नेताओं की यह वार्ता केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं रही,बल्कि उसने दुनिया को यह संदेश दिया कि लोकतांत्रिक ताकतें मिलकर वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं। चाहे वह शांति की स्थापना हो,आर्थिक सहयोग हो या सुरक्षा के नए आयाम,भारत और ईयू की साझेदारी आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है।