सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (तस्वीर क्रेडिट@airnews_puduvai)

भारत-सिंगापुर संबंधों में नई उड़ान: प्रौद्योगिकी,नवाचार और रणनीतिक साझेदारी पर जोर

नई दिल्ली,5 सितंबर (युआईटीवी)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग के बीच गुरुवार को दिल्ली में हुई वार्ता ने भारत-सिंगापुर संबंधों को एक नई दिशा और मजबूती दी है। दोनों नेताओं ने साझा संवाद में स्पष्ट किया कि प्रौद्योगिकी,नवाचार और रणनीतिक सहयोग अब दोनों देशों की साझेदारी के मजबूत स्तंभ हैं। यह बैठक न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को नई गति देने के लिए अहम रही,बल्कि इसने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-सिंगापुर की संयुक्त भूमिका और वैश्विक स्तर पर उनके योगदान की रूपरेखा भी तय की।

प्रधानमंत्री मोदी ने प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि सिंगापुर भारत का दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों के रिश्ते साझा मूल्यों,आपसी विश्वास और क्षेत्रीय स्थिरता की दृष्टि पर आधारित हैं। उन्होंने सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहा, “मैं पदभार ग्रहण करने के बाद प्रधानमंत्री वोंग की पहली भारत यात्रा पर उनका हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह यात्रा इसलिए और भी खास है क्योंकि इस वर्ष हम अपने संबंधों की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।”

मोदी ने इस अवसर पर 2024 में हुई अपनी सिंगापुर यात्रा को याद किया। उन्होंने कहा कि उस यात्रा के दौरान भारत और सिंगापुर ने अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया था और उसके बाद के एक वर्ष में संवाद और सहयोग की रफ्तार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, “हमने अपने युवाओं,उद्योगों और वैज्ञानिकों को एक नई दिशा दी है और अब यह साझेदारी पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़कर उन्नत प्रौद्योगिकी,ग्रीन एनर्जी और अंतरिक्ष विज्ञान तक पहुँच रही है।”

वार्ता के दौरान दोनों देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस,क्वांटम कंप्यूटिंग और अन्य डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया। मोदी ने इस पहल को भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि यह साझेदारी न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र की प्रगति में योगदान देगी। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष क्षेत्र में हुआ नया समझौता दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया अध्याय खोलेगा और आने वाले समय में भारत और सिंगापुर की अंतरिक्ष एजेंसियाँ साझा प्रोजेक्ट्स पर काम करेंगी।

युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए भारत-सिंगापुर हैकाथॉन को भी नए सिरे से गति देने का फैसला लिया गया है। इस वर्ष के अंत तक इसका अगला राउंड आयोजित किया जाएगा,जिसमें दोनों देशों के छात्र और नवप्रवर्तक अपनी प्रतिभा और विचार साझा करेंगे। मोदी ने कहा, “यह केवल तकनीकी आदान-प्रदान का मंच नहीं होगा,बल्कि हमारे युवाओं को भविष्य की चुनौतियों के समाधान खोजने में भी मदद करेगा।”

डिजिटल कनेक्टिविटी को लेकर भी बड़ी घोषणा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने यूपीआई और सिंगापुर के पे नाउ को डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में सहयोग का सफल उदाहरण बताते हुए खुशी जताई कि अब 13 नए भारतीय बैंक भी इस प्रणाली से जुड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि इससे न केवल दोनों देशों के बीच वित्तीय लेन-देन आसान होगा,बल्कि आम लोगों और छोटे व्यवसायियों को भी सीधा लाभ मिलेगा।

व्यापार और आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में भी दोनों देशों ने सकारात्मक संकेत दिए। मोदी ने कहा कि भारत और सिंगापुर ने आसियान के साथ द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते और मुक्त व्यापार समझौते की समयबद्ध तरीके से समीक्षा करने का निर्णय लिया है। उनका मानना है कि इससे न केवल व्यापारिक संबंध गहरे होंगे बल्कि क्षेत्रीय आर्थिक संरचना भी मजबूत होगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बताया कि आज सिंगापुर भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है और यह रुझान लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने रक्षा सहयोग को भी रेखांकित किया और कहा कि दोनों देशों के बीच सैन्य अभ्यास और सुरक्षा सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है। इसके साथ ही लोग-से-लोग संपर्क भी गहरा और जीवंत है,जो दोनों देशों के रिश्तों की सबसे बड़ी ताकत है।

वार्ता के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य की साझेदारी के लिए एक विस्तृत रोडमैप पेश किया। उन्होंने कहा कि भारत और सिंगापुर का सहयोग केवल पारंपरिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहेगा,बल्कि अब यह उन्नत विनिर्माण,ग्रीन शिपिंग,कौशल विकास,परमाणु ऊर्जा और शहरी जल प्रबंधन जैसे क्षेत्रों तक फैलेगा। उन्होंने कहा कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में इन क्षेत्रों में साझेदारी करना समय की माँग है और दोनों देश मिलकर इन चुनौतियों का समाधान खोज सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने सिंगापुर को भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बताते हुए कहा कि भारत और सिंगापुर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता की साझा दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए आसियान के साथ मिलकर काम करेंगे। उन्होंने कहा,“हमारा सहयोग केवल कूटनीति तक सीमित नहीं है,बल्कि यह साझा मूल्यों और उद्देश्यों पर आधारित एक सशक्त साझेदारी है।”

सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग ने भी इस मौके पर भारत के साथ अपने देश के रिश्तों को “गहरे और विश्वासपूर्ण” बताया। उन्होंने कहा कि भारत न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भागीदार है और सिंगापुर भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। वोंग ने यह भी कहा कि डिजिटल भुगतान,नवाचार और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है और सिंगापुर इन क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग को और आगे बढ़ाना चाहता है।

यह वार्ता ऐसे समय में हुई है,जब दुनिया एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। जलवायु परिवर्तन,तकनीकी क्रांति,ऊर्जा संकट और भू-राजनीतिक तनाव जैसे मुद्दों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था की दिशा तय करनी शुरू कर दी है। इस संदर्भ में भारत और सिंगापुर की साझेदारी न केवल द्विपक्षीय महत्व रखती है,बल्कि यह क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भी एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और सिंगापुर की निकटता दोनों देशों के लिए लाभकारी होगी। भारत तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है,जिसके पास विशाल जनसंख्या और बाजार है,वहीं सिंगापुर वैश्विक वित्तीय केंद्र और एशिया में नवाचार का हब है। इन दोनों का मिलन आर्थिक,तकनीकी और रणनीतिक दृष्टि से बड़ी संभावनाएँ खोल सकता है।

अंततः यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग के बीच हुई इस मुलाकात ने भारत-सिंगापुर संबंधों को एक नई ऊँचाई दी है। यह केवल आर्थिक या तकनीकी सहयोग तक सीमित नहीं है,बल्कि यह उन साझा मूल्यों पर आधारित है जो दोनों देशों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। आने वाले समय में यह साझेदारी न केवल दोनों देशों की समृद्धि का आधार बनेगी बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और विकास का भी मार्ग प्रशस्त करेगी।