सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर लगाई अंतरिम रोक,कलेक्टर को अधिकार देने पर उठा सवाल

नई दिल्ली,15 सितंबर (युआईटीवी)- देश की सर्वोच्च अदालत ने वक्फ कानून में किए गए संशोधनों पर एक अहम अंतरिम फैसला सुनाया है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने उन प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगा दी है,जिनमें कलेक्टर को संपत्ति विवाद से जुड़े मामलों पर अधिकार दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर निर्णय लेने का अधिकार कलेक्टर को नहीं दिया जा सकता और यह संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है। हालाँकि,अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है।

गौरतलब है कि वक्फ कानून में किए गए संशोधनों की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं। 22 मई को अदालत ने इस मामले में सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब सोमवार को अंतरिम आदेश जारी करते हुए कोर्ट ने कहा कि कुछ प्रावधान ऐसे हैं,जिन पर अंतिम सुनवाई तक रोक लगाना जरूरी है। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि सामान्यतः किसी कानून की संवैधानिकता को चुनौती दिए जाने पर अदालत का रुख कानून के पक्ष में होता है और सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही उसमें हस्तक्षेप किया जाता है।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हमने प्रत्येक धारा को दी गई प्रथम दृष्टया चुनौती पर विचार किया है। हमें नहीं लगता कि कानून के पूरे प्रावधानों पर रोक लगाने का कोई मामला बनता है। हालाँकि,कुछ धाराओं पर अंतरिम संरक्षण देना जरूरी है,ताकि व्यक्तिगत अधिकार प्रभावित न हों।” इस आधार पर अदालत ने कलेक्टर को संपत्ति विवादों पर फैसला करने का अधिकार देने वाले प्रावधान को रोक दिया।

कोर्ट ने यह भी कहा कि वक्फ करने के लिए पाँच साल तक इस्लाम की प्रैक्टिस करने की अनिवार्यता का प्रावधान भी संविधान के अनुरूप नहीं है। इसलिए इस पर भी अंतरिम रोक लगा दी गई है। अदालत ने माना कि किसी भी व्यक्ति के धार्मिक अभ्यास और उसकी अवधि का निर्धारण कानून द्वारा अनिवार्य नहीं किया जा सकता। इस प्रकार,यह शर्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के विरुद्ध है।

इसके अलावा,सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी को लेकर भी निर्देश दिए। नए संशोधन के अनुसार,वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान रखा गया था। इस पर अदालत ने कहा कि वक्फ परिषदों में चार से अधिक गैर-मुस्लिम शामिल नहीं किए जाएँगे। साथ ही,किसी भी वक्फ बोर्ड में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते। कोर्ट का कहना था कि वक्फ संस्थाएँ एक धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी हुई हैं,इसलिए उसमें गैर-मुस्लिमों की संख्या का सीमित होना आवश्यक है,ताकि धार्मिक और सांस्कृतिक संतुलन बना रहे।

इस फैसले से यह साफ हो गया कि अदालत वक्फ कानून को पूरी तरह से निरस्त करने या रोक लगाने के पक्ष में नहीं है,लेकिन कुछ विवादित धाराओं को लेकर उसने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है। अदालत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संशोधन की प्रक्रिया के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला वक्फ कानून पर चल रही बहस को और गहरा कर देगा। एक ओर जहाँ सरकार का तर्क है कि संशोधन से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी,वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे वक्फ संस्थाओं की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा और धर्मनिरपेक्षता की भावना को ठेस पहुँचेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश फिलहाल दोनों पक्षों के लिए राहत और चुनौती का मिश्रण है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क रखा था कि कलेक्टर को संपत्ति विवादों में निर्णय लेने का अधिकार देना असंवैधानिक है,क्योंकि यह न्यायिक कार्यपालिका का काम है। कलेक्टर कार्यपालिका का हिस्सा है और उससे न्यायिक जिम्मेदारियाँ निभाने की उम्मीद करना शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है। इस तर्क को अदालत ने प्रथम दृष्टया सही माना और इस प्रावधान पर रोक लगा दी।

फिलहाल,मामले पर अंतिम निर्णय आना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट आने वाले महीनों में विस्तृत सुनवाई करके तय करेगा कि संशोधन की वैधता बनी रहनी चाहिए या नहीं,लेकिन अंतरिम आदेश ने यह संदेश जरूर दे दिया है कि अदालत किसी भी कानून की समीक्षा करते समय संतुलन और संवैधानिक मूल्यों को प्राथमिकता देती है।

वक्फ संस्थाएँ लंबे समय से देश में शिक्षा,स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में योगदान करती रही हैं। ऐसे में उनके संचालन और प्रबंधन से जुड़े कानून में कोई भी बदलाव व्यापक असर डाल सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस संदर्भ में ऐतिहासिक माना जा रहा है,क्योंकि इससे न केवल वक्फ संस्थाओं की संरचना प्रभावित होगी,बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों के प्रश्न पर भी गहरी बहस छिड़ जाएगी।

अदालत का यह निर्णय आने वाले समय में सरकार और वक्फ बोर्ड दोनों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह होगा। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि अंतिम सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है और देश की सबसे बड़ी अदालत वक्फ कानून की संवैधानिकता पर क्या अंतिम निर्णय सुनाती है।