वाशिंगटन,19 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से अपने बयान और नीतिगत फैसलों से वैश्विक राजनीति में हलचल पैदा कर रहे हैं। इस बार चर्चा का विषय अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस है,जो कभी अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा हुआ करता था। ट्रंप ने यूनाइटेड किंगडम के बकिंघमशायर स्थित प्रधानमंत्री आवास चेकर्स में ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान घोषणा की कि उनका प्रशासन बगराम एयरबेस को फिर से कब्जे में लेने की कोशिश कर रहा है। इस बयान ने न केवल अफगानिस्तान,बल्कि चीन और पूरे क्षेत्र की भू-राजनीति को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
ट्रंप ने अपने संबोधन में साफ कहा कि बगराम एयरबेस की अहमियत सिर्फ अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस बेस को फिर से हासिल करना जरूरी है,क्योंकि यह चीन के परमाणु हथियार बनाने वाली जगह से महज एक घंटे की दूरी पर स्थित है। इस खुलासे ने अमेरिकी इरादों को और स्पष्ट कर दिया है कि वॉशिंगटन की नई रणनीति का लक्ष्य सिर्फ आतंकवाद विरोधी अभियान नहीं,बल्कि चीन पर दबाव बनाना भी है।
गौरतलब है कि बगराम एयरबेस अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से करीब 44 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह वही एयरबेस है,जहाँ से अमेरिका ने 20 साल तक अफगानिस्तान में अपने सैन्य अभियानों का संचालन किया। 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान अमेरिकी सेना की वापसी के बाद यह बेस पूरी तरह तालिबान के कब्जे में चला गया। उस समय अमेरिकी प्रशासन ने कहा था कि अब अफगानिस्तान में सैन्य उपस्थिति की जरूरत नहीं है,लेकिन अब,ट्रंप के ताजा बयान से लगता है कि अमेरिका इस फैसले पर पुनर्विचार कर रहा है।
ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अफगानिस्तान को लेकर पिछले बाइडेन प्रशासन की आलोचना भी की। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी जल्दबाजी में हुई और इसने अमेरिका की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया। ट्रंप ने दावा किया कि अगर उनकी सरकार सत्ता में होती तो बगराम एयरबेस को कभी खाली नहीं किया जाता,क्योंकि इसका महत्व केवल अफगानिस्तान की राजनीति या आतंकवाद से जुड़ा नहीं है,बल्कि यह चीन जैसे वैश्विक प्रतिद्वंद्वी को लेकर भी रणनीतिक रूप से बेहद अहम है।
यह पहली बार नहीं है,जब ट्रंप ने बगराम एयरबेस का मुद्दा उठाया हो। मार्च 2025 में भी उन्होंने दावा किया था कि इस क्षेत्र पर चीन का प्रभाव बढ़ रहा है और बीजिंग इस जगह पर नियंत्रण बनाने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने तब भी कहा था कि यह बेस चीन की मिसाइल निर्माण सुविधाओं के बेहद करीब है और अमेरिका के लिए इसे खोना बड़ी गलती साबित हो सकती है।
हालाँकि,ट्रंप के इस दावे को अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि बगराम एयरबेस पर इस्लामिक अमीरात का ही नियंत्रण है,न कि चीन का। उन्होंने यह भी साफ किया कि वहाँ किसी भी विदेशी सैनिक की मौजूदगी नहीं है और न ही तालिबान ने किसी बाहरी देश के साथ ऐसा कोई समझौता किया है। तालिबान ने अमेरिका को चेतावनी भी दी है कि वह अफगानिस्तान की संप्रभुता का सम्मान करे और किसी तरह की दखलअंदाजी से बचे।
इस पूरे घटनाक्रम का असर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा हो सकता है। अफगानिस्तान में अमेरिका की संभावित वापसी का मतलब है कि एक बार फिर वहाँ अस्थिरता बढ़ सकती है। तालिबान और अमेरिका के बीच टकराव की आशंका बनी रहेगी। साथ ही,यह कदम चीन को भी सीधी चुनौती देने वाला साबित होगा। बगराम एयरबेस की लोकेशन अमेरिका को चीन की पश्चिमी सीमा के बेहद करीब पहुँचा देगी,जिससे बीजिंग की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ना तय है।
चीन और अमेरिका के बीच पहले ही व्यापार युद्ध,ताइवान विवाद और दक्षिण चीन सागर को लेकर तनाव चल रहा है। अब अगर अमेरिका बगराम एयरबेस पर दोबारा कब्जा करता है,तो यह तनाव और भी बढ़ सकता है। चीन इस कदम को अपनी संप्रभुता और सुरक्षा पर खतरे के रूप में देख सकता है।
दूसरी ओर,अमेरिका के सहयोगी देशों के लिए भी यह स्थिति असमंजस पैदा करने वाली है। नाटो के कई सदस्य अफगानिस्तान से अपनी सेनाएँ वापस बुला चुके हैं और दोबारा वहाँ सैन्य उपस्थिति को लेकर उनकी अनिच्छा जाहिर हो चुकी है। ऐसे में अमेरिका का अकेले कदम उठाना न केवल क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित करेगा,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर नए विवादों को जन्म देगा।
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है,जब 2026 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर माहौल बनने लगा है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप अपनी विदेश नीति को एक बार फिर चुनावी एजेंडा बनाना चाहते हैं। वह यह दिखाना चाह रहे हैं कि उनकी प्राथमिकता अमेरिका की वैश्विक ताकत को पुनः स्थापित करना और चीन को रोकना है। इस लिहाज से बगराम एयरबेस का मुद्दा न केवल विदेश नीति से जुड़ा है,बल्कि घरेलू राजनीति का भी हिस्सा है।
अफगानिस्तान की जनता के लिए यह खबर नए संकट की आशंका पैदा करती है। पिछले दो दशकों में वहाँ युद्ध और हिंसा ने आम लोगों का जीवन कठिन बना दिया है। अमेरिकी वापसी के बाद भी हालात स्थिर नहीं हो पाए थे और अब अगर अमेरिका फिर से सैन्य हस्तक्षेप करता है,तो वहाँ की जनता को एक बार फिर अस्थिरता और संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।
ट्रंप का बगराम एयरबेस पर कब्जे का इरादा केवल एक सैन्य रणनीति नहीं,बल्कि व्यापक भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है। यह कदम तालिबान के साथ सीधे टकराव की स्थिति पैदा कर सकता है और चीन-अमेरिका के बीच तनाव को नई ऊँचाई पर ले जा सकता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका अपनी इस नीति को कितना आगे बढ़ा पाता है और इसके क्षेत्रीय और वैश्विक असर क्या होंगे। अभी इतना तय है कि ट्रंप का यह बयान एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचाने के लिए काफी है।
