नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी (तस्वीर क्रेडिट@CommonBS786OM)

नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों और गोलीकांड पर पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली का बड़ा दावा

काठमांडू,19 सितंबर (युआईटीवी)- नेपाल इस समय गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। 8 सितंबर, 2025 को शुरू हुए ‘जेन-जी’ विरोध प्रदर्शनों ने देश को हिंसा और अराजकता की आग में झोंक दिया। काठमांडू और आसपास के क्षेत्रों में भड़की इस हिंसा ने नेपाल की लोकतांत्रिक राजनीति को हिला दिया है। पहले ही दिन,प्रदर्शनों के दौरान ऑटोमैटिक हथियारों से की गई फायरिंग में 19 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना इतनी भयावह थी कि पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई। इसके बाद धीरे-धीरे हिंसा पूरे देश में फैल गई और अब तक पुलिस के अनुसार कम-से-कम 72 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।

इसी बीच शुक्रवार, 19 सितंबर को नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस मामले पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि पुलिस के पास न तो ऑटोमैटिक हथियार थे और न ही उनकी सरकार ने कभी प्रदर्शनकारियों पर सीधे गोली चलाने का आदेश दिया था। ओली का यह दावा उस समय आया है,जब देश में यह आरोप लग रहे हैं कि सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर बल प्रयोग किया और सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध गोलीबारी की।

केपी ओली ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘जेन-जी’ विरोध प्रदर्शनों के दौरान स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल किसी बाहरी षड्यंत्र का हिस्सा था। उन्होंने आरोप लगाया कि असली प्रदर्शनकारियों के बीच षड्यंत्रकारी घुसपैठ कर गए थे,जिन्होंने हिंसा को अंजाम दिया और बड़ी संख्या में युवाओं की जान ली। ओली ने सवाल उठाया कि जब पुलिस के पास ऑटोमैटिक हथियार ही नहीं थे,तो फिर इतने लोगों की जान लेने वाली गोलियाँ कहाँ से चलीं। उनका यह बयान न केवल नई बहस को जन्म दे रहा है,बल्कि नेपाल की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को और जटिल बना रहा है।

8 सितंबर की हिंसा नेपाल के इतिहास में बेहद दर्दनाक घटनाओं में गिनी जा रही है। एक ही दिन में 19 लोगों की मौत ने न केवल समाज को झकझोर दिया,बल्कि देश की स्थिरता पर भी सवाल खड़े कर दिए। ओली ने कहा कि नेपाल के पिछले किसी भी आंदोलन में इतनी बड़ी संख्या में लोग एक ही दिन में नहीं मारे गए थे। उनका दावा है कि यह कोई साधारण विरोध आंदोलन नहीं था,बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय साजिश थी,जिसका उद्देश्य नेपाल को अस्थिर करना था।

प्रदर्शनों में हुई मौतों में वे लोग भी शामिल हैं,जो प्रदर्शनकारियों द्वारा आग के हवाले किए गए भाटभटेनी सुपरमार्केट में मारे गए। इसके अलावा,काठमांडू में स्थित सिंह दरबार,जो नेपाल सरकार का मुख्य प्रशासनिक केंद्र है,संसद भवन,सुप्रीम कोर्ट परिसर और अन्य अदालतों को भी आगजनी का निशाना बनाया गया। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों,राजनीतिक दलों के कार्यालयों और कई नेताओं के घरों को भी नहीं बख्शा गया। यहाँ तक कि स्वयं केपी ओली का बालकोट स्थित आवास भी आगजनी की चपेट में आ गया।

ओली अकेले ऐसे नेता नहीं थे,जिनके घरों पर हमला हुआ। शेर बहादुर देउबा,पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और झालनाथ खनल जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों के घरों को भी प्रदर्शनकारियों ने निशाना बनाया। यह घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि विरोध प्रदर्शन सामान्य राजनीतिक असहमति से कहीं अधिक बड़े षड्यंत्र में तब्दील हो चुके थे।

प्रदर्शनों की भयावहता को देखते हुए 9 सितंबर को ओली को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उन्होंने नेपाल सेना की सुरक्षा भी स्वीकार की। हालाँकि,हाल ही में उन्होंने सेना की सुरक्षा छोड़ दी और काठमांडू से लगभग 12 किलोमीटर दूर भक्तपुर के गुंडू इलाके में किराए के मकान में रहने चले गए। इस कदम को उनके आलोचक यह कहकर देख रहे हैं कि ओली जनता की सहानुभूति पाने और खुद को पीड़ित दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

ओली पर आरोप लग रहे हैं कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में नेपाल पतन की ओर चला गया। विपक्षी दलों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ओली ने हमेशा यह छवि पेश करने की कोशिश की कि उनकी सरकार देश को समृद्धि की राह पर ले जा रही है,लेकिन वास्तव में इस दौरान कई घोटाले सामने आए और राजनीतिक अस्थिरता और गहराई। आलोचकों का यह भी कहना है कि ओली के शासन में भ्रष्टाचार बढ़ा,प्रशासनिक निर्णयों में पारदर्शिता की कमी रही और विपक्ष को दबाने के लिए सख्ती दिखाई गई।

उनके इस्तीफे के बाद नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के लिए अंतरिम सरकार का गठन किया गया है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को इस अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपा गया है। कार्की के नेतृत्व में गठित इस सरकार का मुख्य कार्य अगले छह महीनों के भीतर संसदीय चुनाव कराना है। चुनाव की तारीख 5 मार्च,2026 तय की गई है। इस चुनाव को नेपाल के लिए निर्णायक माना जा रहा है,क्योंकि इससे यह तय होगा कि देश हिंसा और अस्थिरता की राह से निकलकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत कर पाता है या नहीं।

नेपाल के मौजूदा हालात न केवल उसके लिए बल्कि पड़ोसी देशों के लिए भी चिंता का विषय हैं। भारत,चीन और अन्य क्षेत्रीय शक्तियां नेपाल की स्थिरता में अपनी गहरी दिलचस्पी रखती हैं। ऐसे में ‘जेन-जी’ विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद की घटनाओं का असर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देखने को मिल सकता है।

केपी ओली के ताजा बयान ने यह सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि आखिर प्रदर्शनों के दौरान चली गोलियाँ किसने चलाईं। यदि पुलिस और सरकार की ओर से गोली नहीं चली,तो फिर यह जिम्मेदारी किसकी थी। क्या वास्तव में यह षड्यंत्र था या सरकार अपनी नाकामियों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है? आने वाले दिनों में इस पर होने वाली जाँच से ही सच्चाई सामने आ पाएगी,लेकिन फिलहाल यह साफ है कि नेपाल गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है,जहाँ जनाक्रोश,नेतृत्व की विफलता और षड्यंत्रों का जाल आपस में उलझा हुआ है।

नेपाल की जनता,जो वर्षों से स्थिरता और विकास की उम्मीद कर रही थी,अब खुद को एक बार फिर राजनीतिक हिंसा और असुरक्षा के दौर में पाती है। ऐसे में अंतरिम सरकार और आने वाले चुनाव ही इस देश के लिए नई दिशा तय करेंगे,लेकिन केपी ओली के आरोपों और दावों ने इस संकट को और गहराई दे दी है,जिससे यह साफ हो गया है कि नेपाल की राजनीति फिलहाल और अधिक हलचल देखने वाली है।