अमेरिकी सीनेट ने माइक वाल्ट्ज को संयुक्त राष्ट्र में राजदूत नियुक्त किया (तस्वीर क्रेडिट@EricS2075)

अमेरिकी सीनेट ने माइक वाल्ट्ज को संयुक्त राष्ट्र में राजदूत नियुक्त किया,ट्रंप संबोधन से पहले अहम फैसला

वाशिंगटन,20 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी सीनेट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए माइक वाल्ट्ज को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका का नया राजदूत नियुक्त कर दिया। यह पद पिछले आठ महीनों से खाली पड़ा था,जिसके कारण अमेरिका की वैश्विक मंच पर मौजूदगी और प्रभावशीलता को लेकर सवाल उठ रहे थे। अब इस फैसले के साथ ही अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र महासभा से पहले अपने कूटनीतिक प्रतिनिधित्व को मज़बूत करने का संकेत दिया है। माइक वाल्ट्ज व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं और अब वे अगले हफ्ते न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में शामिल होंगे। इस महासभा में राष्ट्रपति ट्रंप मंगलवार को वार्षिक संबोधन देने वाले हैं,जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा है।

सीनेट में हुई वोटिंग में माइक वाल्ट्ज की नियुक्ति को 47 सांसदों का समर्थन मिला,जबकि 43 सांसदों ने विरोध किया। यह अंतर अपेक्षाकृत कम रहा,जिससे साफ पता चलता है कि वाल्ट्ज को लेकर अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य में मतभेद भी गहरे हैं। इसके बावजूद ट्रंप प्रशासन ने इस नियुक्ति को अपनी कूटनीतिक जीत बताया है। दिलचस्प बात यह रही कि तीन डेमोक्रेट सांसद—पेंसिल्वेनिया से जॉन फैटरमैन,एरिजोना से मार्क केली और न्यू हैम्पशायर से जीन शाहीन ने पार्टी लाइन से हटकर वाल्ट्ज के पक्ष में वोट दिया। वहीं रिपब्लिकन पार्टी से केवल केंटकी के सांसद रैंड पॉल ऐसे रहे जिन्होंने विरोध में मतदान किया।

माइक वाल्ट्ज ने सीनेट में सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र को सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा था कि अमेरिका को संगठन में अपनी फंडिंग की समीक्षा करनी चाहिए और विशेष रूप से संगठन में व्याप्त यहूदी-विरोधी रवैये को खत्म करना समय की माँग है। वाल्ट्ज के अनुसार,संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप ढालने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही ज़रूरी है। उनकी इन टिप्पणियों ने समर्थन के साथ-साथ विरोध भी पैदा किया,क्योंकि कुछ सांसदों का मानना है कि इस तरह की बयानबाज़ी से अमेरिका का रवैया अत्यधिक कठोर दिख सकता है।

वाल्ट्ज की नियुक्ति तक की राह भी उतनी आसान नहीं रही। जनवरी से वे राष्ट्रपति ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में कार्यरत थे,लेकिन मार्च में उनसे एक बड़ी गलती हो गई,जिसने उन्हें उस पद से हाथ धोना पड़ा। दरअसल,यमन में संभावित सैन्य कार्रवाई को लेकर वरिष्ठ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों के बीच एक निजी सिग्नल चैट हो रही थी। गलती से वाल्ट्ज ने इस चैट में एक पत्रकार को जोड़ दिया,जिससे संवेदनशील चर्चाओं के लीक होने का खतरा पैदा हो गया। इस घटना ने ट्रंप प्रशासन को असहज कर दिया और वाल्ट्ज को पद छोड़ना पड़ा।

इसके बाद स्थिति और जटिल हो गई,जब 27 मार्च को राष्ट्रपति ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत पद के लिए रिपब्लिकन सांसद एलिस स्टेफनिक का नामांकन वापस ले लिया। स्टेफनिक के नामांकन पर पार्टी के भीतर ही असहमति जताई जा रही थी। ऐसे माहौल में ट्रंप ने मई में घोषणा की कि वह 51 वर्षीय माइक वाल्ट्ज को इस कूटनीतिक पद पर नियुक्त करना चाहते हैं। इस घोषणा को भी कई लोगों ने चौंकाने वाला कदम माना क्योंकि मार्च की गलती के बाद यह धारणा बन गई थी कि ट्रंप का वाल्ट्ज पर भरोसा कमजोर हो गया है।

पूर्व राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने 20 जनवरी को ही पद छोड़ दिया था,जब डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभाला था। उनके इस्तीफे के बाद से यह अहम पद रिक्त पड़ा था।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की छवि के लिए यह स्थिति असुविधाजनक थी,क्योंकि संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर स्थायी सदस्य देशों का मजबूत प्रतिनिधित्व होना अनिवार्य माना जाता है। इस रिक्ति ने न केवल अमेरिका की कूटनीतिक स्थिति को प्रभावित किया बल्कि चीन और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों को भी मौका दिया कि वे अपनी पकड़ मज़बूत करें।

वाल्ट्ज की नियुक्ति से अब यह रिक्तता खत्म हो गई है। वे अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में शामिल होंगे,जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक नेताओं को संबोधित करेंगे। यह संबोधन व्यापार,सुरक्षा,जलवायु परिवर्तन और यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर केंद्रित हो सकता है। ट्रंप का भाषण और वाल्ट्ज की मौजूदगी अमेरिका की विदेश नीति की दिशा को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि माइक वाल्ट्ज एक दृढ़ और स्पष्टवादी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। उनका सैन्य पृष्ठभूमि और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा अनुभव उन्हें संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका का सशक्त प्रतिनिधि बना सकता है। हालाँकि,आलोचकों का कहना है कि उनकी कठोर विचारधारा और विवादास्पद अतीत उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए मुश्किल प्रतिनिधि साबित कर सकता है।

फिलहाल यह नियुक्ति ट्रंप प्रशासन के लिए एक बड़ी राहत है। राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र में एक आक्रामक और सुधारवादी चेहरा अमेरिका की प्राथमिकताओं को दुनिया के सामने और मज़बूती से पेश करेगा। वहीं,डेमोक्रेट्स के बीच भी यह उम्मीद जताई जा रही है कि वाल्ट्ज अमेरिकी हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक सहयोग में संतुलन बनाने की कोशिश करेंगे।

माइक वाल्ट्ज की नियुक्ति न केवल अमेरिका की कूटनीतिक रिक्तता को भरती है,बल्कि आने वाले समय में संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की रणनीति और प्राथमिकताओं को भी नया आकार दे सकती है। अब सबकी निगाहें संयुक्त राष्ट्र महासभा और राष्ट्रपति ट्रंप के संबोधन पर टिकी हैं,जो तय करेगा कि अमेरिका आने वाले महीनों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में किस दिशा में कदम बढ़ाएगा।