मैसूर (कर्नाटक),22 सितंबर (युआईटीवी)- कर्नाटक के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाले मैसूर दशहरा उत्सव की शुरुआत इस बार एक खास और अनूठे अंदाज़ में हुई। बुकर पुरस्कार विजेता और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध लेखिका बानू मुश्ताक ने सोमवार को चामुंडी पहाड़ी स्थित देवी चामुंडेश्वरी को फूल चढ़ाकर इस भव्य पर्व का शुभारंभ किया। सुबह का वातावरण भक्तिमय और उल्लासपूर्ण था,जब वह पीले और हरे रंग की रेशमी साड़ी में,बालों में फूल सजाकर पारंपरिक अनुष्ठानों में सम्मिलित हुईं। उनके साथ कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राज्य सरकार के अन्य वरिष्ठ मंत्री भी मौजूद थे।
सुबह 10 बजकर 10 मिनट से 10 बजकर 40 मिनट के बीच के शुभ वृश्चिक लग्न में देवी चामुंडेश्वरी की पूजा संपन्न हुई। बानू मुश्ताक ने पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए माँ चामुंडेश्वरी की प्रतिमा के समक्ष फूल अर्पित किए और ‘मंगलारती’ में हाथ जोड़कर भावनात्मक प्रार्थना की। इस दौरान वे अत्यधिक भावुक हो गईं और पूजा के अंत में उन्हें आँसू पोंछते हुए भी देखा गया। गर्भगृह में प्रवेश कर विशेष पूजन के दौरान वह सबसे आगे खड़ी रहीं और पूरे श्रद्धाभाव से देवी के दर्शन किए।
पूजा-अर्चना के बाद मंदिर प्रशासन ने उनका सम्मान किया। उन्हें पारंपरिक मैसूर पेठा (विशेष पगड़ी) पहनाई गई और फूलों की माला से उनका स्वागत किया गया। मंदिर की ओर से उन्हें साड़ी भेंट की गई,जो मैसूर दशहरे की गरिमा और परंपरा का प्रतीक माना जाता है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया,कर्नाटक कैबिनेट के मंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी इस अवसर पर देवी चामुंडेश्वरी का आशीर्वाद लिया।
हालाँकि,इस बार के दशहरा उत्सव की शुरुआत राजनीतिक विवादों से भी घिरी रही। भाजपा नेताओं और हिंदू कार्यकर्ताओं ने बानू मुश्ताक द्वारा दशहरा उद्घाटन का विरोध किया। उनका तर्क था कि इस परंपरा का निर्वाह धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में होना चाहिए और एक बुकर विजेता लेखिका को चुने जाने पर आपत्ति जताई गई। इस विरोध के मद्देनज़र राज्य सरकार ने मंदिर और पहाड़ी पर विशेष सुरक्षा व्यवस्था की थी,ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचा जा सके।
उद्घाटन के लिए बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के फैसले को भाजपा ने अदालत तक चुनौती दी थी। पूर्व भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा और दो अन्य याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के निर्णय को रोकने की माँग की थी,लेकिन अदालत ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया और सरकार के फैसले को सही ठहराया। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में भी इस फैसले को चुनौती दी गई थी,पर वहाँ भी राहत नहीं मिल पाई। अदालतों के इस रुख ने राज्य सरकार के निर्णय को और मजबूती प्रदान की।
कर्नाटक के कन्नड़ और संस्कृति मंत्री शिवराज तंगड़गी ने इस विवाद पर भाजपा की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास जनता के सामने दिखाने के लिए कोई ठोस काम नहीं है। कांग्रेस सरकार ने अपनी पाँच गारंटियों को सफलतापूर्वक लागू कर दिया है और जनता इससे संतुष्ट है। यही कारण है कि भाजपा धार्मिक मुद्दों को हवा देकर लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि दशहरा उत्सव जैसे अवसरों का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए,बल्कि इसे एक सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक बने रहना चाहिए।
बानू मुश्ताक का दशहरा उत्सव से जुड़ना कई मायनों में खास है। साहित्य जगत की इस दिग्गज हस्ती को सम्मानित कर कर्नाटक सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि राज्य अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के साथ-साथ आधुनिकता और वैश्विक पहचान को भी महत्व देता है। उनकी उपस्थिति ने समारोह में एक विशिष्ट गरिमा और अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण जोड़ दिया।
मैसूर दशहरा कर्नाटक की पहचान और गौरव का प्रतीक है। दस दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव की शुरुआत देवी चामुंडेश्वरी की पूजा से होती है और यह विजयादशमी तक विभिन्न धार्मिक,सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों के साथ संपन्न होता है। यह उत्सव केवल धार्मिक आस्था ही नहीं,बल्कि कला,साहित्य,नृत्य और संगीत की विविध परंपराओं को भी प्रदर्शित करता है।
इस वर्ष,बानू मुश्ताक के हाथों उद्घाटन ने दशहरे को और भी विशेष बना दिया है। विरोध और विवादों के बावजूद,देवी चामुंडेश्वरी के आशीर्वाद और लोगों की आस्था ने इस पर्व की गरिमा को और ऊँचा कर दिया। उत्सव का यह प्रारंभ इस बात का प्रमाण है कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकती हैं और एक विविधतापूर्ण समाज में साहित्य,संस्कृति और आस्था का संगम ही सबसे बड़ी ताकत है।