न्यूयॉर्क,23 सितंबर (युआईटीवी)- भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक संबंध एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं। सोमवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो के बीच हुई मुलाकात ने इस धारणा को और मजबूत किया है। यह बैठक न केवल द्विपक्षीय मुद्दों पर संवाद का अवसर बनी,बल्कि वैश्विक परिदृश्य में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए आपसी सहयोग पर भी बल दिया गया।
जयशंकर ने बैठक के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा किया कि बातचीत कई द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर केंद्रित रही। उन्होंने इसे “अच्छी” बैठक बताते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच संपर्क बनाए रखने पर सहमति बनी है और प्राथमिक क्षेत्रों में प्रगति के लिए सतत संवाद जारी रहेगा। खास बात यह रही कि अमेरिकी विदेश मंत्री रूबियो की उस दिन की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के विदेश मंत्री के साथ ही थी। यह तथ्य भारत-अमेरिका संबंधों की प्राथमिकता को उजागर करता है।
बैठक से पहले दोनों नेताओं ने मीडिया के सामने गर्मजोशी से हाथ मिलाया,लेकिन किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। सम्मेलन कक्ष को भारतीय और अमेरिकी झंडों तथा फूलों से सजाया गया था,जो इस मुलाकात की गंभीरता और औपचारिकता को दर्शाता है।
भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से व्यापारिक मुद्दों पर मतभेद रहे हैं,विशेषकर रूस से भारत की तेल खरीद को लेकर। अमेरिका बार-बार यह संकेत देता रहा है कि भारत को रूस पर निर्भरता कम करनी चाहिए,लेकिन भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि ऊर्जा सुरक्षा उसकी प्राथमिकता है और उसके फैसले पूरी तरह राष्ट्रीय हितों के आधार पर होते हैं। इसके बावजूद,रणनीतिक स्तर पर दोनों देशों का सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है। क्वाड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है,जिसमें भारत और अमेरिका के साथ जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। यह समूह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और संतुलन बनाए रखने के लिए काम कर रहा है और चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच इसकी भूमिका और अहम हो जाती है।
रूबियो भी क्वाड समूह को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। जुलाई में उन्होंने वॉशिंगटन डीसी में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक की थी,जिसमें उन्होंने भारत को अमेरिका का “महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार” करार दिया था। यह बयान इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि अमेरिका भारत को न केवल क्षेत्रीय,बल्कि वैश्विक शक्ति के रूप में भी मान्यता दे रहा है।
इस बैठक के कुछ दिन पहले ही भारत और अमेरिका के बीच नई दिल्ली में द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर वार्ता हुई थी। भारत की ओर से इस वार्ता में राजेश अग्रवाल और अमेरिका की ओर से ब्रेंडन लिंच शामिल हुए थे। भारत ने इस बातचीत को “सकारात्मक और भविष्यद्रष्टि वाली” करार दिया। माना जा रहा है कि इन वार्ताओं का परिणाम व्यापारिक बाधाओं को कम करने और निवेश के नए अवसरों को खोलने में मदद करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें बधाई दी और “यूक्रेन युद्ध को खत्म करने में मदद” के लिए आभार जताया। यह संदेश न केवल व्यक्तिगत स्तर पर संबंधों की गर्मजोशी को दर्शाता है,बल्कि वैश्विक कूटनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को भी उजागर करता है। मोदी ने भी अपने जवाब में यह कहा कि वह भारत-अमेरिका साझेदारी को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस प्रकार,दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की आपसी समझ और सहयोग अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में महत्वपूर्ण संकेत दे रहा है।
हालाँकि,इन सकारात्मक घटनाक्रमों के बीच कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। अमेरिका ने हाल ही में एच-1बी वीजा से जुड़े नियमों को और कड़ा करने की घोषणा की है। ट्रंप प्रशासन ने वीजा शुल्क को 100,000 डॉलर तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। इस कदम ने भारतीय पेशेवरों और आईटी उद्योग में चिंता बढ़ा दी है। भारत लंबे समय से इस बात पर जोर देता रहा है कि प्रतिभा का मुक्त प्रवाह दोनों देशों के लिए लाभकारी है। लाखों भारतीय पेशेवर अमेरिका की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं और इन पर लगाए जाने वाले नए प्रतिबंध भारत-अमेरिका संबंधों में एक नाजुक मोड़ साबित हो सकते हैं।
फिर भी,विश्लेषकों का मानना है कि द्विपक्षीय संबंधों में इन चुनौतियों को अवसरों में बदलने की क्षमता है। भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक मूल्य साझा करते हैं और वैश्विक व्यवस्था में स्थिरता और संतुलन की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं। ऐसे में,मतभेदों के बावजूद साझेदारी का दायरा सीमित नहीं होगा। बल्कि,रक्षा,तकनीक,जलवायु परिवर्तन,ऊर्जा सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग जैसे मुद्दे इन संबंधों की दिशा तय करेंगे।
जयशंकर और रूबियो की मुलाकात ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि भारत और अमेरिका अपने रिश्तों को नई दिशा देने के लिए तैयार हैं। रूस से ऊर्जा आयात या व्यापारिक मतभेद जैसी चुनौतियाँ दोनों देशों के बीच के रिश्तों को कमजोर नहीं कर सकतीं। बल्कि,यह संवाद ही है जो इन मतभेदों को सुलझाने और साझा हितों को आगे बढ़ाने का रास्ता दिखाएगा।
यह बैठक भारत-अमेरिका संबंधों की मजबूती का प्रतीक है। दोनों देशों ने दिखाया है कि वे मतभेदों के बावजूद सहयोग की भावना को प्राथमिकता देंगे। क्वाड जैसे मंचों पर साझेदारी,द्विपक्षीय व्यापार में प्रगति और वैश्विक मुद्दों पर साझा दृष्टिकोण यह संकेत देते हैं कि आने वाले वर्षों में भारत-अमेरिका संबंध और भी गहरे और बहुआयामी होंगे। जयशंकर और रूबियो की मुलाकात इसी उभरते हुए अध्याय की शुरुआत मानी जा सकती है।