विदेश मंत्री एस. जयशंकर (तस्वीर क्रेडिट@DrSJaishankar)

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ग्लोबल साउथ देशों से बहुआयामी सहयोग की अपील की

संयुक्त राष्ट्र,24 सितंबर (युआईटीवी)- संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान भारत ने एक बार फिर से ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज़ को बुलंद किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को ‘समान विचारधारा वाले ग्लोबल साउथ देशों’ की उच्चस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए विकासशील और उभरते राष्ट्रों से बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि दुनिया जिन चुनौतियों का सामना कर रही है,उनका हल केवल साझा सहयोग और सामूहिक ताकत से ही संभव है। इस बैठक में सिंगापुर,इंडोनेशिया,नाइजीरिया,क्यूबा,चाड,जमैका,वियतनाम, मॉरीशस और मोरक्को जैसे 18 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। यह मंच भारत की उस निरंतर पहल का हिस्सा है,जिसके जरिए वह ‘ग्लोबल साउथ’ को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में एक मज़बूत आवाज़ देने की कोशिश कर रहा है।

विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को अपनी-अपनी क्षमताओं और अनुभवों का लाभ एक-दूसरे के साथ साझा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये राष्ट्र विविध पृष्ठभूमि,राजनीतिक ढाँचे और आर्थिक व्यवस्थाओं से आते हैं,लेकिन सभी के सामने विकास,स्थिरता और प्रौद्योगिकी से जुड़ी समान चुनौतियाँ हैं। यदि वे मिलकर इन मुद्दों का समाधान खोजें,तो न केवल उनके देशों को लाभ होगा,बल्कि वैश्विक व्यवस्था भी अधिक न्यायसंगत और समावेशी बन सकेगी।

जयशंकर ने विशेष रूप से स्वास्थ्य,डिजिटल क्षमताओं,शिक्षा व्यवस्था,कृषि पद्धतियों और लघु एवं मध्यम उद्योग संस्कृति का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में ‘ग्लोबल साउथ’ देशों के पास न केवल विशिष्ट अनुभव हैं,बल्कि नवाचार के भी कई उदाहरण हैं। उदाहरण के लिए भारत की वैक्सीन निर्माण और वितरण क्षमता ने कोविड-19 महामारी के दौरान पूरी दुनिया को दिखाया कि विकासशील राष्ट्र भी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। इसी तरह,डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर,जो भारत ने आधार और यूपीआई के रूप में विकसित किया है,अन्य देशों के लिए भी मॉडल साबित हो सकता है।

विदेश मंत्री ने भविष्य की ओर भी इशारा किया और कहा कि उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना समय की आवश्यकता है। उन्होंने विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की संभावनाओं का उल्लेख किया और कहा कि यह तकनीक शिक्षा,स्वास्थ्य,कृषि और शासन जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। जयशंकर ने सुझाव दिया कि ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को मिलकर एआई के जिम्मेदार और समावेशी उपयोग की रणनीति बनानी चाहिए,ताकि यह प्रौद्योगिकी असमानताओं को बढ़ाने के बजाय विकास को आगे ले जाने का साधन बने।

बैठक में मालदीव के विदेश मंत्री ने भी ‘ग्लोबल साउथ’ की एकता और सामूहिक कार्रवाई की शक्ति पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह देशों का समूह अपनी साझी चुनौतियों का समाधान तभी निकाल पाएगा,जब सभी मिलकर काम करेंगे और एक-दूसरे के अनुभवों से सीखेंगे। उन्होंने समावेशी विकास और टिकाऊ भविष्य की दिशा में मिलकर आगे बढ़ने का भरोसा भी दिलाया।

राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भी जयशंकर ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार,मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे अब पुरानी हो चुकी व्यवस्थाओं पर आधारित हैं,जो विकासशील देशों की आकांक्षाओं और हितों को पूरी तरह प्रतिबिंबित नहीं करते। ऐसे में ‘ग्लोबल साउथ’ देशों को मिलकर इन संस्थानों में बदलाव की दिशा में दबाव बनाना चाहिए,ताकि वैश्विक शासन अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधित्वपूर्ण हो सके।

विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि मौजूदा मंचों का उपयोग एकजुटता बनाने के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि विकासशील राष्ट्र सामूहिक रूप से आगे आते हैं,तो वे न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था और कूटनीति में अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं,बल्कि जलवायु परिवर्तन,ऊर्जा सुरक्षा,खाद्य संकट और प्रौद्योगिकी के न्यायपूर्ण वितरण जैसे मुद्दों पर भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

भारत लंबे समय से ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज़ बनने की कोशिश करता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने जनवरी 2023 में ‘वॉइस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन आयोजित किया था,जिसमें 125 देशों ने भाग लिया था। इस पहल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकासशील देशों की आकांक्षाएँ और चिंताएँ भी शामिल हों। वर्तमान बैठक उसी प्रयास का विस्तार है,जहाँ भारत इन देशों को एक साझा मंच पर लाकर उनकी आवाज़ को और मजबूत बनाने की कोशिश कर रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि ‘ग्लोबल साउथ’ की एकता आज की भू-राजनीतिक परिस्थितियों में और भी अहम हो गई है। जलवायु परिवर्तन,महामारी, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला संकट और आर्थिक असमानता जैसी चुनौतियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन समस्याओं का समाधान किसी एक देश के बस की बात नहीं है। जब तक विकासशील राष्ट्र अपनी ताकतों को एकजुट नहीं करेंगे,तब तक उनकी आवाज़ वैश्विक मंच पर कमजोर ही बनी रहेगी।

जयशंकर का यह बयान ऐसे समय आया है,जब दुनिया शक्ति संतुलन के नए दौर से गुजर रही है। पश्चिमी देशों का प्रभुत्व चुनौती के दौर से गुजर रहा है और एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों की भूमिका बढ़ रही है। ऐसे में भारत की यह पहल न केवल उसकी वैश्विक भूमिका को मजबूत करती है,बल्कि उसे उन देशों के बीच भी भरोसेमंद भागीदार बनाती है,जो अक्सर वैश्विक मंचों पर अनदेखे रह जाते हैं।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर का यह संदेश ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए एक रोडमैप की तरह है। उन्होंने साफ कर दिया है कि विकासशील राष्ट्र यदि अपनी क्षमताओं और अनुभवों का लाभ उठाकर सामूहिक सहयोग की राह चुनते हैं,तो वे न केवल मौजूदा चुनौतियों का समाधान खोज सकते हैं,बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी वैश्विक व्यवस्था भी बना सकते हैं।