यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की (तस्वीर क्रेडिट@dawnmclancy)

संयुक्त राष्ट्र महासभा में जेलेंस्की का तीखा संबोधन: सुरक्षा की गारंटी अंतर्राष्ट्रीय कानून के बजाय हथियारों से तय करने की बात कही

न्यूयॉर्क,25 सितंबर (युआईटीवी)- न्यूयॉर्क में जारी संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 79वें सत्र में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने अपने संबोधन में वैश्विक सुरक्षा,शांति और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका पर गहन सवाल खड़े किए। महासभा के दूसरे दिन के दूसरे वक्ता के रूप में बोलते हुए जेलेंस्की ने कहा कि आज की दुनिया में शांति की गारंटी अंतर्राष्ट्रीय कानून या सहयोग से नहीं,बल्कि हथियारों और सैन्य ताकत से तय होती है। उनका यह बयान न केवल रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में आया बल्कि उसने वैश्विक व्यवस्था की मौजूदा खामियों को भी उजागर किया।

जेलेंस्की ने शुरुआत से ही अपने भाषण को बेहद आक्रामक और व्यावहारिक अंदाज में रखा। उन्होंने कहा, “आप भी उतनी ही सुरक्षा और शांति चाहते हैं,जितनी आज हम यूक्रेनवासी चाहते हैं,लेकिन सच यही है कि सुरक्षा की गारंटी हमारे अलावा कोई और नहीं दे सकता। केवल मजबूत गठबंधन,मजबूत साझेदार और हमारे अपने हथियार ही इस काम को अंजाम दे सकते हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि 21वीं सदी बीते दौर से बहुत अलग नहीं है क्योंकि अगर कोई राष्ट्र शांति चाहता है,तो उसे अब भी हथियारों पर भरोसा करना पड़ता है।

यूक्रेनी राष्ट्रपति ने अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संस्थाओं की निष्क्रियता पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज की वैश्विक व्यवस्था महज औपचारिक बयानों और बैठकों तक सीमित होकर रह गई है। गाजा,सोमालिया और सूडान जैसे क्षेत्रों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इन इलाकों में दशकों से जारी संघर्षों को रोकने के लिए कोई ठोस अंतर्राष्ट्रीय कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने सवाल उठाया कि “सूडान, सोमालिया,फिलिस्तीन या दशकों से युद्ध झेल रहे अन्य देशों को संयुक्त राष्ट्र या वैश्विक व्यवस्था से आखिर क्या उम्मीद करनी चाहिए,सिवाय बयानों और आश्वासनों के?”

जेलेंस्की ने विशेष रूप से सीरिया का उल्लेख किया और कहा कि वहाँ की अर्थव्यवस्था को चौपट कर रहे प्रतिबंधों में ढील देने के लिए आज भी दमिश्क को दुनिया से अपील करनी पड़ रही है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि एक ओर तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानवता की बातें करता है,लेकिन दूसरी ओर वास्तविक जरूरत पड़ने पर सहायता के लिए देशों को इंतजार करना पड़ता है। उनका कहना था कि “सीरिया की मदद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को करनी चाहिए,उसे यह अधिकार माँगने के बजाय सहज रूप से मिलना चाहिए।”

इसके बाद यूक्रेनी राष्ट्रपति ने सीधे रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा उठाया। उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि पिछले दो वर्षों से यह संघर्ष लगातार चल रहा है और इसके खात्मे का कोई ठोस रास्ता नहीं निकल पाया है। उन्होंने कहा, “मेरे देश के खिलाफ रूस का युद्ध जारी है। हर हफ्ते लोग मारे जा रहे हैं,फिर भी युद्धविराम संभव नहीं हो पा रहा है।” जेलेंस्की ने पश्चिमी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की निष्क्रियता पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि पिछले वर्ष जापोरिज्जिया परमाणु संयंत्र पर हुए रूसी हमले के परिणामस्वरूप विकिरण का खतरा स्पष्ट रूप से मौजूद था,लेकिन तब से अब तक कोई सुधार या निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि रूस न तो गोलाबारी बंद कर रहा है और न ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की कोई चिंता कर रहा है। स्थिति यह है कि परमाणु संयंत्रों के पास भी हमले किए जा रहे हैं और इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन इतने कमजोर साबित हो रहे हैं कि इस तरह की “पागलपन भरी कार्रवाइयाँ” जारी हैं। जेलेंस्की ने यहाँ वैश्विक नेतृत्व की जिम्मेदारी पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये संस्थाएँ आज की जटिल चुनौतियों से निपटने में पूरी तरह असफल हो रही हैं।

अपने संबोधन में उन्होंने नाटो और उसके सदस्य देशों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज के दौर में केवल सैन्य गठबंधन का हिस्सा होना भी सुरक्षा की गारंटी नहीं है। पोलैंड,रोमानिया और एस्टोनिया में हाल के घटनाक्रमों को याद करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि नाटो का हिस्सा होना मात्र किसी देश को सुरक्षित नहीं बनाता। उनके अनुसार यह भ्रम पालना गलत होगा कि बड़े सैन्य गठबंधन की छत्रछाया में रहकर कोई राष्ट्र पूरी तरह से सुरक्षित है।

जेलेंस्की का यह भाषण न केवल यूक्रेन की वर्तमान स्थिति का वर्णन था,बल्कि यह एक तरह से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए चेतावनी भी थी। उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि अब समय आ गया है,जब दुनिया को वास्तविकताओं का सामना करना होगा। केवल कानून,सहयोग और औपचारिक संवाद के सहारे शांति स्थापित नहीं की जा सकती। जब तक राष्ट्र अपने लिए मजबूत सैन्य ताकत और ठोस रक्षा तंत्र नहीं बनाएँगे,तब तक वे किसी भी खतरे से सुरक्षित नहीं रह सकते।

इस तरह,यूक्रेनी राष्ट्रपति का संबोधन पूरी तरह से पारंपरिक कूटनीतिक भाषणों से अलग था। उन्होंने बेबाकी से यह स्वीकार किया कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही है और वास्तविकता यही है कि शांति का निर्धारण हथियारों और ताकत से होता है। उनका यह संदेश न केवल रूस-यूक्रेन युद्ध की त्रासदी को दर्शाता है,बल्कि भविष्य की वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी एक गंभीर चेतावनी है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोलोडिमिर जेलेंस्की का भाषण दुनिया के सामने यह सवाल छोड़ गया कि क्या 21वीं सदी में शांति और सुरक्षा के लिए अब भी हथियार ही अंतिम सहारा बने रहेंगे या फिर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ अपने दायित्व को निभाने की क्षमता हासिल कर पाएँगी।