भारत-सिका सहयोग (तस्वीर क्रेडिट@sg_sica)

भारत-सिका सहयोग: डिजिटल भुगतान से लेकर जलवायु परिवर्तन तक साझेदारी का नया अध्याय

न्यूयॉर्क,26 सितंबर (युआईटीवी)- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सेंट्रल अमेरिकी देशों के साथ भारत की विशेषज्ञता और अनुभव साझा करने की पेशकश करते हुए सहयोग का एक नया अध्याय खोलने की दिशा में कदम बढ़ाया है। गुरुवार को न्यूयॉर्क में आयोजित पाँचवीं भारत-सिका विदेश मंत्रियों की बैठक में उन्होंने डिजिटल भुगतान प्रणाली,सूचना प्रौद्योगिकी,फार्मास्यूटिकल्स और कृषि जैसे क्षेत्रों में भारत के सफल मॉडल और तकनीकी उपलब्धियों को सामने रखा और कहा कि साझा चुनौतियों का सामना केवल साझेदारी और आपसी सहयोग से ही संभव है।

जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि भारत और सेंट्रल अमेरिकी देशों के बीच विकास,गरीबी उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन जैसी समान चुनौतियाँ मौजूद हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए यदि हम मिलकर कार्य करें,तो इसका लाभ न केवल हमारे देशों को मिलेगा बल्कि यह साझेदारी वैश्विक व्यवस्था को भी अधिक संतुलित और बहुध्रुवीय बनाने में योगदान देगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सिका देशों के साथ डिजिटल क्षेत्र,नवीकरणीय ऊर्जा,खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा तथा जलवायु कार्रवाई जैसे क्षेत्रों में ठोस परिणाम हासिल करना चाहता है।

सेंट्रल अमेरिकन इंटीग्रेशन सिस्टम यानी सिका आठ देशों का समूह है,जो क्षेत्रीय आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के लिए कार्य करता है। भारत ने वर्ष 2004 से इस संगठन के साथ मंत्रिस्तरीय स्तर पर काम करना शुरू किया था। बीते दो दशकों में भारत और सिका के बीच संबंध धीरे-धीरे गहरे हुए हैं,विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद जब भारत ने स्वास्थ्य सुरक्षा और डिजिटल परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। जयशंकर ने कहा कि महामारी के बाद की रिकवरी,ऊर्जा सुरक्षा,विकास के लिए वित्तपोषण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने में भारत-सिका सहयोग की भूमिका काफी अहम हो गई है।

डिजिटल क्रांति की चर्चा करते हुए विदेश मंत्री ने भारत में विकसित यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि इस प्रणाली ने भारत में डिजिटल लेनदेन की तस्वीर बदल दी है। आज दुनिया के आधे से अधिक कैशलेस भुगतान भारत में होते हैं और इसका श्रेय यूपीआई को जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सिका देश इस प्रणाली को अपनाते हैं,तो यह उनकी अर्थव्यवस्थाओं को अधिक पारदर्शी,सुविधाजनक और सुरक्षित बनाएगा।

भारत ने अपनी बात केवल तकनीकी या आर्थिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं रखी,बल्कि निवेश और व्यापार के अवसरों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। जयशंकर ने कहा कि भारत का निजी क्षेत्र कृषि,नवीकरणीय ऊर्जा,फार्मास्यूटिकल्स और आईटी जैसे क्षेत्रों में सिका देशों में निवेश करने के लिए इच्छुक है। ये ऐसे क्षेत्र हैं,जहाँ भारत की ऐतिहासिक पकड़ मजबूत रही है और अब यह अनुभव सिका देशों के लिए विकास का आधार बन सकता है।

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जयशंकर ने भारत की उपलब्धियों और संभावनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियों ने सौर ऊर्जा,हरित हाइड्रोजन और बायोएनर्जी जैसे क्षेत्रों में न केवल देश के भीतर,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। यह अनुभव सिका देशों के साथ साझा करके जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को और भी प्रभावी बनाया जा सकता है।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कोरोना महामारी के कठिन समय में भारत ने सिका देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की थी। यह कदम भारत की “वैक्सीन मैत्री” पहल का हिस्सा था,जिसने न केवल भारत और सिका देशों के बीच विश्वास को मजबूत किया,बल्कि दोनों क्षेत्रों के रिश्तों को और गहरा किया। जयशंकर ने कहा कि भारत भविष्य में भी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने और किफायती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए सिका देशों के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

सिर्फ महामारी ही नहीं,बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के समय भी भारत ने सिका देशों के साथ एकजुटता दिखाई है। जयशंकर ने उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले वर्ष जब सिका देशों को भयंकर तूफानों ने प्रभावित किया और बुनियादी ढाँचे तथा आजीविका को व्यापक नुकसान पहुँचाया,तब भारत ने दवाओं,राहत सामग्री और आपातकालीन सहायता के रूप में मदद प्रदान की थी। उन्होंने कहा कि यह भारत की साझेदारी और सहयोग की भावना का प्रमाण है।

जयशंकर का यह वक्तव्य केवल कूटनीतिक संबंधों तक सीमित नहीं है,बल्कि यह उस व्यापक दृष्टिकोण को भी दर्शाता है,जिसके तहत भारत बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी भूमिका को मजबूती से स्थापित करना चाहता है। भारत मानता है कि सेंट्रल अमेरिका जैसे क्षेत्रों के साथ साझेदारी न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी,बल्कि वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

बैठक में उपस्थित प्रतिनिधियों ने भी भारत के प्रस्तावों और दृष्टिकोण का स्वागत किया। यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में भारत और सिका देशों के बीच संबंध और अधिक गहरे होंगे,विशेषकर उन क्षेत्रों में जो विकासशील देशों की प्राथमिकताओं से जुड़े हैं। डिजिटल भुगतान प्रणाली,स्वास्थ्य सुरक्षा,नवीकरणीय ऊर्जा और कृषि जैसे क्षेत्र इन रिश्तों की नई नींव बन सकते हैं।

विदेश मंत्री जयशंकर का यह प्रस्ताव भारत और सेंट्रल अमेरिकी देशों के बीच साझेदारी के एक नए दौर की शुरुआत है। यह न केवल साझा चुनौतियों का समाधान करने का अवसर है,बल्कि दोनों क्षेत्रों के बीच विश्वास और सहयोग को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का भी अवसर है। डिजिटल नवाचार से लेकर जलवायु परिवर्तन तक,यह साझेदारी आने वाले समय में वैश्विक व्यवस्था को संतुलित और अधिक समावेशी बनाने में अपनी अहम भूमिका निभा सकती है।