विदेश मंत्री एस. जयशंकर ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए (तस्वीर क्रेडिट@ximeryuvrajsinh)

वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर दबाव के बीच जयशंकर का संदेश,ब्रिक्स देशों से एकजुट होकर चुनौतियों का सामना करने की अपील

संयुक्त राष्ट्र,27 सितंबर (युआईटीवी)- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में ब्रिक्स देशों की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आज बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था गंभीर दबाव में है और इस समय बढ़ते संरक्षणवाद,ऊँचे-नीचे शुल्क,गैर-शुल्क बाधाओं और राजनीतिक रूप से प्रेरित आर्थिक प्रतिबंधों ने वैश्विक व्यापार की बुनियाद को हिला दिया है। ऐसे में ब्रिक्स देशों को एकजुट होकर न केवल इन चुनौतियों का सामना करना होगा,बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था की रक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी।

जयशंकर का यह बयान उस समय आया है,जब अमेरिका ने ब्रिक्स देशों पर व्यापारिक दबाव बनाने की रणनीति तेज कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही अतिरिक्त शुल्क लगाने की धमकी दी थी और अब उन्होंने भारत और ब्राजील पर कुल 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगा दिया है। इसी के साथ दक्षिण अफ्रीका से होने वाले अधिकांश आयातों पर भी 30 प्रतिशत तक का शुल्क लगाया गया है। हालाँकि,जयशंकर ने अपने बयान में सीधे तौर पर अमेरिका का नाम नहीं लिया,लेकिन उनका इशारा साफ था कि बढ़ते संरक्षणवादी कदम वैश्विक व्यापार और निवेश के माहौल को अस्थिर कर रहे हैं।

बैठक में इथियोपिया के विदेश राज्य मंत्री हदेरा अबेरा अदमासु ने भी संयुक्त कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों को मिलकर एक ऐसे माहौल का निर्माण करना चाहिए,जो न केवल वैश्विक संस्थाओं में सुधार की राह प्रशस्त करे,बल्कि विकासशील देशों के लिए न्यायपूर्ण और सुरक्षित वातावरण भी प्रदान करे। अदमासु ने यह भी कहा कि आज के दौर में शांति स्थापना,वैश्विक संतुलन और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के लिए ब्रिक्स जैसे संगठन की भूमिका पहले से कहीं अधिक अहम हो गई है।

जयशंकर ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि ब्रिक्स हमेशा विवेकपूर्ण और सकारात्मक बदलाव की आवाज उठाने वाला मंच रहा है। उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय व्यवस्था जब-जब दबाव में आई है,तब-तब ब्रिक्स देशों ने अपने रुख और कार्यों से यह साबित किया है कि वे वैश्विक स्थिरता और विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री ने इस दौरान आईबीएसए (भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी हिस्सा लिया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि आईबीएसए बैठक में शैक्षणिक मंच,समुद्री अभ्यास,ट्रस्ट फंड और आपसी व्यापार जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।

ब्रिक्स मंत्रियों की बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर भी विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। जयशंकर ने साफ कहा कि व्यापार व्यवस्था से परे,ब्रिक्स को संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों,खासकर सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार के लिए जोरदार प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया आज जिस अस्थिरता से गुजर रही है,उसमें ब्रिक्स को शांति स्थापना,संवाद,कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय कानून के पालन के संदेश को और अधिक मजबूती से आगे बढ़ाना होगा।

ब्रिक्स संगठन का गठन मूल रूप से पाँच देशों—ब्राजील,रूस,भारत,चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ हुआ था। इसका नाम भी इन्हीं पाँच देशों के शुरुआती अक्षरों से बना है। हालाँकि,समय के साथ इस समूह में नए सदस्य भी जुड़े हैं और अब यह दस उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का संगठन बन चुका है। इस संगठन का मुख्य मकसद आर्थिक और सामाजिक विकास के मुद्दों पर मिलकर काम करना और विकासशील देशों के हितों की रक्षा करना है।

भारत अगले साल ब्रिक्स का अध्यक्ष बनेगा और यह जिम्मेदारी ब्राज़ील से भारत को मिलेगी। जयशंकर ने कहा कि भारत की प्राथमिकताएँ खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा,जलवायु परिवर्तन और सतत विकास होंगी। उन्होंने यह भी बताया कि भारत डिजिटल बदलाव,स्टार्टअप्स,नवाचार और मजबूत विकास साझेदारी पर विशेष जोर देगा। जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि प्रौद्योगिकी और नवाचार ब्रिक्स सहयोग के अगले चरण को परिभाषित करेंगे और यही ब्रिक्स देशों के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा।

इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि यह संगठन एक नई मुद्रा बनाकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर को चुनौती देना चाहता है। हालाँकि,भारत ने इस पर सफाई देते हुए साफ कर दिया है कि ब्रिक्स की कोई नई मुद्रा लाने की योजना नहीं है और इस तरह की अटकलें पूरी तरह निराधार हैं।

ब्रिक्स का एक अहम कार्यक्रम न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) है,जो विकासशील देशों को कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराता है। इस बैंक का उद्देश्य सदस्य देशों की अवसंरचना परियोजनाओं और विकास कार्यक्रमों को वित्तीय मदद देना है, जिससे वैश्विक वित्तीय संस्थाओं पर उनकी निर्भरता कम हो सके। जयशंकर ने एनडीबी की भूमिका को सराहते हुए कहा कि यह बैंक विकासशील देशों की वास्तविक जरूरतों को समझते हुए उन्हें सहयोग प्रदान करता है।

बैठक में हुई चर्चाओं और जयशंकर के वक्तव्य से यह स्पष्ट होता है कि भारत और अन्य ब्रिक्स देश अब वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज और मजबूत करना चाहते हैं। बढ़ते संरक्षणवाद और आर्थिक असंतुलन के इस दौर में ब्रिक्स देशों का आपसी सहयोग न केवल उनके अपने हितों की रक्षा करेगा,बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भी स्थिरता प्रदान करेगा। आने वाले वर्ष में जब भारत ब्रिक्स का अध्यक्ष बनेगा,तब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत किस तरह से अपनी प्राथमिकताओं को इस मंच पर आगे बढ़ाता है और वैश्विक चुनौतियों का समाधान तलाशने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है।