बुडापेस्ट,27 सितंबर (युआईटीवी)- हंगरी और यूक्रेन के बीच तनाव एक बार फिर गहराता हुआ दिखाई दे रहा है। हाल ही में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दावा किया कि हंगरी का एक रिऑनाइसेंस ड्रोन यूक्रेन के हवाई क्षेत्र में घुस आया है। उनके अनुसार,यूक्रेनी सेना ने इस उल्लंघन की सूचना दी और प्रारंभिक आकलन से संकेत मिले कि यह ड्रोन उड़ानें यूक्रेन के सीमावर्ती औद्योगिक इलाकों को निशाना बना सकती हैं। हालाँकि,हंगरी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे यूक्रेन की राजनीति और हंगरी-विरोधी भावनाओं से प्रेरित बयान करार दिया है।
हंगरी के विदेश और व्यापार मंत्री पीटर सिज्जार्टो ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से सीधे तौर पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि राष्ट्रपति जेलेंस्की का यह दावा आधारहीन है और वे हंगरी-विरोधी भावनाओं के प्रभाव में आकर निरर्थक आरोप लगा रहे हैं। सिज्जार्टो के अनुसार,हंगरी का ड्रोन यूक्रेन की सीमा में घुसने का कोई सवाल ही नहीं उठता और ऐसे आरोप केवल अविश्वास और कड़वाहट को बढ़ाते हैं। यह बयान एक बार फिर दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों को उजागर करता है।
पिछले कुछ वर्षों से बुडापेस्ट और कीव के संबंध लगातार कठिन दौर से गुजर रहे हैं। हंगरी,जो यूरोपीय संघ का सदस्य है,यूक्रेन के कई कदमों से असहज महसूस करता है। विशेष रूप से,यूक्रेन के ट्रांसकारपैथियन क्षेत्र में रहने वाले जातीय हंगरी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर हंगरी ने कई बार अपनी चिंता व्यक्त की है। इस क्षेत्र में रहने वाले हंगेरियन मूल के लोगों का कहना है कि उन्हें भाषा और शिक्षा के अधिकारों पर लगातार दबाव का सामना करना पड़ रहा है। हंगरी सरकार इस मुद्दे को लेकर मुखर रही है और उसने यूक्रेन पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों को पर्याप्त सुरक्षा न देने का आरोप लगाया है।
इसके अलावा,हंगरी रूस से अपनी ऊर्जा आपूर्ति पर भी निर्भर है। रूस से आने वाली ड्रुज्बा तेल पाइपलाइन हंगरी के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। हंगरी ने बार-बार यूक्रेन द्वारा इस पाइपलाइन पर किए गए हमलों की आलोचना की है। उनका कहना है कि ऐसे हमले सीधे तौर पर उनकी ऊर्जा सुरक्षा को खतरे में डालते हैं और यूरोपीय क्षेत्र की स्थिरता के लिए भी हानिकारक हैं। यही कारण है कि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से हंगरी ने अक्सर यूक्रेन की रणनीति पर सवाल उठाए हैं,जिससे कीव और बुडापेस्ट के बीच मतभेद और गहराए हैं।
यूक्रेन के यूरोपीय संघ में शामिल होने की प्रक्रिया भी हंगरी के विरोध के चलते अटकी हुई है। हंगरी का कहना है कि जब तक उनके अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की स्पष्ट गारंटी नहीं दी जाती,वे इस प्रक्रिया का समर्थन नहीं कर सकते। इसके साथ ही,हंगरी को डर है कि यूक्रेन की सदस्यता से ईयू के कृषि सब्सिडी सिस्टम पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हंगरी का तर्क है कि यूक्रेन के विशाल कृषि क्षेत्र को ईयू की सब्सिडी मिलने पर बाकी सदस्य देशों,खासकर छोटे और मध्यम स्तर के किसानों पर गहरा असर पड़ेगा।
राजनीतिक और रणनीतिक मतभेदों के बावजूद हंगरी ने यूक्रेन को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं किया है। फरवरी 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ,तब से हंगरी ने यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान की है। उसने शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएँ खोलीं और लाखों यूक्रेनी नागरिकों को शरण दी। यहाँ तक कि शरणार्थी बच्चों के लिए यूक्रेनी भाषा के स्कूल भी स्थापित किए गए,ताकि उन्हें अपनी शिक्षा जारी रखने में कठिनाई न हो। इन कदमों ने यह संकेत दिया कि हंगरी की असहमति केवल राजनीतिक स्तर पर है,मानवीय दृष्टिकोण से वह यूक्रेन की सहायता करने से पीछे नहीं हट रहा।
हालाँकि,यूक्रेन की ओर से बार-बार लगाए जा रहे आरोप दोनों देशों के रिश्तों को और जटिल बना रहे हैं। जेलेंस्की का ताज़ा बयान,जिसमें हंगरी पर यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है,न केवल कूटनीतिक संबंधों में नई दरार पैदा करता है,बल्कि हंगरी के आक्रोश को भी बढ़ाता है। हंगरी इस पूरे मामले को यूक्रेन की राजनीतिक रणनीति मान रहा है,जिसका मकसद यूरोपीय सहयोगियों को यह दिखाना है कि हंगरी यूक्रेन के साथ नहीं खड़ा है।
हंगरी और यूक्रेन के बीच खिंचाव बढ़ता जा रहा है। जहाँ यूक्रेन को यूरोपीय संघ और नाटो से मजबूत समर्थन की उम्मीद है,वहीं हंगरी लगातार उसकी राह में बाधा डालता नज़र आता है। हंगरी का मानना है कि जब तक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा,ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और यूरोपीय संघ के आर्थिक हितों की रक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती,तब तक यूक्रेन को आँख मूँदकर समर्थन देना संभव नहीं है। इस स्थिति में दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग की संभावना सीमित होती जा रही है।
भविष्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या हंगरी और यूक्रेन इन मतभेदों को किसी साझा मंच पर सुलझा पाएँगे या फिर आरोप-प्रत्यारोप और आपसी अविश्वास की यह खाई और गहरी होती जाएगी। फिलहाल इतना तय है कि हंगरी द्वारा ड्रोन उल्लंघन के आरोपों को नकारने से यह विवाद केवल और बढ़ेगा और यूरोप के भीतर यूक्रेन की स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बना देगा।