नई दिल्ली,29 सितंबर (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अहम बैठक सोमवार से शुरू हो गई है,जिसमें रेपो रेट समेत कई बड़े वित्तीय मुद्दों पर चर्चा हो रही है। वित्तीय जगत की निगाहें इस बैठक पर टिकी हैं,क्योंकि इसके नतीजे सीधे तौर पर बैंकिंग,निवेश और उपभोक्ता खर्च पर असर डालेंगे। मौजूदा समय में रेपो रेट 5.50 प्रतिशत है और एनालिस्ट का मानना है कि इस बार केंद्रीय बैंक इसमें कोई बदलाव नहीं करेगा।
दरअसल, इस साल की शुरुआत से ही आरबीआई लगातार ब्याज दरों में कटौती कर रहा है। फरवरी में 0.25 प्रतिशत,अप्रैल में 0.25 प्रतिशत और जून में 0.50 प्रतिशत की कटौती के बाद कुल मिलाकर अब तक 1 प्रतिशत की कमी की जा चुकी है। इसके बावजूद अगस्त की बैठक में केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दर को 5.50 प्रतिशत पर ही बनाए रखा था। अब जब फिर से बैठक हो रही है,तो बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि रेपो रेट में और कटौती की संभावना कम है।
एनालिस्ट के मुताबिक,इस समय अमेरिकी टैरिफ नीतियों में बदलाव और भारत-अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताओं के पटरी पर लौटने का माहौल सकारात्मक है। इसके अलावा,वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधारों का असर भी माँग पर दिखने लगा है। वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि उम्मीद से बेहतर रही है। दूसरी ओर,मुद्रास्फीति की दर फिलहाल नियंत्रित है,लेकिन आने वाले महीनों में इसमें बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है। इन सब कारणों से केंद्रीय बैंक फिलहाल सावधानी की नीति अपनाकर रेपो रेट को स्थिर रख सकता है।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक ताजा रिपोर्ट भी इसी ओर इशारा करती है। रिपोर्ट के अनुसार,जीएसटी युक्तिकरण के चलते मुद्रास्फीति 2004 के बाद अपने ऐतिहासिक निचले स्तर की ओर बढ़ रही है। ऐसे में ब्याज दरों में कटौती आरबीआई के लिए एक विकल्प तो है,लेकिन इस समय शायद सबसे उपयुक्त कदम यथास्थिति बनाए रखना ही होगा।
एसबीआई के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सौम्य कांति घोष ने कहा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति अभी अपने सबसे निचले स्तर पर नहीं पहुँची है। उनका अनुमान है कि जीएसटी युक्तिकरण के कारण इसमें और गिरावट आ सकती है। घोष ने यह भी बताया कि वित्त वर्ष 2027 में भी मुद्रास्फीति नरम बनी रहेगी। उनके मुताबिक,सितंबर और अक्टूबर में सीपीआई दर 2 प्रतिशत से नीचे चल रही है और अगर जीएसटी में कटौती जारी रहती है,तो अक्टूबर में यह दर 1.1 प्रतिशत तक गिर सकती है,जो 2004 के बाद का सबसे निचला स्तर होगा।
वित्तीय विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि केंद्रीय बैंक जल्दबाजी में रेपो रेट घटाता है,तो इससे घरेलू खपत और कर्ज पर असर तो पड़ेगा,लेकिन भविष्य की महँगाई के जोखिमों को देखते हुए यह कदम नुकसानदेह भी साबित हो सकता है। अभी भारत की स्थिति वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच अपेक्षाकृत स्थिर है। अमेरिका और यूरोप में ब्याज दरों को ऊँचा बनाए रखने की नीति अपनाई जा रही है,जबकि चीन की अर्थव्यवस्था दबाव में है। ऐसे माहौल में भारत के लिए संतुलन साधना बेहद जरूरी है।
इस बार की बैठक का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह वित्त वर्ष 2026 की दूसरी छमाही की दिशा तय करेगी। अगर रेपो रेट 5.50 प्रतिशत पर स्थिर रहता है,तो बैंकों के लिए यह संकेत होगा कि निकट भविष्य में कर्ज की लागत में बड़ा बदलाव नहीं होगा। इससे गृह ऋण,वाहन ऋण और अन्य खुदरा कर्ज की ब्याज दरें भी स्थिर रह सकती हैं।
उद्योग जगत भी इस बैठक के नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। निवेशक चाहते हैं कि ब्याज दरें और कम हों,ताकि उद्योगों के लिए कर्ज लेना आसान हो और निवेश का माहौल बेहतर बने,लेकिन दूसरी ओर,उपभोक्ताओं के लिए बढ़ती माँग और स्थिर मुद्रास्फीति को देखते हुए केंद्रीय बैंक पर यह जिम्मेदारी है कि वह जल्दबाजी में ऐसा कोई फैसला न ले,जिससे भविष्य में महँगाई का दबाव बढ़ जाए।
पिछले कुछ महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। जीएसटी सुधारों ने कर ढांचे को सरल और पारदर्शी बनाया है,जिससे राजस्व संग्रह में भी सुधार हुआ है। इसी का असर माँग और विकास दर पर भी दिख रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति मजबूत है और निवेशकों का भरोसा बना हुआ है। यही कारण है कि आरबीआई इस समय अपनी मौद्रिक नीति में स्थिरता दिखा सकता है।
सोमवार से शुरू हुई इस बैठक से यह उम्मीद की जा रही है कि रेपो रेट फिलहाल 5.50 प्रतिशत पर ही बना रहेगा। हालाँकि,समिति की ओर से आने वाले दिनों में महँगाई,जीएसटी युक्तिकरण और वैश्विक आर्थिक हालात पर नजर बनाए रखने का संकेत जरूर दिया जा सकता है। अगर मुद्रास्फीति वाकई ऐतिहासिक निचले स्तर पर जाती है,तो अगले वर्ष दरों में कटौती की गुंजाइश बन सकती है। फिलहाल,निवेशक और उपभोक्ता दोनों को यथास्थिति की ओर ही देखना होगा, क्योंकि मौद्रिक स्थिरता इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी जरूरत है।