नई दिल्ली,1 अक्टूबर (युआईटीवी)- दिल्ली हाईकोर्ट ने तेलुगु सिनेमा के सुपरस्टार और दिग्गज अभिनेता नागार्जुन अक्किनेनी के पक्ष में एक बड़ा और ऐतिहासिक आदेश पारित किया है। अदालत ने अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करते हुए कई संस्थाओं,वेबसाइटों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को उनके नाम,छवि,समानता और व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं के अनधिकृत उपयोग से रोक दिया है। यह आदेश विशेष रूप से उन गतिविधियों पर भी लागू होगा,जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), डीपफेक और अन्य तकनीकी उपकरणों के जरिए अभिनेता की छवि या पहचान का अनुचित इस्तेमाल किया जा रहा था। इस फैसले को फिल्म इंडस्ट्री और कानूनी विशेषज्ञ,दोनों ही,व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं।
न्यायमूर्ति तेजस करिया की एकल पीठ ने यह आदेश नागार्जुन द्वारा दायर उस मुकदमे पर सुनाया,जिसमें उन्होंने अपनी छवि और व्यक्तित्व का व्यावसायिक लाभ के लिए हो रहे दुरुपयोग को रोकने की माँग की थी। अभिनेता के वकीलों ने अदालत के समक्ष दलील दी कि नागार्जुन दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित कलाकारों में से एक हैं। चार दशकों से अधिक के करियर में उन्होंने 95 से अधिक फीचर फिल्मों में काम किया है और उनकी पहचान न केवल तेलुगु सिनेमा,बल्कि भारतीय फिल्म जगत में एक महत्वपूर्ण हस्ती के रूप में स्थापित है। उनकी लोकप्रियता और सम्मान की वजह से उनके व्यक्तित्व का व्यावसायिक मूल्य भी अत्यधिक है,जिसे कुछ लोग अनुचित तरीके से शोषण कर अपने हित साध रहे हैं।
अदालत में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों और सबूतों में यह पाया गया कि कई वेबसाइट्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर नागार्जुन के नाम और तस्वीरों वाले टी-शर्ट, पोस्टर और अन्य सामान बेचे जा रहे थे। इतना ही नहीं,कुछ संस्थाएँ एआई तकनीक और डीपफेक टूल्स का इस्तेमाल करके अभिनेता की छवि को अश्लील या अनुचित सामग्री में दर्शा रही थीं। न्यायमूर्ति करिया ने अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार का अनधिकृत और भ्रामक उपयोग न केवल अभिनेता की साख और सम्मान को चोट पहुँचाता है,बल्कि उनके आर्थिक हितों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
अदालत ने कहा कि किसी भी सेलिब्रिटी के व्यक्तित्व अधिकारों का संरक्षण केवल व्यावसायिक दृष्टि से ही नहीं,बल्कि उनके सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए भी जरूरी है। किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना अनुचित या आपत्तिजनक तरीके से चित्रित करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह न केवल उस व्यक्ति के आर्थिक मूल्य को प्रभावित करता है,बल्कि उसके “सम्मान के साथ जीने के अधिकार” पर भी गहरी चोट करता है।
अपने आदेश में अदालत ने सभी पहचाने गए यूआरएल और वेबसाइट्स को 72 घंटों के भीतर संबंधित सामग्री हटाने,ब्लॉक करने या अक्षम करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को आदेश दिया गया कि वे उन विक्रेताओं की मूलभूत जानकारी दो सप्ताह के भीतर एक सीलबंद लिफाफे में अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें,जिन्होंने अभिनेता की छवि या नाम का गलत इस्तेमाल किया है। अदालत ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा दूरसंचार विभाग इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएँ और उल्लंघनकारी सामग्री को इंटरनेट से हटवाने की प्रक्रिया तुरंत शुरू करें।
न्यायमूर्ति करिया ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि नागार्जुन जैसी प्रतिष्ठित शख्सियत को भ्रामक या अपमानजनक परिस्थितियों में चित्रित करना उनकी छवि और साख पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इससे न केवल जनता गुमराह हो सकती है,बल्कि यह उनके मौजूदा ब्रांड सहयोग और विज्ञापनों के साथ टकराव की स्थिति भी पैदा कर सकता है। इस तरह की गतिविधियाँ अनुचित प्रतिस्पर्धा और अनुचित व्यापारिक आचरण की श्रेणी में आती हैं,जिन्हें रोकना आवश्यक है।
अदालत के इस फैसले ने व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा पर एक नई बहस भी छेड़ दी है। डिजिटल युग में जहाँ एआई और डीपफेक तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है,वहीं इनका गलत इस्तेमाल किसी भी मशहूर व्यक्ति की साख और करियर को नुकसान पहुँचा सकता है। नागार्जुन के मामले में यह स्पष्ट हुआ कि तकनीकी दुरुपयोग किस तरह कानूनी और नैतिक सीमाओं का उल्लंघन करता है। इस आदेश से अन्य कलाकारों और सार्वजनिक हस्तियों को भी राहत मिलेगी,क्योंकि यह फैसला एक नजीर की तरह काम करेगा।
नागार्जुन अक्किनेनी,जिन्हें दर्शक “किंग” नागार्जुन के नाम से भी जानते हैं,ने अपने करियर में कई सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया है और वे दक्षिण भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली अभिनेताओं में गिने जाते हैं। उनके योगदान को देखते हुए उनके व्यक्तित्व और छवि का एक विशिष्ट मूल्य है। ऐसे में उनके नाम,छवि या पहचान का अनुचित इस्तेमाल न केवल उनकी साख को प्रभावित करता है,बल्कि दर्शकों और प्रशंसकों को भी गुमराह करता है।
इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 23 जनवरी, 2026 को निर्धारित की गई है। तब तक अदालत का यह अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा और उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था पर सख्त कार्रवाई की जा सकेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश भारतीय कानूनी व्यवस्था में व्यक्तित्व अधिकारों और डिजिटल युग में सेलिब्रिटीज की छवि की सुरक्षा के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगा।
इस तरह दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल नागार्जुन अक्किनेनी की व्यक्तिगत जीत है,बल्कि फिल्म जगत,कला और संस्कृति से जुड़े हर उस कलाकार के लिए महत्वपूर्ण है,जो अपनी पहचान और साख की रक्षा करना चाहता है। यह आदेश यह संदेश भी देता है कि कानून के दायरे में रहते हुए किसी भी शख्सियत की छवि और व्यक्तित्व का सम्मान करना हर किसी की जिम्मेदारी है।
