सोनम वांगचुक और उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो (तस्वीर क्रेडिट@PMishra_Journo)

सुप्रीम कोर्ट पहुँचा लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का मामला,पत्नी ने तत्काल रिहाई की अपील की

नई दिल्ली,3 अक्टूबर (युआईटीवी)- लद्दाख के मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता और स्थानीय नेता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत 26 सितंबर को हिरासत में लिया गया था। उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो ने पति की रिहाई की माँग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की है। याचिका में गीतांजलि ने यह तर्क दिया है कि सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी गैरकानूनी है और एक सप्ताह से अधिक समय बीतने के बावजूद गिरफ्तारी के ठोस आधार नहीं दिए गए हैं।

गीतांजलि ने अदालत से अनुरोध किया है कि उनके पति को बिना शर्त रिहा किया जाए। उन्होंने बताया कि हिरासत में लिए जाने के बाद से सोनम वांगचुक की कोई जानकारी नहीं मिल रही और उनके स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की स्थिति अज्ञात है। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक हमेशा से पर्यावरण और स्थानीय समुदाय के हितों के लिए काम करते रहे हैं और किसी के लिए भी खतरा नहीं हैं। गीतांजलि ने अदालत से तत्काल सुनवाई की भी माँग की है,ताकि उनके पति की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और उन्हें जेल से रिहा किया जा सके।

इससे पहले,गीतांजलि ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी एक भावुक पत्र लिखा था,जिसमें उन्होंने सोनम वांगचुक की रिहाई की गुहार लगाई। पत्र में उन्होंने बताया कि उनके पति को पिछले चार साल से लद्दाख और वहाँ के लोगों के हित में काम करने के कारण बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने लिखा कि वह नहीं जानतीं कि उनके पति किस हालात में हैं और उन्हें किस प्रकार का सामना करना पड़ रहा है।

सोनम वांगचुक को 26 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसा के सिलसिले में हिरासत में लिया गया था। यह हिंसा 24 सितंबर को लेह में हुई थी,जिसमें छठी अनुसूची का दर्जा और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की माँग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान चार लोगों की मौत हो गई और लगभग 90 लोग घायल हुए। प्रशासन ने आरोप लगाया कि वांगचुक ने हिंसक प्रदर्शन भड़काने में भूमिका निभाई।

हिरासत में लिए जाने के बाद सोनम वांगचुक को राजस्थान की जोधपुर सेंट्रल जेल में भेजा गया। इसके अलावा प्रशासन ने चार लोगों की मौत के मामले में मजिस्ट्रेट जाँच का आदेश दिया। हालाँकि,स्थानीय लोगों और कुछ सामाजिक संगठनों ने न्यायिक जाँच की माँग भी उठाई थी,ताकि घटना के सभी पहलुओं को निष्पक्ष तरीके से जाँचा जा सके।

सोनम वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के पर्यावरण संरक्षण,शिक्षा और स्थानीय संस्कृति के संवर्धन के लिए काम कर रहे हैं। उनकी लोकप्रियता और लोगों के बीच समर्थन की वजह से उनके खिलाफ उठाए गए कदमों ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी ध्यान खींचा है। वांगचुक की गिरफ्तारी को लेकर स्थानीय समुदाय और नागरिक अधिकार संगठनों ने भी चिंता जताई है। उनका कहना है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक अधिकारों और आवाज उठाने की स्वतंत्रता का सम्मान होना चाहिए और किसी कार्यकर्ता को केवल विरोध की गतिविधियों में भाग लेने के आरोप में लंबी हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में गीतांजलि अंगमो ने कहा कि वांगचुक की हिरासत और उनके खिलाफ आरोप न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है,बल्कि यह स्थानीय समाज और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि वांगचुक को जल्द से जल्द रिहा किया जाए,ताकि उनके परिवार और समुदाय में सुरक्षा और विश्वास बहाल हो सके।

विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और नागरिक स्वतंत्रताओं के बीच संतुलन की संवेदनशीलता को सामने लाता है। इस मामले की सुनवाई से यह स्पष्ट हो सकता है कि सुरक्षा और कानून के नाम पर कितने कदम उठाए जा सकते हैं और कितने मामले में नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

लद्दाख में हुई यह हिंसा और उसके बाद वांगचुक की गिरफ्तारी ने न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा शुरू कर दी है। कई लोगों का मानना है कि किसी भी राजनीतिक या सामाजिक आंदोलन में कार्यकर्ताओं की आवाज़ को दबाना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। वहीं प्रशासन का कहना है कि कानून और सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह कार्रवाई आवश्यक थी।

अब सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई के बाद यह स्पष्ट होगा कि सोनम वांगचुक को कितनी जल्दी रिहा किया जा सकता है और उनके खिलाफ आरोपों की वैधता पर अदालत क्या रुख अपनाती है। लद्दाख के पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए इस मामले की गूंज व्यापक रूप से महसूस की जा रही है।

यह मामला न केवल लद्दाख के लोगों के लिए,बल्कि पूरे देश में नागरिक अधिकारों,लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और कानून के संतुलन पर एक महत्वपूर्ण परीक्षण की तरह देखा जा रहा है। सोनम वांगचुक की रिहाई और इस घटना की न्यायिक जाँच से यह तय होगा कि लोकतंत्र में किसी कार्यकर्ता के अधिकार और आवाज़ को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है।