सुप्रीम कोर्ट

करूर भगदड़ मामला: सुप्रीम कोर्ट ने दी सीबीआई जाँच के आदेश,पूर्व जज अजय रस्तोगी करेंगे निगरानी

नई दिल्ली,14 अक्टूबर (युआईटीवी)- तमिलनाडु के करूर जिले में अभिनेता-राजनेता विजय की राजनीतिक रैली के दौरान मची भगदड़ में 40 से अधिक लोगों की मौत के मामले ने पूरे राज्य को झकझोर दिया था। इस घटना ने न केवल राज्य प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए, बल्कि विजय की राजनीतिक पार्टी तमिलगा वेट्री कजगम (टीवीके) की भूमिका को लेकर भी तीखी बहस छेड़ दी। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए जाँच का जिम्मा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया है। अदालत ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश अजय रस्तोगी को जाँच की निगरानी करने वाली समिति का प्रमुख नियुक्त किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि “ऐसे गंभीर और संवेदनशील मामले में एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच जरूरी है,ताकि पीड़ितों और जनता दोनों को न्याय पर भरोसा कायम रहे।” कोर्ट ने यह भी माना कि केवल तमिलनाडु पुलिस की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) के सहारे जनता का विश्वास बहाल नहीं हो सकता। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि “निष्पक्ष जाँच केवल तभी संभव है,जब जाँच एजेंसी किसी भी राजनीतिक या प्रशासनिक प्रभाव से मुक्त होकर कार्य करे।”

यह मामला उस समय राष्ट्रीय सुर्खियों में आया था,जब अभिनेता-राजनेता विजय की रैली में अचानक भगदड़ मच गई थी। हजारों की भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ में 40 से अधिक लोगों की दर्दनाक मौत हो गई,जबकि कई दर्जन लोग घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक,विजय के मंच पर आने में देरी और सुरक्षा व्यवस्था की कमी ने इस त्रासदी को और बढ़ा दिया।

विजय की पार्टी तमिलगा वेट्री कजगम ने घटना के तुरंत बाद इसे “पूर्व नियोजित साजिश” बताया था और आरोप लगाया था कि कुछ राजनीतिक विरोधियों ने अफवाह फैलाकर भीड़ को भड़काया। टीवीके ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्वतंत्र जाँच की माँग की थी,जिसमें कहा गया था कि “तमिलनाडु पुलिस की एसआईटी से निष्पक्ष जाँच की उम्मीद नहीं की जा सकती,क्योंकि राज्य सरकार स्वयं इस घटना में जवाबदेह है।”

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ के समक्ष हुई। अदालत ने सुनवाई के दौरान मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एन. सेंथिलकुमार की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने बिना पर्याप्त प्रक्रिया के जाँच के आदेश दिए। पीठ ने यह भी कहा कि जब इस घटना से जुड़ी याचिकाएँ पहले से ही मदुरै पीठ के समक्ष लंबित थीं,तब मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना मुख्य पीठ का कोई एकल न्यायाधीश इस पर फैसला नहीं दे सकता था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि मद्रास हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश में तमिलगा वेट्री कजगम और उसके प्रमुख विजय को पक्षकार नहीं बनाया गया था,फिर भी उनके खिलाफ टिप्पणियाँ की गईं। अदालत ने कहा कि “न्याय का सिद्धांत यही कहता है कि किसी भी पक्ष को बिना सुने उसके खिलाफ टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। न्यायालय के आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि एकल न्यायाधीश ने किन सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकाला और किन साक्ष्यों का अवलोकन किया।”

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद टीवीके ने राहत की सांस ली है। पार्टी के सचिव आधव अर्जुना ने मीडिया से बातचीत में कहा कि “यह फैसला न्याय की जीत है। हमें पूरा भरोसा है कि सीबीआई इस मामले की निष्पक्ष जाँच करेगी और सच्चाई सामने आएगी। जिनकी लापरवाही या साजिश के कारण यह भयावह हादसा हुआ,वे अब बच नहीं पाएँगे।”

इससे पहले,करूर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर टीवीके के कई नेताओं पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। इनमें करूर (उत्तर) जिला सचिव माधियाझगन, जनरल सेक्रेटरी बसी आनंद और ज्वाइंट जनरल सेक्रेटरी सीटीआर निर्मल कुमार शामिल हैं। उन पर हत्या,हत्या के प्रयास और अन्य लोगों की जान को खतरे में डालने के आरोप लगाए गए हैं। पुलिस का कहना है कि आयोजन के दौरान सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था और रैली की अनुमति से अधिक भीड़ एकत्रित हो गई थी।

पुलिस के अनुसार,पार्टी को केवल 10,000 लोगों की भीड़ जुटाने की अनुमति दी गई थी,लेकिन रैली में लगभग 25,000 लोग पहुँच गए। अधिकारियों का दावा है कि आयोजकों ने न तो पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए,न ही पानी और चिकित्सा सुविधा जैसी बुनियादी व्यवस्थाएँ कीं। पुलिस ने बताया कि जब विजय की रैली बस तय स्थान पर पहुँची,तब भीड़ उनके दर्शन के लिए आगे बढ़ी और भगदड़ मच गई। पुलिस ने आयोजकों को पहले ही चेतावनी दी थी कि बस को मंच से कम से कम 50 मीटर पहले रोका जाए,लेकिन इस निर्देश का पालन नहीं किया गया।

रिपोर्ट के मुताबिक,विजय की बस पहुँचने के बाद लगभग 10 मिनट तक वे बाहर नहीं आए,जिससे भीड़ में बेचैनी बढ़ी और कुछ ही मिनटों में अफरातफरी का माहौल बन गया। स्थानीय प्रशासन ने बताया कि भगदड़ के बाद बचाव कार्य में कई घंटे लग गए और अस्पतालों में भारी संख्या में घायलों को भर्ती कराया गया।

वहीं दूसरी ओर,विपक्षी पार्टियों ने राज्य सरकार और तमिलनाडु पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि यदि सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होती और भीड़ नियंत्रण के उपाय पहले से किए गए होते,तो यह त्रासदी टल सकती थी।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब सीबीआई जाँच की दिशा में तेजी आने की उम्मीद है। पूर्व न्यायाधीश अजय रस्तोगी की निगरानी में गठित समिति न केवल जाँच की पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी,बल्कि यह भी देखेगी कि पीड़ित परिवारों को न्याय और मुआवजा दोनों समय पर मिले।

करूर भगदड़ हादसा तमिलनाडु की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर एक गहरा सवाल खड़ा कर गया है। अब देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी के हाथ में यह मामला आने के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि घटना के हर पहलू — चाहे वह सुरक्षा लापरवाही हो या राजनीतिक साजिश की सच्चाई सामने आ सकेगी। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यह साफ संदेश गया है कि लोकतंत्र में न्याय की सर्वोच्चता सर्वोपरि है,चाहे मामला कितना भी संवेदनशील या राजनीतिक क्यों न हो।