दिल्ली,24 अक्टूबर (युआईटीवी)- अमेरिका और रूस के बीच एक बार फिर तनाव की नई लकीर खिंच गई है। बीते दिन अमेरिका ने रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया,जिसके बाद दोनों देशों के बीच प्रस्तावित ट्रंप–पुतिन बैठक भी रद्द कर दी गई। अमेरिकी प्रतिबंधों के इस ताजा कदम ने अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा बाजार में हलचल मचा दी है,वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस कदम को “मास्को पर दबाव बनाने की कोशिश” बताते हुए कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने साफ कहा है कि अमेरिका की ऐसी कार्रवाई से रूस की अर्थव्यवस्था पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा और न ही यह मॉस्को को अपने निर्णयों से पीछे हटने पर मजबूर कर पाएगी।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने गुरुवार को मॉस्को में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा,“कोई भी स्वाभिमानी देश किसी के दबाव में आकर कुछ नहीं करता। ये प्रतिबंध हमारे लिए गंभीर हैं,यह सच है। इनके कुछ परिणाम जरूर होंगे,लेकिन ये हमारी आर्थिक स्थिति को कमजोर नहीं कर पाएँगे। रूस की अर्थव्यवस्था मजबूत है और हमारे पास हर चुनौती का समाधान मौजूद है।” उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका की यह कार्रवाई किसी भी तरह से रूस–अमेरिका संबंधों को बेहतर नहीं बनाती। पुतिन के मुताबिक,दोनों देशों के बीच हाल ही में संवाद की प्रक्रिया शुरू हुई थी,लेकिन वाशिंगटन के इस कदम ने उसे झटका दिया है।
अमेरिका ने बुधवार को रूस की दो प्रमुख तेल उत्पादक कंपनियों—रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए हैं। यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पदभार संभालने के बाद रूस पर लगाया गया पहला बड़ा प्रतिबंध है। अमेरिकी प्रशासन ने इन प्रतिबंधों का औचित्य यूक्रेन युद्ध को रोकने की दिशा में “दबाव की रणनीति” बताते हुए पेश किया है। व्हाइट हाउस ने कहा कि रूस को उसके “आक्रामक व्यवहार” की कीमत चुकानी होगी। अमेरिका चाहता है कि मॉस्को यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई रोक दे और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन करे।
हालाँकि,पुतिन ने अमेरिकी दावों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह कदम रूस की स्वतंत्र विदेश नीति और ऊर्जा क्षेत्र में उसकी बढ़ती ताकत को सीमित करने की कोशिश है। उन्होंने कहा, “यह कोई संयोग नहीं कि अमेरिका ने हमारी सबसे बड़ी तेल कंपनियों को निशाना बनाया है। वे रूस की ऊर्जा बाजार में बढ़ती हिस्सेदारी से चिंतित हैं। यह प्रतिबंध राजनीतिक प्रेरणा से प्रेरित हैं,आर्थिक तर्कों से नहीं।”
पुतिन ने यह भी बताया कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अपनी पिछली बातचीत में यह चेतावनी दी थी कि रूस पर किसी भी तरह का आर्थिक प्रतिबंध वैश्विक तेल कीमतों को अस्थिर कर सकता है। उन्होंने कहा, “मैंने स्पष्ट रूप से कहा था कि तेल उत्पादन या वितरण में कोई बाधा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों पर गहरा प्रभाव डाल सकती है,लेकिन लगता है कि अमेरिका अपने तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालने को तैयार है।”
इस बीच,रूस के उपप्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने भी बयान जारी करते हुए कहा कि अमेरिकी प्रतिबंधों का असर सीमित रहेगा क्योंकि रूस ने पहले ही अपनी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को विविधतापूर्ण बना लिया है। नोवाक के अनुसार, “रूस अब एशिया,मध्य पूर्व और अफ्रीका जैसे नए बाजारों की ओर रुख कर चुका है। इसलिए पश्चिमी देशों की किसी भी एकतरफा कार्रवाई से हमें विशेष नुकसान नहीं होगा।”
रूस की ओर से आई इस प्रतिक्रिया के बीच,अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी शुक्रवार को बयान जारी कर यह साफ कर दिया कि फिलहाल उनकी पुतिन से कोई बैठक नहीं होगी। उन्होंने कहा, “हम रूस के साथ बातचीत जारी रखना चाहते हैं,लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह उचित नहीं होगा। पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पालन करे।”
ट्रंप के इस बयान के बाद क्रेमलिन ने अपनी निराशा जताई है। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा, “बातचीत हमेशा टकराव से बेहतर होती है। हमने हमेशा संवाद जारी रखने का समर्थन किया है और आगे भी करेंगे,लेकिन यह बैठक तभी सार्थक होती जब दोनों देश कुछ ठोस परिणाम हासिल करने के लिए तैयार होते। ऐसे में,बिना तैयारी या बिना उद्देश्य के बैठक करना व्यर्थ होता।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस बैठक को रद्द करने का निर्णय अमेरिकी पक्ष की ओर से लिया गया था। “यह मूल रूप से वाशिंगटन की पहल थी,” पुतिन ने कहा। “उन्होंने खुद शिखर वार्ता का प्रस्ताव रखा था,लेकिन अब उन्होंने इसे स्थगित करने का फैसला किया है। यह उनका अधिकार है,लेकिन इससे यह संकेत जाता है कि अमेरिका वर्तमान में रचनात्मक बातचीत के लिए तैयार नहीं है।”
रूसी विश्लेषकों के अनुसार,अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव केवल रूस तक सीमित नहीं रहेगा। चूँकि,रोसनेफ्ट और लुकोइल दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में प्रमुख खिलाड़ी हैं,इसलिए इन पर लगाए गए प्रतिबंधों से वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। इससे तेल के दामों में वृद्धि की आशंका है,जिसका असर अमेरिका और यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ेगा।
दूसरी ओर,अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि इन प्रतिबंधों से रूस को यूक्रेन युद्ध में अपनी नीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा, “हमारा उद्देश्य रूस को कमजोर करना नहीं,बल्कि उसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने के लिए बाध्य करना है।”
इस पूरे घटनाक्रम के बीच,यह स्पष्ट है कि अमेरिका और रूस के बीच संबंध एक बार फिर नाजुक दौर में पहुँच गए हैं। पुतिन के कड़े रुख और ट्रंप के निर्णय से संकेत मिलता है कि निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की संभावना कम है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब इस बात पर नजर रखे हुए है कि इन प्रतिबंधों के बाद रूस क्या कदम उठाता है,लेकिन एक बात तय है कि तेल और कूटनीति की इस जंग में,आने वाले हफ्तों में वैश्विक राजनीति और ऊर्जा बाजार दोनों में बड़ी हलचल देखने को मिल सकती है।

