नई दिल्ली,24 अक्टूबर (युआईटीवी)- भारतीय विज्ञापन जगत के महानायक और पद्मश्री से सम्मानित क्रिएटिव जीनियस पीयूष पांडे के निधन की खबर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है। शुक्रवार को उनके निधन के बाद राजनीतिक गलियारे से लेकर कॉरपोरेट जगत तक शोक की लहर दौड़ गई। उन्हें भारतीय विज्ञापन उद्योग का ‘क्रिएटिव आत्मा’ कहा जाता था,जिन्होंने अपने अनूठे विचारों,सरल भाषा और देशी हास्य के जरिए ब्रांड्स को भावनाओं से जोड़ने की कला को नई ऊँचाई दी।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए लिखा,“पद्मश्री विजेता पीयूष पांडे के निधन पर अपनी उदासी व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। विज्ञापन की दुनिया में वह एक महान हस्ती थे,जिनकी क्रिएटिविटी ने कहानी कहने के तरीके को फिर से परिभाषित किया और हमें यादगार और हमेशा याद रहने वाली कहानियाँ दीं।” उन्होंने आगे कहा, “वे सिर्फ एक उत्कृष्ट पेशेवर नहीं,बल्कि मेरे सच्चे दोस्त भी थे। उनकी सच्चाई,गर्मजोशी और हाजिरजवाबी ने हमेशा उनके आसपास के माहौल को जीवंत बना दिया। मैं उनके साथ हुई दिलचस्प बातचीतों को हमेशा याद रखूँगा। उन्होंने अपने पीछे एक ऐसा खालीपन छोड़ दिया है,जिसे भरना असंभव है। उनके परिवार,दोस्तों और चाहने वालों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएँ। ओम शांति।”
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि पीयूष पांडे का निधन भारतीय विज्ञापन जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने लिखा, “वह भारतीय विज्ञापन के एक दिग्गज और लेजेंड थे। उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी के मुहावरों,देशी हास्य और सच्ची गर्मजोशी के साथ संचार की भाषा को ही बदल दिया। उनके बनाए विज्ञापनों ने न सिर्फ ब्रांड्स को लोकप्रिय बनाया,बल्कि लोगों के दिलों में जगह बनाई। मुझे कई मौकों पर उनसे बातचीत करने का अवसर मिला और हर बार उनकी सरलता और गहराई ने प्रभावित किया। उनके परिवार,दोस्तों और पूरी क्रिएटिव बिरादरी के प्रति मेरी दिली संवेदनाएँ। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।”
वहीं,उद्योग जगत के दिग्गज और महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने पीयूष पांडे को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, “वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय ऐड इंडस्ट्री पर अमिट छाप छोड़ी। उनके बनाए कैंपेन और ब्रांड्स ने विज्ञापन की दुनिया में नई दिशा दी,लेकिन मुझे जो सबसे ज्यादा याद रहेगा,वह उनकी दिल खोलकर हँसने की आदत और जिंदगी को लेकर उनका जबरदस्त जोश है। वे हर क्षण को अर्थपूर्ण बना देते थे। अलविदा मेरे दोस्त,तुमने हमारी जिंदगी को बेहतर बनाया।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने भी उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि पीयूष पांडे भारतीय विज्ञापन के सबसे बेहतरीन कहानीकारों में से एक थे। उन्होंने लिखा, “उन्होंने हमें सिखाया कि इमोशन ही क्रिएटिविटी की सबसे सच्ची भाषा है। उनके शब्दों ने ब्रांड्स को इंसान जैसा बनाया और आइडियाज को अमर कर दिया। वे उन दुर्लभ रचनात्मक व्यक्तित्वों में से एक थे,जिन्होंने हमें महसूस कराया,सोचने पर मजबूर किया और मुस्कुराया। एक ऐसे लेजेंड को अलविदा,जिसने न केवल कहानियाँ लिखीं,बल्कि उन्हें जिया भी।”
पीयूष पांडे भारतीय विज्ञापन उद्योग के ऐसे नाम थे,जिन्होंने ‘फील गुड’ कंटेंट की परिभाषा बदल दी। उनके बनाए विज्ञापनों में भारतीयता की गंध होती थी,चाहे वह ‘फेविकोल का जोड़े रहे’ का आइकॉनिक कैंपेन हो या ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ जैसी राष्ट्रभावना से जुड़ी रचना। उन्होंने भारतीय संस्कृति,भाषा और भावनाओं को विज्ञापन की दुनिया में एक खास स्थान दिलाया।
उनकी रचनात्मक यात्रा ओगिल्वी इंडिया से शुरू हुई,जहाँ उन्होंने दशकों तक बतौर क्रिएटिव डायरेक्टर काम किया और बाद में एजेंसी के कार्यकारी चेयरमैन बने। उनके नेतृत्व में ओगिल्वी ने देश के कई ऐतिहासिक विज्ञापन अभियानों को जन्म दिया,जिनमें आम आदमी की सोच और संवेदनाओं को केंद्र में रखा गया। वह ऐसे रचनाकार थे,जिन्होंने यह साबित किया कि विज्ञापन सिर्फ उत्पाद बेचने का माध्यम नहीं,बल्कि समाज से संवाद करने की एक कला है।
पीयूष पांडे को उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। उन्हें “एशिया का सबसे प्रभावशाली विज्ञापन व्यक्तित्व” भी कहा गया। उनके काम ने न केवल व्यावसायिक दृष्टि से भारतीय विज्ञापन उद्योग को वैश्विक पहचान दिलाई,बल्कि एक पूरी पीढ़ी के क्रिएटिव प्रोफेशनल्स को सोचने और अभिव्यक्ति का नया दृष्टिकोण दिया।
उनके निधन की खबर से विज्ञापन जगत में गहरा शोक छा गया है। उनके साथ काम करने वाले सहयोगियों का कहना है कि पीयूष पांडे की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सादगी थी। वे अक्सर कहते थे, “विज्ञापन का मतलब है – इंसानों से इंसानियत की भाषा में बात करना।”
आज,जब भारतीय विज्ञापन वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना चुका है,तो उसके पीछे पीयूष पांडे जैसे रचनात्मक दिमागों की बड़ी भूमिका रही है। उनका जाना न सिर्फ इंडस्ट्री के लिए,बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए नुकसान है,जो रचनात्मकता,हँसी और ईमानदार कहानी कहने की ताकत में विश्वास रखता है।
पीयूष पांडे ने भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया हो,लेकिन उनके बनाए शब्द,दृश्य और भावनाएँ आने वाले समय में भी जीवित रहेंगी। जैसे उनके ही एक पुराने विज्ञापन की पंक्ति थी – “कुछ बातें दिल में बस जाती हैं,हमेशा के लिए।” निस्संदेह,पीयूष पांडे उन्हीं में से एक हैं,एक ऐसा नाम,जो भारतीय रचनात्मकता के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा।

