कुनार नदी (तस्वीर क्रेडिट@rio10314)

अफगानिस्तान ने पाकिस्तान का पानी रोकने की ठानी: कुनार नदी पर बाँध बनाने की तैयारी,भारत के बाद अब काबुल ने दिया बड़ा झटका

काबुल,25 अक्टूबर (युआईटीवी)- भारत द्वारा पाकिस्तान पर कड़ा रुख अपनाते हुए सिंधु जल संधि को स्थगित करने के कुछ ही महीनों बाद अब अफगानिस्तान ने भी इस्लामाबाद के खिलाफ जल कूटनीति का मोर्चा खोल दिया है। तालिबान सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह जल्द ही पाकिस्तान में बहने वाली कुनार नदी पर बाँध बनाने जा रही है। यह कदम पाकिस्तान के लिए भू-राजनीतिक और जल-संसाधन दोनों मोर्चों पर बड़ा झटका साबित हो सकता है।

अफगानिस्तान के उप सूचना मंत्री मुहाजेर फराही ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर घोषणा की कि देश के सर्वोच्च नेता,अमीर अल-मुमिनीन ने निर्देश दिया है कि “कुनार नदी पर बाँध निर्माण का कार्य जल्द से जल्द शुरू किया जाए,घरेलू कंपनियों के साथ अनुबंध किया जाए और किसी विदेशी कंपनी का इंतजार न किया जाए।” फराही ने यह भी कहा कि जल प्रबंधन को लेकर अफगान जनता का यह अधिकार है कि वे अपने संसाधनों का उपयोग अपनी शर्तों पर करें।

यह बयान ऐसे समय पर आया है,जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंध पहले से ही तनावपूर्ण बने हुए हैं। सीमा पार हमलों,आतंकी ठिकानों और ड्रोन हमलों को लेकर दोनों देशों के बीच पिछले कुछ महीनों में तीखी बयानबाजी देखी गई है। अब जब तालिबान सरकार ने पानी को लेकर यह कदम उठाया है,तो यह पाकिस्तान की चिंता को और बढ़ा देगा,क्योंकि वह पहले से ही भारत के सिंधु जल संधि को स्थगित करने के फैसले से परेशान है।

दरअसल,चित्राल नदी,जिसे अफगानिस्तान में कुनार नदी कहा जाता है,पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण जल स्रोत है। यह नदी पाकिस्तान में गिलगित-बाल्टिस्तान और चित्राल की सीमा पर स्थित चियांतार ग्लेशियर से निकलती है और लगभग 480 किलोमीटर लंबी यात्रा के बाद अफगानिस्तान में प्रवेश करती है। अरंडू क्षेत्र से यह अफगानिस्तान में प्रवेश करती है और वहाँ से बहते हुए नंगहार प्रांत में काबुल नदी में मिल जाती है। बाद में यही नदी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में बहती हुई सिंधु नदी में मिलती है।

इस नदी प्रणाली का अधिकांश भाग हिंदू कुश पर्वतों के ग्लेशियरों और बर्फ पिघलने से बना है,जो पूरे साल पाकिस्तान को पर्याप्त जल आपूर्ति सुनिश्चित करता है। अगर अफगानिस्तान इस नदी पर बाँध बनाता है,तो पाकिस्तान के कई उत्तरी और पश्चिमी इलाकों में जल प्रवाह में भारी कमी आ सकती है,जिससे सिंचाई,बिजली उत्पादन और पेयजल आपूर्ति पर असर पड़ना तय है।

तालिबान शासन का यह कदम केवल तकनीकी या विकास से जुड़ा नहीं,बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक रूप से भी अहम है। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से,अफगान नेतृत्व बार-बार यह दोहराता आया है कि देश को अपने प्राकृतिक संसाधनों,विशेष रूप से जल संसाधनों,पर पूर्ण नियंत्रण का अधिकार है। अफगानिस्तान लंबे समय से जल अधोसंरचना के विकास में पिछड़ा हुआ है,लेकिन अब तालिबान इसे अपनी संप्रभुता के प्रतीक के रूप में पेश कर रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान का यह निर्णय पाकिस्तान के प्रति बढ़ती नाराजगी को दर्शाता है। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा अफगान सीमा के पास किए गए ड्रोन हमलों ने दोनों देशों के रिश्तों में नई खाई पैदा कर दी है। ये हमले अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा के पहले दिन हुए थे,जिससे यह साफ संकेत गया कि इस्लामाबाद काबुल के भारत के साथ बढ़ते रिश्तों से असहज है।

भारत की बात करें तो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले के बाद नई दिल्ली ने पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए सिंधु जल संधि को स्थगित करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। यह संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी,जिसके तहत भारत ने सिंधु नदी प्रणाली की तीन नदियों — झेलम,चिनाब और सिंधु का अधिकांश जल उपयोग का अधिकार पाकिस्तान को सौंपा था। अब जब भारत ने इस समझौते को रोक दिया है,तो पाकिस्तान को अपने जल भविष्य को लेकर नई चिंताओं का सामना करना पड़ रहा है।

अब अफगानिस्तान का यह नया कदम पाकिस्तान की जल संकट को और गहरा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि काबुल सरकार ने कुनार नदी पर बड़े पैमाने पर बाँध बनाए,तो पाकिस्तान के कई इलाकों में जल प्रवाह घटने से कृषि पर गंभीर असर पड़ेगा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में है और जल संकट उसके लिए राजनीतिक अस्थिरता का नया कारण बन सकता है।

इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (आईडब्लूएमआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार,अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पार बहने वाली नौ नदियों पर जल प्रबंधन के लिए कोई औपचारिक समझौता या सहयोगी तंत्र मौजूद नहीं है। यही कारण है कि जल को लेकर दोनों देशों के बीच टकराव की संभावनाएँ आने वाले समय में और बढ़ सकती हैं।

अतीत में पाकिस्तान ने कई बार अफगानिस्तान के जल परियोजनाओं को लेकर आपत्ति जताई थी। इस्लामाबाद का कहना रहा है कि अफगानिस्तान के बाँध परियोजनाओं से उसके कई इलाकों में पानी की कमी होगी। वहीं,काबुल का तर्क है कि दशकों से पाकिस्तान ने अफगान जल संसाधनों का एकतरफा लाभ उठाया है और अब समय आ गया है कि अफगानिस्तान अपने हितों के अनुसार निर्णय ले।

अफगान सरकार के मंत्री मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर ने हाल ही में कहा, “अफगानों को अपने पानी का प्रबंधन करने और उसका उपयोग करने का अधिकार है। हम किसी भी देश की अनुमति का इंतजार नहीं करेंगे।” उनका यह बयान इस बात का संकेत है कि तालिबान सरकार जल संसाधनों को लेकर किसी बाहरी दबाव में नहीं आने वाली।

साफ है कि भारत के बाद अब अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान को पानी के मुद्दे पर कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह कदम दक्षिण एशिया में जल कूटनीति के समीकरणों को बदल सकता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान इस दोहरी चुनौती — भारत की सिंधु नीति और अफगानिस्तान के कुनार बाँध प्रोजेक्ट से कैसे निपटता है। पर इतना तय है कि इस्लामाबाद के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होंगे।