वाशिंगटन,30 अक्टूबर (युआईटीवी)- दक्षिण कोरियाई बंदरगाह शहर बुसान में गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच होने वाली मुलाकात से ठीक पहले वैश्विक राजनीति में एक बड़ा भूचाल आ गया। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रूथ सोशल’ पर एक ऐसा बयान जारी किया,जिसने न केवल कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी,बल्कि परमाणु हथियारों की वैश्विक होड़ को लेकर गंभीर चिंताएँ भी पैदा कर दीं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने पोस्ट में दावा किया कि उन्होंने “तुरंत प्रभाव से” अमेरिका में परमाणु हथियारों की टेस्टिंग फिर से शुरू करने का आदेश दे दिया है।
ट्रंप ने अपने पोस्ट में लिखा, “संयुक्त राज्य अमेरिका के पास किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं। यह सब मेरे पहले कार्यकाल के दौरान ही संभव हो पाया,जिसमें मौजूदा हथियारों का पूर्ण नवीनीकरण और आधुनिकीकरण शामिल है। इसकी प्रचंड विनाशकारी शक्ति के कारण,मुझे ऐसा करना बहुत बुरा लगता था,लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।” इस बयान के साथ ही उन्होंने एक नई अंतर्राष्ट्रीय बहस को जन्म दे दिया है। क्या ट्रंप का यह कदम चीन और रूस को चेतावनी देने के लिए उठाया गया है या फिर यह उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा है?
ट्रंप ने आगे लिखा, “रूस दूसरे स्थान पर है और चीन काफी दूर तीसरे स्थान पर है,लेकिन अगले पाँच सालों में यह बराबरी पर आ जाएगा। अन्य देशों के परीक्षण कार्यक्रमों के कारण,मैंने युद्ध विभाग को निर्देश दिया है कि वह हमारे परमाणु हथियारों का समान आधार पर परीक्षण शुरू करे। यह प्रक्रिया तुरंत शुरू होगी। इस मामले पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद!”
ट्रंप के इस बयान से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हड़कंप मच गया है। यह बयान ऐसे समय में आया है,जब वे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करने जा रहे हैं। एक ऐसी बैठक,जिसे विश्व राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दोनों देशों के बीच व्यापार,रक्षा,साइबर सुरक्षा और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को लेकर पहले से ही तनाव की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में ट्रंप का यह अचानक किया गया परमाणु परीक्षण का ऐलान किसी नए रणनीतिक संदेश की ओर संकेत करता दिख रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान केवल सैन्य शक्ति प्रदर्शन नहीं,बल्कि एक कूटनीतिक चाल भी हो सकता है। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिका किसी भी सूरत में अपनी परमाणु बढ़त को खोने नहीं देगा। यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान परमाणु शस्त्रागार के आधुनिकीकरण की दिशा में बड़े पैमाने पर निवेश किया था। उन्होंने रूस के साथ ‘न्यू स्टार्ट’ संधि पर दोबारा बातचीत से भी इनकार किया था और चीन पर लगातार आरोप लगाया था कि वह गुप्त रूप से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहा है।
बुसान में पहुँचने के बाद जब पत्रकारों ने ट्रंप से इस विवादास्पद पोस्ट के बारे में सवाल पूछा,तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “हमारी मुलाकात बहुत सफल रहने वाली है। शी जिनपिंग एक महान देश के महान नेता हैं। हम एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं और हमारे बीच हमेशा से बहुत अच्छे संबंध रहे हैं।” ट्रंप के इस बयान से साफ है कि वे मुलाकात से पहले माहौल को सकारात्मक दिखाने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन उनकी सोशल मीडिया पोस्ट ने इसका बिल्कुल उल्टा प्रभाव डाला है।
चीन की ओर से इस बयान पर फिलहाल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन वहाँ के सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने इसे “उकसावे भरा” और “अनावश्यक तनाव बढ़ाने वाला” कदम बताया है। चीनी विश्लेषकों का कहना है कि अगर अमेरिका वास्तव में परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करता है,तो इससे न केवल चीन,बल्कि रूस और उत्तर कोरिया जैसे देशों की भी प्रतिक्रिया सामने आएगी। ऐसे में एशिया में हथियारों की नई दौड़ शुरू होना तय है।
संयुक्त राष्ट्र के निरस्त्रीकरण विशेषज्ञों ने भी ट्रंप के इस कदम को “गंभीर चिंता का विषय” बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले तीन दशकों से परमाणु परीक्षणों पर एक तरह का अनौपचारिक प्रतिबंध लागू है,जिसे तोड़ने से वैश्विक सुरक्षा ढाँचे को गहरा झटका लगेगा। अमेरिका ने आखिरी बार 1992 में भूमिगत परमाणु परीक्षण किया था,जिसके बाद उसने परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) का पालन करने का वादा किया था,भले ही उसने इसे औपचारिक रूप से अनुमोदित नहीं किया।
दूसरी ओर,रूस और चीन ने भी पिछले कुछ वर्षों में अपने परमाणु कार्यक्रमों को तेजी से आगे बढ़ाया है। अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार,चीन के पास 500 से अधिक परमाणु वारहेड्स हैं और वह 2030 तक इस संख्या को दोगुना कर सकता है। ट्रंप के इस बयान को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है कि वे चीन की बढ़ती ताकत को लेकर अमेरिका की आंतरिक राजनीति में कड़ा संदेश देना चाहते हैं।
हालाँकि,व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने अभी तक इस आदेश की औपचारिक पुष्टि नहीं की है,लेकिन यदि यह निर्णय सच साबित होता है तो यह अमेरिका की परमाणु नीति में एक ऐतिहासिक बदलाव माना जाएगा। यह केवल चीन और रूस ही नहीं,बल्कि नाटो देशों को भी चिंता में डाल देगा,जो पहले से ही यूरोप में सुरक्षा असंतुलन से जूझ रहे हैं।
ट्रंप के इस पोस्ट ने दुनिया भर में यह संदेश दिया है कि वैश्विक शक्तियों के बीच परमाणु संतुलन की लड़ाई अब नए चरण में प्रवेश कर रही है। शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात से क्या परिणाम निकलेंगे,यह तो आने वाला समय बताएगा,लेकिन इतना तय है कि बुसान में शुरू हुई यह राजनीतिक हलचल आने वाले महीनों में विश्व कूटनीति के एजेंडे पर हावी रहेगी।

