दिल्ली में क्लाउड सीडिंग स्थगित (तस्वीर क्रेडिट@sanjoychakra)

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग अभियान टला: नमी की कमी बनी बड़ी चुनौती,आईआईटी कानपुर ने दी वैज्ञानिक व्याख्या

कानपुर,30 अक्टूबर (युआईटीवी)- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए चलाए जा रहे क्लाउड सीडिंग अभियान को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। आईआईटी कानपुर द्वारा बुधवार को प्रस्तावित यह गतिविधि मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण रद्द कर दी गई। संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि क्लाउड सीडिंग तकनीक तभी कारगर होती है,जब वातावरण में पर्याप्त नमी मौजूद हो,लेकिन इस बार बादलों में नमी की मात्रा अत्यंत कम पाई गई। इस वजह से तकनीक को सफलतापूर्वक लागू नहीं किया जा सका।

आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के अनुसार,क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य कृत्रिम रूप से बारिश करवाकर वायुमंडल में मौजूद प्रदूषक तत्वों को नीचे गिराना होता है,जिससे हवा की गुणवत्ता सुधरती है,लेकिन यह प्रक्रिया तभी संभव है,जब आकाश में मौजूद बादलों में पर्याप्त मात्रा में नमी हो,ताकि रासायनिक कण उनके साथ मिलकर बारिश की बूंदें बना सकें। बुधवार को दिल्ली-एनसीआर में नमी का स्तर केवल 15 से 20 प्रतिशत के बीच दर्ज किया गया,जो कि क्लाउड सीडिंग के लिए आवश्यक न्यूनतम सीमा से काफी कम था।

आईआईटी कानपुर की टीम ने बताया कि इससे पहले 28 अक्टूबर को एक परीक्षण किया गया था,जो आंशिक रूप से सफल रहा। उस समय भी नमी का स्तर बहुत कम था,जिसके कारण बारिश तो नहीं हुई,लेकिन इस प्रयोग के दौरान एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य सामने आया। टीम द्वारा दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में लगाए गए मॉनिटरिंग सेंटरों ने पाया कि क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के बाद हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों यानी पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा में 6 से 10 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई। यह परिणाम इस बात का संकेत है कि भले ही बारिश न हुई हो,लेकिन कम नमी वाली स्थिति में भी इस तकनीक का कुछ सकारात्मक प्रभाव वायु गुणवत्ता पर पड़ सकता है।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह अनुभव भविष्य के प्रयोगों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि किस स्तर की नमी,तापमान और हवा की गति के साथ यह तकनीक सबसे अधिक प्रभावी परिणाम दे सकती है। आईआईटी कानपुर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य केवल कृत्रिम बारिश कराना नहीं है,बल्कि यह जानना भी है कि मौसम की विभिन्न स्थितियों में क्लाउड सीडिंग के क्या प्रभाव होते हैं। ऐसे अध्ययन भविष्य में इस तकनीक को और परिष्कृत एवं विश्वसनीय बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेंगे।

दिल्ली सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते प्रदूषण स्तर को देखते हुए आईआईटी कानपुर को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वह क्लाउड सीडिंग के जरिए राजधानी की हवा को साफ करने की संभावना तलाशे। वैज्ञानिकों के अनुसार,क्लाउड सीडिंग में सिल्वर आयोडाइड,सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस जैसे रसायनों का प्रयोग किया जाता है,जिन्हें विशेष विमानों के जरिए बादलों में छोड़ा जाता है। यह प्रक्रिया बादलों के भीतर संघनन की प्रक्रिया को तेज करती है और बारिश को प्रेरित करती है।

हालाँकि,विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक प्राकृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है और इसे किसी निश्चित समय पर लागू करना हमेशा संभव नहीं होता। दिल्ली-एनसीआर के मौसम में फिलहाल शुष्कता अधिक है,जिससे बादलों में पर्याप्त नमी नहीं बन पा रही। आईआईटी कानपुर के अनुसार,जैसे ही अनुकूल परिस्थितियाँ बनेंगी,टीम तुरंत अगला प्रयास शुरू करेगी। उन्होंने बताया कि मौसम विभाग के साथ लगातार समन्वय बनाया जा रहा है,ताकि सही समय पर यह प्रयोग दोबारा किया जा सके।

वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया कि क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीकें केवल अस्थायी राहत दे सकती हैं,लेकिन लंबे समय में प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्थायी उपायों की जरूरत है। इसमें वाहनों के उत्सर्जन पर नियंत्रण,औद्योगिक प्रदूषण की निगरानी,निर्माण कार्यों में धूल कम करने के उपाय और हरित क्षेत्रों में वृद्धि जैसी नीतियाँ शामिल होनी चाहिए।

फिर भी,विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल एक महत्वपूर्ण कदम है,क्योंकि यह तकनीक भविष्य में आपातकालीन परिस्थितियों में प्रदूषण कम करने का कारगर विकल्प बन सकती है। आईआईटी कानपुर ने आश्वासन दिया है कि संस्थान इस परियोजना को पूरी वैज्ञानिक ईमानदारी और अनुशासन के साथ आगे बढ़ा रहा है। उनकी प्राथमिकता दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाना है,ताकि नागरिकों को सांस लेने के लिए साफ हवा मिल सके।

फिलहाल आईआईटी कानपुर की टीम मौसम पर लगातार नजर रख रही है। जैसे ही वातावरण में नमी का स्तर बढ़ेगा और बादल घने होंगे,क्लाउड सीडिंग का अगला चरण शुरू किया जाएगा। यह अभियान न केवल दिल्ली के लिए,बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल साबित हो सकता है,जहाँ वैज्ञानिक तकनीक और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

इस तरह,भले ही बुधवार का प्रयास नाकाम रहा हो,लेकिन इसके वैज्ञानिक नतीजे उत्साहजनक हैं। कम नमी के बावजूद वायु गुणवत्ता में 10 प्रतिशत तक सुधार इस बात का संकेत है कि भारत में तकनीकी नवाचार पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। आईआईटी कानपुर का यह प्रयास आने वाले दिनों में दिल्ली की हवा को स्वच्छ बनाने की दिशा में एक नई उम्मीद जगाता है।