नई दिल्ली,7 नवंबर (युआईटीवी)- देश में आवारा कुत्तों और मवेशियों से बढ़ते खतरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर लोगों की सुरक्षा सर्वोपरि है और इस दिशा में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ,न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की तीन सदस्यीय पीठ ने स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई करते हुए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिए कि आवारा कुत्तों और मवेशियों की समस्या से निपटने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाए जाएँ।
पीठ ने आदेश दिया कि देश भर के प्रमुख सार्वजनिक स्थलों — जैसे स्कूल,कॉलेज,अस्पताल,सार्वजनिक खेल परिसर,बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन को आवारा कुत्तों के प्रवेश से सुरक्षित बनाने के लिए वहाँ उचित बाड़बंदी की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन परिसरों की नियमित निगरानी स्थानीय नगर निकायों द्वारा की जानी चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की लापरवाही न हो। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इन स्थलों पर आवारा जानवरों का प्रवेश न केवल जनसुरक्षा के लिए खतरा है,बल्कि इससे देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि आवारा कुत्तों और मवेशियों के प्रबंधन में पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 का सख्ती से पालन किया जाए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन नियमों के तहत प्रत्येक पशु का अनिवार्य रूप से टीकाकरण और नसबंदी की जाए। नसबंदी और टीकाकरण के बाद इन जानवरों को निर्दिष्ट आश्रय स्थलों में स्थानांतरित किया जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे कुत्तों को टीकाकरण या नसबंदी के बाद दोबारा उन्हीं सार्वजनिक स्थलों पर छोड़ना अनुचित होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया कि वे इस निर्णय का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि निर्देशों की अनदेखी की गई तो संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि इन आदेशों के अनुपालन की स्थिति पर आठ हफ्तों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट (कंप्लायंस स्टेटस रिपोर्ट) प्रस्तुत की जाए।
राजमार्गों पर मवेशियों और अन्य जानवरों की उपस्थिति को लेकर भी अदालत ने सख्त रुख अपनाया। पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर अक्सर आवारा मवेशियों की वजह से सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं,जिससे न केवल आम जनता की जान खतरे में पड़ती है,बल्कि यातायात व्यवस्था भी प्रभावित होती है। अदालत ने निर्देश दिया कि ऐसे सभी जानवरों को तुरंत हटाया जाए और उन्हें निर्दिष्ट पशु आश्रयों में बिना किसी देरी के पहुँचाया जाए।
इस दौरान न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने यह टिप्पणी की कि आवारा जानवरों से जुड़ी घटनाएँ केवल व्यक्तिगत नुकसान नहीं पहुँचाती,बल्कि देश की साख को भी नुकसान पहुँचाती हैं। उन्होंने कहा, “लगातार ऐसी घटनाएँ हो रही हैं,जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी खराब होती है। हम समाचार रिपोर्ट भी पढ़ रहे हैं कि कैसे स्कूलों के बाहर,अस्पतालों के गेट पर और सड़कों पर आवारा कुत्तों के हमले की घटनाएँ बढ़ रही हैं। यह स्थिति किसी भी सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य है।”
अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि पशु जन्म नियंत्रण नियमों को लागू करने में कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। पीठ ने कहा कि पिछले आदेशों के बावजूद कई राज्यों ने न तो पर्याप्त पशु आश्रय बनाए हैं,न ही नसबंदी कार्यक्रमों को ठीक से लागू किया है। अदालत ने यह चेतावनी दी कि यदि आने वाले दिनों में सुधार नहीं दिखा,तो सुप्रीम कोर्ट संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर विचार करेगा।
गौरतलब है कि देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिन आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों और बुजुर्गों पर हमलों की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। इसके अलावा,राजमार्गों पर अचानक मवेशियों के आ जाने से सड़क हादसे भी आम बात हो गई है। कई सामाजिक संगठनों और नागरिकों ने इन घटनाओं पर चिंता जताते हुए न्यायालय से ठोस कदम उठाने की माँग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आने के बाद उम्मीद की जा रही है कि राज्यों में पशु नियंत्रण और प्रबंधन की दिशा में नई नीति अपनाई जाएगी। अदालत के निर्देशों के अनुपालन की निगरानी उच्चतम स्तर पर की जाएगी और कोई भी अधिकारी अब इस मामले को हल्के में नहीं ले सकेगा। न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस विषय पर आने वाले महीनों में प्रगति रिपोर्ट के आधार पर अगली सुनवाई तय की जाएगी।
इस निर्णय को जनसुरक्षा की दृष्टि से ऐतिहासिक माना जा रहा है,क्योंकि इससे न केवल आम नागरिकों की सुरक्षा बढ़ेगी,बल्कि पशुओं के लिए भी बेहतर आश्रय और स्वास्थ्य प्रबंधन सुनिश्चित होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख यह संदेश देता है कि देश में कानून और व्यवस्था केवल मनुष्यों के लिए नहीं,बल्कि सभी जीवों के संतुलित सह-अस्तित्व के लिए है।
