नई दिल्ली,12 नवंबर (युआईटीवी)- नेपाल में हाल ही में हुए राजनीतिक उथल-पुथल और केपी शर्मा ओली सरकार के पतन के बाद भारत और नेपाल के बीच पहली बार उच्च स्तरीय वार्ता होने जा रही है। यह वार्ता दोनों देशों के सीमा सुरक्षा बलों के बीच आयोजित की जा रही है,जिसका उद्देश्य सीमा पार अपराधों पर नियंत्रण,खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में सुधार और आपसी सहयोग को और मजबूत बनाना है। यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है,जब नेपाल की राजनीतिक स्थिति अस्थिर है और देश में जल्द ही आम चुनाव होने वाले हैं। इस वार्ता को दोनों देशों के संबंधों में स्थिरता और विश्वास की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
भारत के सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और नेपाल के सशस्त्र पुलिस बल (एपीएफ) के बीच यह 9वीं वार्षिक समन्वय बैठक 12 से 14 नवंबर तक आयोजित की जाएगी। इस दौरान दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल सीमा सुरक्षा से जुड़े तमाम अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व एसएसबी के महानिदेशक संजय सिंघल करेंगे,जबकि नेपाल की ओर से एपीएफ के महानिरीक्षक राजू आर्यल बैठक में शामिल होंगे। बैठक का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा प्रबंधन को अधिक समन्वित और प्रभावी बनाना है।
भारत और नेपाल के बीच 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है,जो बिना बाड़ के है और जिसकी निगरानी भारत की ओर से सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) द्वारा की जाती है। यह सीमा दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक,सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों की धरोहर है,लेकिन समय-समय पर यह अवैध गतिविधियों और तस्करी जैसे अपराधों के लिए भी चुनौती बनती रही है। इसी वजह से दोनों देशों के सुरक्षा बलों के बीच यह वार्षिक बैठक बेहद अहम मानी जाती है।
एसएसबी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस बार की बैठक में सीमा पार अपराधों पर नियंत्रण के लिए अधिक प्रभावी संयुक्त तंत्र बनाने पर जोर दिया जाएगा। इसके साथ ही,वास्तविक समय में खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक तेज़ और विश्वसनीय प्रणाली विकसित करने पर भी चर्चा होगी। बैठक में भारत-नेपाल सीमा पर शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समन्वित सीमा प्रबंधन की नई रणनीतियों पर भी विचार किया जाएगा।
पिछली बैठक नवंबर 2024 में काठमांडू में हुई थी,जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए थे। हालाँकि,उसके बाद नेपाल में केपी ओली सरकार के खिलाफ ‘जनरेशन जेड’ द्वारा नेतृत्व किए गए हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने देश की राजनीतिक स्थिति को अस्थिर कर दिया। सितंबर में हुए इन प्रदर्शनों में कई लोगों की जान गई और भारी संपत्ति का नुकसान हुआ। नेपाल सरकार के मुताबिक,सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे को हुए नुकसान का अनुमान 100 अरब नेपाली रुपये से अधिक है,जबकि निजी क्षेत्र ने प्रारंभिक आकलन में 80 अरब रुपये से अधिक के नुकसान की बात कही है।
हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद केपी ओली को पद छोड़ना पड़ा और देश में सुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। अंतरिम प्रधानमंत्री कार्की ने अक्टूबर की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आश्वासन दिया था कि वर्तमान प्रशासन अगले छह महीनों के भीतर आम चुनाव कराएगा और सत्ता नई निर्वाचित सरकार को सौंप देगा। इस राजनीतिक संक्रमण के बीच भारत और नेपाल की यह वार्ता दोनों देशों के लिए आपसी भरोसे और सहयोग को पुनर्स्थापित करने का अवसर मानी जा रही है।
भारत-नेपाल के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ रहे हैं। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक,धार्मिक और पारिवारिक जुड़ाव सदियों पुराना है,लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सीमाई विवादों,नकली करेंसी तस्करी और अवैध व्यापार जैसी समस्याओं ने इन रिश्तों को प्रभावित किया है। खासकर, 2020 में सीमांकन विवाद के बाद दोनों देशों के बीच तनाव देखने को मिला था। हालाँकि,समय के साथ इन मतभेदों को दूर करने के लिए कूटनीतिक प्रयास जारी रहे।
वर्तमान वार्ता में दोनों देशों के प्रतिनिधि सीमा पार अपराध,मानव तस्करी,मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों की रोकथाम जैसे मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। साथ ही,सीमा पार से जुड़े नागरिकों के आवागमन में पारदर्शिता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए तकनीकी सहयोग बढ़ाने की संभावना भी जताई जा रही है।
एसएसबी भारत-नेपाल सीमा के अलावा भारत-भूटान सीमा की भी सुरक्षा करती है। भारत-भूटान सीमा 699 किलोमीटर लंबी है और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना भारत के लिए प्राथमिकता का विषय रहा है। इसलिए भारत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमाई सहयोग को मजबूत करने की दिशा में लगातार प्रयासरत है।
नेपाल के हालिया राजनीतिक परिदृश्य में यह वार्ता और भी अहम हो जाती है। जेन जेड आंदोलन के बाद नेपाल में युवाओं का राजनीतिक प्रभाव तेजी से बढ़ा है। वे पारदर्शिता,रोजगार और सुशासन की माँग कर रहे हैं। इन हालात में नेपाल की अंतरिम सरकार भारत के साथ रिश्तों को स्थिर करने की दिशा में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।
भारत के लिए भी नेपाल न केवल भौगोलिक दृष्टि से बल्कि रणनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पड़ोसी है। चीन की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए भारत नेपाल के साथ अपने रिश्तों को और मज़बूत बनाना चाहता है। इस वार्ता से यह उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग का एक नया अध्याय शुरू होगा,जिससे सीमा सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक संबंधों को भी नई दिशा मिलेगी।
यह उच्च स्तरीय वार्ता न केवल सीमा पर सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है,बल्कि भारत-नेपाल के बीच पारंपरिक मित्रता को और सशक्त करने का अवसर भी प्रदान करेगी। दोनों देशों की सरकारें अगर इस संवाद को रचनात्मक दिशा में आगे बढ़ाती हैं,तो दक्षिण एशिया में स्थिरता और सहयोग का एक नया मॉडल उभर सकता है।

