वाशिंगटन,13 नवंबर (युआईटीवी)- अमेरिका में एच-1बी वीज़ा को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस कार्यक्रम का बचाव करने के एक दिन बाद,व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि सरकार वीज़ा प्रणाली के दुरुपयोग के मामलों पर सख्त कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह बयान ऐसे समय आया है,जब ट्रंप प्रशासन की वीज़ा नीति को लेकर अमेरिकी राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं और भारतीय पेशेवरों पर इसका सीधा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने ‘डेली वायर’ नामक मीडिया आउटलेट से बातचीत में कहा कि “राष्ट्रपति ट्रंप का उद्देश्य अमेरिकी इमिग्रेशन प्रणाली को निष्पक्ष और संतुलित बनाना है। एच-1बी वीज़ा प्रणाली का दुरुपयोग पिछले कई वर्षों से एक गंभीर चिंता का विषय रहा है और मौजूदा प्रशासन इस पर कठोर कार्रवाई करने जा रहा है।”
इससे पहले बुधवार को व्हाइट हाउस की प्रवक्ता टेलर रोजर्स ने भी बयान जारी करते हुए कहा कि ट्रंप प्रशासन ने जितने कम समय में अमेरिकी इमिग्रेशन कानूनों को सख्त किया है,उतना किसी आधुनिक अमेरिकी राष्ट्रपति ने नहीं किया। उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप ने हमेशा अमेरिकी कामगारों के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि विदेशी सस्ते कामगारों की वजह से अमेरिकी नागरिकों की नौकरियाँ खतरे में न पड़ें।”
रोजर्स ने यह भी बताया कि “नए एच-1बी वीज़ा आवेदन पर 1 लाख डॉलर का अतिरिक्त शुल्क लगाना इस दिशा में पहला बड़ा कदम है। यह शुल्क उन कंपनियों पर लागू होगा जो विदेशी कर्मचारियों को अनुचित लाभ के लिए नियुक्त कर रही हैं। इस फैसले का उद्देश्य अमेरिकी श्रमिकों के लिए बेहतर अवसर सुनिश्चित करना है।”
मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘फॉक्स न्यूज़’ को दिए एक इंटरव्यू में एच-1बी वीज़ा के महत्व का बचाव किया। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी सरकार एच-1बी वीज़ा को कम प्राथमिकता देने जा रही है,तो ट्रंप ने जवाब दिया, “नहीं,हमें टैलेंट की ज़रूरत है।”
उन्होंने आगे कहा, “अमेरिका को विशेष प्रतिभा वाले लोगों की जरूरत है। बेरोजगार लोगों को सीधे फैक्ट्रियों में या मिसाइल निर्माण के काम में नहीं लगाया जा सकता,क्योंकि इसके लिए उच्च तकनीकी कौशल और विशेष प्रशिक्षण चाहिए।” यह बयान उस धारणा के विपरीत था कि ट्रंप प्रशासन विदेशी कर्मचारियों के प्रति कठोर रुख अपनाने जा रहा है।
हालाँकि,व्हाइट हाउस ने राष्ट्रपति के बयान को यह कहते हुए स्पष्ट किया कि ट्रंप की बात का गलत अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। उनका मतलब यह था कि एच-1बी वीज़ा केवल उन मामलों में दिया जाए,जहाँ वास्तव में अमेरिकी प्रतिभा उपलब्ध न हो,न कि हर जगह विदेशी कामगारों को प्राथमिकता दी जाए।
इसी बीच अमेरिकी श्रम विभाग ने एच-1बी वीज़ा के दुरुपयोग के संभावित मामलों की जाँच शुरू की है। रिपोर्टों के अनुसार,पिछले हफ्ते विभाग ने 175 से अधिक कंपनियों के खिलाफ जाँच के आदेश दिए हैं। यह कार्रवाई “प्रोजेक्ट फायरवॉल” नामक अभियान के तहत की जा रही है।
अमेरिकी श्रम मंत्री लोरी शावेज-डेरेमर ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठा रहे हैं कि कोई भी कंपनी अमेरिकी श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन न करे। एच-1बी वीज़ा का उद्देश्य वैश्विक प्रतिभाओं को अवसर देना है,लेकिन इसका उपयोग अमेरिकी नौकरियों को सस्ते श्रम से प्रतिस्थापित करने के लिए नहीं किया जा सकता।”
जाँच में कई आईटी और टेक कंपनियों के शामिल होने की संभावना है,जो विदेशी कर्मचारियों को भारी संख्या में नियुक्त करती हैं। अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक,जाँच एजेंसियों को संदेह है कि कुछ कंपनियाँ एच-1बी वीज़ा के माध्यम से अनुचित तरीके से लाभ कमा रही हैं और स्थानीय कर्मचारियों को दरकिनार कर रही हैं।
एच-1बी वीज़ा नीति में किसी भी बदलाव का सबसे अधिक असर भारत पर पड़ता है। 2024 के आँकड़ों के अनुसार,कुल जारी एच-1बी वीज़ा में भारत मूल के पेशेवरों का हिस्सा लगभग 70 प्रतिशत था। भारतीय इंजीनियर,आईटी विशेषज्ञ और हेल्थकेयर पेशेवर बड़ी संख्या में इस वीज़ा पर अमेरिका में कार्यरत हैं।
भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन की नई सख्त नीतियाँ भारतीय आईटी कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए चुनौती बन सकती हैं। भारत-अमेरिका के बीच प्रौद्योगिकी,अनुसंधान और सेवा क्षेत्र में गहरे संबंध हैं और वीज़ा प्रतिबंध इन रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
ट्रंप प्रशासन की एच-1बी नीति का विरोध केवल व्यापारिक संगठनों ने ही नहीं,बल्कि अमेरिकी सांसदों ने भी किया है। अमेरिका के सबसे बड़े व्यापार संगठन ‘यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स’ ने इस नीति के खिलाफ मुकदमा दायर किया है,यह कहते हुए कि “नई वीज़ा फीस और नीतिगत बदलाव अमेरिका की नवाचार क्षमता को कमजोर करेंगे।”
इसके अलावा, 31 अक्टूबर को पाँच अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप को पत्र लिखकर 19 सितंबर के आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। सांसदों ने चेतावनी दी थी कि यह नीति भारत-अमेरिका संबंधों पर “दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव” डाल सकती है। उनका कहना था कि “भारत अमेरिका का सबसे भरोसेमंद तकनीकी साझेदार है और वहाँ से आने वाले कुशल पेशेवर अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।”
ट्रंप प्रशासन का यह रुख अमेरिका के भीतर राजनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। एक ओर राष्ट्रपति ट्रंप विदेशी प्रतिभा की आवश्यकता को स्वीकार कर रहे हैं,तो दूसरी ओर घरेलू मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा कर रही है।
हालाँकि,विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एच-1बी वीज़ा पर अत्यधिक प्रतिबंध लगाए गए,तो इसका दीर्घकालिक असर अमेरिकी टेक उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता पर पड़ेगा। भारत के लिए भी यह मामला महत्वपूर्ण है,क्योंकि लाखों भारतीय पेशेवरों का भविष्य इस नीति के फैसलों पर निर्भर करता है।
अभी यह देखना बाकी है कि ट्रंप प्रशासन वीज़ा दुरुपयोग की जाँच को किस दिशा में आगे बढ़ाता है और क्या इन कदमों से भारत-अमेरिका के प्रौद्योगिकी व कूटनीतिक रिश्तों में कोई दरार आती है या नहीं। फिलहाल,इतना तय है कि एच-1बी वीज़ा एक बार फिर अमेरिकी राजनीति और भारत-अमेरिका संबंधों के केंद्र में आ गया है।

