अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

एच-1बी वीज़ा पर ट्रंप ने दोहराया समर्थन,अमेरिका में कौशल और चिप उत्पादन को लेकर बड़ी बहस तेज

वाशिंगटन,18 नवंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम के समर्थन में अपना रुख स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका को विदेशी कामगारों की जरूरत अब भी बनी हुई है,क्योंकि वे न केवल देश की कंपनियों की तकनीकी और वैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं,बल्कि अमेरिकी कामगारों को प्रशिक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रंप ने इस वीज़ा प्रणाली पर उठ रहे सवालों के बीच यह बयान दिया और साथ ही अमेरिका की चिप निर्माण क्षमता को लेकर भी गंभीर टिप्पणी की।

ट्रंप ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में अमेरिका ने सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर अपनी पकड़ खो दी है,जबकि कभी यह क्षेत्र पूरी तरह अमेरिकी प्रभुत्व में था। उन्होंने स्वीकार किया कि यह उद्योग “ग़लती से” ताइवान के हाथ चला गया,लेकिन दावा किया कि अब स्थिति बदलने वाली है। राष्ट्रपति ने कहा कि अगले एक वर्ष में अमेरिका बड़े पैमाने पर चिप उत्पादन फिर से शुरू करेगा और इसके लिए अमेरिकी कामगारों को चिप निर्माण की आधुनिक तकनीक सीखनी होगी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि फिलहाल देश में विशेषज्ञता की कमी है और इस कमी को विदेशी प्रतिभा पूरा कर रही है।

एच-1बी वीज़ा पर ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है,जब राजनीतिक हलकों में इस कार्यक्रम को लेकर गहरी बहस छिड़ी हुई है। पिछले हफ्ते फ़ॉक्स न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में भी ट्रंप ने इस वीज़ा के महत्व पर जोर दिया था। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी प्रशासनिक नीतियों के तहत इस वीज़ा को कम प्राथमिकता दी जाएगी,तो उन्होंने सीधे कहा कि अमेरिका के पास अभी भी कुछ अत्यंत विशेष क्षेत्रों में कुशल प्रतिभा की कमी है,इसलिए दुनिया भर से प्रतिभावान लोगों को लाना “जरूरी” है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बेरोजगारी की लाइन में खड़े किसी साधारण व्यक्ति को मिसाइल तकनीक या अत्याधुनिक मशीनरी बनाने वाली कंपनियों में तुरंत नहीं लगाया जा सकता। ये कार्य विशेष विशेषज्ञता और वर्षों के अनुभव की माँग करते हैं।

ट्रंप की इस टिप्पणी के बाद रिपब्लिकन पार्टी के भीतर ही मतभेद सामने आने लगे। पार्टी के कई नेताओं ने एच-1बी कार्यक्रम को पूरी तरह समाप्त करने की माँग उठाई। उनका तर्क है कि इस वीज़ा के चलते अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों पर खतरा बढ़ रहा है। इसी विरोध के बीच व्हाइट हाउस ने स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि हाल ही में वीज़ा आवेदन पर एक लाख डॉलर की नई फीस व्यवस्था लागू की गई है,ताकि दुरुपयोग पर रोक लगाई जा सके और फर्जी कंपनियों को फिल्टर किया जा सके। प्रशासन का कहना है कि यह “पहला बड़ा कदम” है,जिसका उद्देश्य प्रणाली की पारदर्शिता बनाए रखना है।

एक मीडिया प्रश्न के जवाब में व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रंप ने आधुनिक अमेरिकी इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति की तुलना में कहीं अधिक कड़े आव्रजन कानून लागू किए हैं और अमेरिकी कामगारों की प्राथमिकता सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। उन्होंने हाल ही में शुरू किए गए “प्रोजेक्ट फ़ायरवॉल” का भी उल्लेख किया,जिसके तहत उन कंपनियों की जाँच की जा रही है,जो एच-1बी नियमों का उल्लंघन कर विदेशी कामगारों का शोषण कर रही हैं या गलत तरीकों से वीज़ा नीति का फायदा उठा रही हैं।

इसी बीच कांग्रेस में भी इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ गया है। रिपब्लिकन सांसद मार्जोरी टेलर ग्रीन ने घोषणा की है कि वे एक नया विधेयक लाने जा रही हैं,जिसके तहत चिकित्सकीय क्षेत्र को छोड़कर अन्य सभी सेक्टरों में एच-1बी वीज़ा पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। उनका दावा है कि इससे अमेरिकी नागरिकों को अधिक रोजगार अवसर मिलेंगे और आम लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी,जिससे वे अपने घर खरीदने जैसे महत्वपूर्ण कदम उठा पाएँगे। हालाँकि,विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे प्रतिबंध उद्योगों में कौशल की कमी को और बढ़ा देंगे और अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर पड़ेगा।

सरकार की नई वीज़ा नीति को लेकर कई मुकदमे भी अदालतों में दायर किए गए हैं। 31 अक्टूबर को पाँच अमेरिकी सांसदों ने ट्रंप को पत्र लिखा,जिसमें उन्होंने आग्रह किया कि एच-1बी वीज़ा पर बन रहे नए नियमों पर पुनर्विचार किया जाए,क्योंकि इनसे भारत-अमेरिका रणनीतिक और तकनीकी संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत एच-1बी वीज़ा का सबसे बड़ा लाभार्थी है और दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग की बुनियाद इसी कार्यक्रम पर टिकी है।

आँकड़ों के अनुसार,वर्ष 2024 में स्वीकृत कुल एच-1बी वीज़ाओं में से 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय मूल के कामगारों को मिले हैं। यह इसलिए भी है क्योंकि भारत से आने वाले उच्च कौशल वाले इंजीनियर,वैज्ञानिक और आईटी पेशेवर वैश्विक बाजार में लगातार बढ़त बनाए हुए हैं। अमेरिकी टेक कंपनियों ने भी बार-बार यह स्पष्ट किया है कि भारतीय पेशेवर उनके शोध,विकास और तकनीकी क्षमताओं की रीढ़ हैं।

ट्रंप के नए बयान ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था विदेशी प्रतिभा पर निर्भर है,लेकिन राजनीतिक दबाव और आंतरिक मतभेद इस वीज़ा कार्यक्रम को बार-बार विवादों के घेरे में ले आते हैं। आने वाले महीनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि व्हाइट हाउस अपनी नीतियों में संतुलन कैसे बनाता है। अमेरिकी कामगारों के हितों को प्राथमिकता देते हुए भी तकनीकी उद्योग की जरूरतों को पूरा रख पाना प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।